जीएसटी ने निकाला 'सरसों का तेल', 300 रुपये प्रति क्विंटल तक गिरे भाव
एक जुलाई से लागू होने वाले जीएसटी की वजह से टैक्स में आने वाले अंतर के कारण व्यापारी मांग के बावजूद सरसों को बेच नहीं पा रहे हैं।
रेवाड़ी [मनीष कुमार]। सरसों को जीएसटी में शामिल किए जाने को लेकर बनी असमंजस की स्थिति ने सरसों का तेल निकाल दिया है। जिले में सरसों की बंपर पैदावार तथा मंडी में हुई रिकॉर्ड आवक की बदौलत व्यापारियों को अच्छे भाव मिलने की उम्मीद थी लेकिन एक जुलाई से लागू होने वाले जीएसटी की वजह से टैक्स में आने वाले अंतर के कारण व्यापारी मांग के बावजूद सरसों को बेच नहीं पा रहे हैं। इस कारण खरीद के समय सरसों का भाव 3500 रुपये प्रति क्विंटल तक था वह अब गिरकर 3200 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गया है।
तीन सौ रुपये प्रति क्विंटल तक गिरे भाव
रेवाड़ी अनाज मंडी में सीजन के दौरान लगभग साढ़े चार लाख बैग सरसों की आवक होती है तथा इस बार उत्पादन काफी अच्छा रहा है जिससे आवक अन्य वर्षों के मुकाबले अधिक रही। सीजन के दौरान समर्थन मूल्य पर खरीद होने की वजह से व्यापारियों को भी 3300 से 3600 रुपये प्रति क्विंटल तक सरसों की खरीददारी करनी पड़ी थी।
व्यापारियों को उम्मीद थी कि आफ सीजन के दौरान आने वाली मांग के दौरान सरसों 4000 रुपये प्रति क्विंटल से भी अधिक बिक जाएगी। व्यापारियों को यह भाव मिलता इससे पहले जीएसटी में सरसों को शामिल किए जाने की पूरी संभावना से भाव बढऩे की बजाय औंधे मुंह गिर गए। इसकी वजह है कि फिलहाल सरसों की बिक्री पर पांच फीसद वैट था जिसमें तीन फीसद रिफंडेबल है जबकि जीएसटी में टैक्स दर बढऩे के साथ उसे वैट के टैक्स में समायोजित नहीं किया जा रहा है।
इस कारण व्यापारी मांग होने के बावजूद चाहकर अपनी सरसों नहीं बेच रहे हैं इस कारण सीजन के दौरान की गई खरीद के भावों में से भी 300 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गए हैं। अब व्यापारियों के पास स्टॉक है तथा मुख्यत: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बंगाल से सरसों की मांग भी आ रही है लेकिन जीएसटी के असमंजस की वजह से अधिकांश व्यापारी अपनी सरसों की बिक्री नहीं कर रहे हैं।
वैट व जीएसटी टैक्स का अंतर नहीं होगा समायोजित
व्यापारी के लिए सबसे डर की बात यह है कि बिक्री की गई सरसों का भुगतान तभी होगा जब सभी दस्तावेज पूर्ण होंगे। साथ ही अब बिक्री करने पर 3 फीसद स्टेट वैट तथा 2 फीसद आउट आफ स्टेट वैट देना होगा। इसमें तीन फीसद टैक्स रिफंडेबल होता है। वहीं जीएसटी में सरसों शामिल होने पर वैट तथा जीएसटी दोनों के हिसाब से टैक्स की गणना होगी और इसमें जो अंतर आएगा उसे समायोजित नहीं किया जाएगा, अपितु गणना में आने वाले जीएसटी टैक्स का भुगतान करना होगा। इस परेशानी से बचने के लिए व्यापारी सरसों की बिक्री ही नहीं कर रहे हैं।
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