अच्छे संस्कारों से ही काबिल बनेगी युवा पीढ़ी : स्वामी दिव्यानंद
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जागरण संवाददाता, रोहतक : प्रभु श्रीराम का चरित्र उदार चरित्र है। श्रीराम चरित मानस में केवल कुछ कर्मकांड को ही धर्म नहीं माना गया और न ही आर्थिक विकास को ही विकास माना गया। बिना आध्यात्मिक विकास हुए आर्थिक विकास अधूरा है। जब तक कोई अच्छे संस्कारों से, विचारों से संपन्न नहीं, तब तक उसे धार्मिक नहीं कहा जा सकता। यह बात जय श्रीराम मंडल महिला समिति द्वारा नीलकंठ मंदिर पटेल नगर में आयोजित श्रीराम कथा के चौथे दिन तपोवन हरिद्वार से आए गीता भागवत व्यास डॉ. स्वामी दिव्यानंद महाराज ने कथा के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि विभीषण और त्रिजटा जैसे विवेकशील संपन्न चरित्र भी लंका में विद्यमान है। अवध में भी मंथरा जैसी प्रवृति है जिसने रात में राम राज्य को राम वनवास में बदल डाला। संस्कारों के निर्माण में जहा अच्छे विद्यालयों का योगदान है वहीं माता-पिता के दांपत्य जीवन का भी भरपूर महत्व है। उन्होंने कहा कि मनु जी और शतरूपा जी का जीवन श्रेष्ठ दांपत्य जीवन माना गया। उनकी शासन व्यवस्था धर्ममयी थी। किसी भी प्रकार का कोई प्रदूषण न था, तभी उनकी वंश परंपरा में राज जैसे पुत्र हुए। उन्होंने कहा कि आज संस्कार विकृत है, माता-पिता का अपना जीवन ही अति बहुमुखी है। इस अवसर पर ग्रंथ पूजन में मुख्य अतिथि के तौर पर मनमोहन गोयल व अशोक भांबरी ने शिरकत की। कार्यक्रम में हंसराज अरोड़ा, मदन लाल गांधी, सतीश सपड़ा, अशोक बुद्धिराजा, जगदीश घई, संजीव शर्मा उपस्थित रहे।