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शिक्षा के साथ संस्कारों को भी स्वयं में समाहित करना होगा : डॉ. अंजू आहूजा

जागरण संवाददाता, रोहतक : गुरु शिष्य का पवित्र पावन रिश्ता भारतीय शिक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। ग

By Edited By: Published: Sat, 28 Nov 2015 06:28 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2015 06:28 PM (IST)
शिक्षा के साथ संस्कारों को भी स्वयं में समाहित करना होगा : डॉ. अंजू आहूजा

जागरण संवाददाता, रोहतक : गुरु शिष्य का पवित्र पावन रिश्ता भारतीय शिक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। गुरू अपने प्रत्येक प्रयास से अपने शिष्य में व्याप्त क्षमताओं को बिल्कुल वैसे ही निखारने में सहायता करता है जैसे एक ब्लेड पैंसिल को। शिष्य की क्षमताओं को पढ़कर, समझकर उसे समाज में एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व की तरफ बढ़ाने का कार्य केवल एक उत्तम शिक्षक ही कर सकता है यह कहना है बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय प्रतिकुलपति डॉ. अंजू आहूजा का। वे शनिवार को संस्थान के फिजियोथेरेपी विभाग में आयोजित मिलन समारोह में अपने विचार रख रही थी। उन्होंने कहा कि मां-बाप हो या अध्यापक दोनों ही बच्चे के भविष्य निर्माण का आधार सुनिश्चित करते हैं। दोनों में ही संवेदनाओं का अथाह सागर सदैव हिलोरे मारता रहता है। परंतु यदि दोनों नारियल की भांति बाहर से कठोर होते हैं तो उनका उद्देश्य केवल बच्चे के उत्थान से जुड़ा होता है। आज हमारा विद्यार्थी वर्ग संघर्षों से स्वयं को दूर करना चाहता है। वह एक मात्र डिग्रीधारक बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है। शिक्षा के वास्तविक मायनों को हमने पूर्णतय: बदल दिया। आधुनिकीकरण के सही अर्थ को ना पहचान पाना इसका सबसे बड़ा कारण है। समाज में आज ऐसी शिक्षाधारा को प्रवाहित करना आवश्यक है जो हमारे भीतर की विनम्रता को बनाए रखने मे सहायक हो। विनम्र भाव का व्यक्ति प्रत्येक अवसर को सुअवसर बना सकता है क्योकि विनम्रता अहं की समाप्ति पर ही पैदा होती है। आज हमें समझना होगा कि प्रत्येक कार्य कर्म से होता है ना कि अपने स्वभाव से। हमें उसे करने के अपने तरीके में इस प्रकार परिवर्तन करना होगा कि हमारा अहं समाप्त हो और विनम्रता हमारे अन्दर आए। जब एक विद्यार्थी अपनी शिक्षा पूर्ण करके जीविका के लिए सामाजिक जीवन से जुड़ता है तो उसे शिक्षण काल के उन उत्तम गुणों की आवश्यकता पड़ती है जो केवल एक योग्य गुरु ही योग्य पात्र शिष्य को दे सकता है। अत: अपनी पात्रता बनाए रखने के लिए हमें स्वयं से क्र ोध और अहं जैसे कारकों को निकालना होगा। जीवन में हम किसी भी व्यवसाय से जुड़ें सदैव विनम्रता का साथ रखें और इस बात का सदैव मनन करें कि हमारी शक्तियां स्वयं हममें सुप्त अवस्था में हैं। उन्हें कैसे जागृत किया जाए।

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इस अवसर पर डॉ. अंजू आहूजा सहित रजिस्ट्रार एनसी जैन, परीक्षा नियंत्रक ओपी सचदेवा, डॉ. एसपी शर्मा, डॉ. भारत भूषण, डॉ. संगीता आहूजा, डॉ. कमलेश मलिक, प्रो. मीनाक्षी मरवाह, डॉ. विनोद कुमार, डॉ. पीसी श्योराण, डॉ. पीसी जुनेजा, डॉ. लीना अरोड़ा, प्रो. कृष्णा राणा, डॉ. गौरव, डॉ. शिल्पा, डॉ. रमणीक, डॉ. चारू, डॉ. विधि मुंजाल एवं डॉ. तरुणा वर्मा सहित फिजियोथेरेपी विभाग के सभी बच्चे उपस्थित थे।


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