सख्ती-सुरक्षा बनाम कानून व मानवाधिकार
जागरण संवाददाता, रोहतक : अदालत परिसर स्थित हवालात के पास प्रशिक्षु अधिवक्ता से की गई मारपीट का मामला
जागरण संवाददाता, रोहतक : अदालत परिसर स्थित हवालात के पास प्रशिक्षु अधिवक्ता से की गई मारपीट का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। वहीं, इस मामले को निपटाने के प्रयास भी चल रहे हैं। अगर पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई होती है तो उनका मनोबल गिर सकता है, वहीं अगर कार्रवाई नहीं होती है, तो मानवाधिकार और कानून का उल्लंघन होता है। वहीं, पुलिसकर्मियों को भी कानून हाथ में लेने की शह मिलती है। इस घटना ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या पुलिसकर्मियों को सख्ती नहीं दिखानी चाहिये? या फिर क्या उन्हें कानून और मानवाधिकार का उल्लंघन करने का अधिकार है?
दरअसल, पूर्व में हुई घटना गवाह हैं कि कई बार हिरासत में हुई जरा सी चूक का लाभ बंदी और कैदी उठा चुके हैं। इसकी सीधी गाज ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों पर गिरती है। ऐसे ही मामलों में न केवल पुलिसकर्मियों पर रिपोर्ट दर्ज हुई है, बल्कि उन्हें निलंबन और बर्खास्तगी की भी कार्रवाई झेलनी पड़ी है। वहीं, पुलिस हिरासत में अधिकांश अपराधी प्रवृति के लोग रहते हैं, जिन्हें प्यार की भाषा समझ नहीं आती है। ऐसे में पुलिसकर्मियों के लिए सख्त रवैया अख्तियार करना आवश्यक होता है। सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि भारतीय संविधान के मुताबिक कानून हाथ में लेने का अधिकार यहां किसी व्यक्ति को नहीं है। वहीं, मानवाधिकार आमजन की तरह बंदी को भी अधिकार प्रदान कर सकता है। यही कारण है कि देश में आतंकियों की भी हिरासत में रखने के लिए दौरान कड़ी सुरक्षा दी जाती है। हिरासत में रखे गए बंदियों से मारपीट करने का भी अधिकार पुलिस के पास नहीं है। अगर बंदी कोई गलती करता है, तो उस पर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है। यही बात आम आदमी पर भी लागू होती है। बंदी और प्रशिक्षु वकील की पिटाई इसलिए और ¨चतनीय व ¨नदनीय है कि यह घटना उस परिसर में हुई जहां लोग न्याय के लिए आते हैं। इस घटना के बाद अधिवक्ताओं का यह सवाल उठाना लाजिमी है कि जब पुलिसकर्मी अदालत परिसर में इस तरह कानून और मानवाधिकार का उल्लंघन कर सकते हैं तो सड़क और थानों में ऐसे पुलिसकर्मियों का रवैया आमजन के साथ कैसा होता होगा?
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पुलिस पर सुरक्षा की जिम्मेदारी रहती है। ऐसे में जरा सी चूक उन पर भारी पड़ती है, लेकिन इस तरह प्रशिक्षु वकील को पीटना कानून का सरेआम उल्लंघन है। कानून के रखवाले ही अगर ऐसा करेंगे, तो व्यवस्था सुधरने की बजाय बिगड़ेगी। इसलिए हम दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई चाहते हैं।
दीपक कुंडू, प्रधान जिला बार एसोसिएशन
अधिवक्ता अदालत परिसर में एक अधिकारी की तरह होता है। उसके साथ पुलिसकर्मियों का यह बर्ताव बेहद ¨नदनीय है। इस मामले में कानूनी कार्रवाई आवश्यक है, जिससे ऐसे अन्य पुलिसकर्मियों को सबक मिल सके। सुरक्षा और सख्ती का मतलब कानून हाथ में लेना नहीं है।
अशोक कादियान, अधिवक्ता
कानून के रखवाले अगर कानून का मजाक उड़ाएंगे, तो व्यवस्था बिगड़ेगी। अदालत परिसर में प्रशिक्षु वकील की पिटाई कानून और मानवाधिकार दोनों का उल्लंघन है। दोषी पुलिसकर्मियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
अतर ¨सह पंवार, अधिवक्ता
जब अदालत परिसर में एक प्रशिक्षु वकील के साथ पुलिस ने ऐसा बर्ताव किया, तो ये पुलिसकर्मी आमजन के साथ थाने व सड़क पर कैसा व्यवहार करते होंगे। सख्त कार्रवाई से ही सबक मिलेगा। सुरक्षा और सख्ती भी जरूरी है, लेकिन इसके लिए कानून हाथ में लेना जरूरी नहीं है।
संदीप राठी, अधिवक्ता
डीएसपी अमित भाटिया को जांच सौंपी है। उनसे जल्द रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। अगर कोई पुलिसकर्मी रिपोर्ट में दोषी पाया जाता है, तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
शशांक आनंद, पुलिस अधीक्षक
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जेपी शर्मा