कुष्ठ रोग का खतरा अभी भी कायम
महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी
सरकारी स्तर पर तय मानदंडों की बात करे, तो रेवाड़ी जिले में कुष्ठ रोग नियंत्रण में कहा जाएगा, लेकिन आकड़ों का सच यह भी है कि कुष्ठ रोग का खतरा अभी भी कायम है। दस हजार की आबादी पर एक कुष्ठ रोगी होने तक की स्थिति सरकारी भाषा में कुष्ठ उन्मूलन का लक्ष्य पूरा कर देती है, लेकिन खतरा इस बात का है कि नियंत्रित स्थिति के बावजूद हर वर्ष नए कुष्ठ रोगी सामने आ रहे है।
जिले में अभी भी 10 कुष्ठ रोगी उपचाराधीन है, लेकिन वास्तविक संख्या सरकारी आकडे़ से अधिक हो सकती है। नए कुष्ठ रोगियों की तलाश में अब स्वास्थ्य विभाग की टीम घर-घर जाएगी। सिविल सर्जन डा. एचआर यादव ने जागरण को बताया कि आम लोगों को कुष्ठ रोग के प्रति जागरूक करने के लिए 30 जनवरी से 13 फरवरी तक जागरूकता पखवाड़ा चलाया जाएगा। इस दौरान इश्तहार आदि वितरित किए जाएंगे।
बजट की समस्या नहीं : कुष्ठ रोगी के लिए बजट की कोई समस्या नहीं है। सच यह है कि आवंटित बजट का पूरा हिस्सा प्रदेश स्तर पर खर्च ही नहीं हो पाता। जिला कुष्ठ नियंत्रण अधिकारी डा. टीसी तंवर ने जागरण को बताया कि जिला स्तर पर प्रति वर्ष 2-3 लाख रुपये कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम के लिए मिल रहे है, लेकिन यह बाध्यता नहीं। जरूरत अनुसार, स्वास्थ्य विभाग इससे अधिक राशि देने को तैयार है, पर अब स्थिति लगभग नियंत्रण में है। लोग जागरूक हों, तो कुष्ठ रोग पर शत-प्रतिशत अंकुश संभव है।
अब नहीं निकलेंगी कुष्ठ रोगियों की रैलिया : कुछ वर्ष पूर्व तक कुष्ठ उन्मूलन दिवस के मौके पर कुष्ठ रोगियों की रैली निकाली जाती थी। रैली के बाद उन्हे कंबल आदि वितरित किए जाते थे, पर अब ऐसा नहीं होगा। जिला कुष्ठ नियंत्रण अधिकारी डॉ. टीसी तंवर का कहना है कि सरकार ने यह महसूस किया कि कुष्ठ रोगियों का 'प्रदर्शन' उनके लिए पीड़ा देने वाला होता था। भावनाओं को ठेस न लगे, उसके लिए रैलिया निकालने का सिलसिला बंद किया जा चुका है। कुष्ठ रोगियों को कंबल आदि अब भी दिए जाएंगे, लेकिन उनके घर पहुचकर यह सेवा की जाएगी।
भारत में सबसे अधिक कुष्ठ रोगी : डॉ. टीसी तंवर ने जागरण से बातचीत में बताया कि दुनिया में सबसे अधिक 70 प्रतिशत कुष्ठ रोगी भारत में हैं। हरियाणा में स्थिति विकट नहीं है, पर मध्य भारत के कुछ राज्यों में कुष्ठ रोगियों की संख्या चिंताजनक है।
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कुष्ठ रोग के लक्षण
कुष्ठ एक खास किस्म के बैक्टीरिया (माइक्रो बैक्टियम लेपरा) के कारण पैदा होता है। चमड़ी पर ताबे के रग अथवा चमड़ी के रग से कुछ हल्के रग का धब्बा होना इसका प्रमुख लक्षण है। इस धब्बे की पहचान बेहद सरल है, क्योंकि इस खास धब्बे में इतनी सुन्नता होती है कि सुई चुभोने पर भी दर्द महसूस नहीं होता। यदि समय पर इलाज हो, तो अपंगता नहीं हो सकती, क्योंकि यह बीमारी शत प्रतिशत ठीक होने वाली है। जरूरत केवल समय पर उपचार की है। यह उपचार हर सरकारी अस्पताल में नि:शुल्क उपलब्ध है।
जरूरी है सावधानी : डॉ. तंवर के अनुसार, कुष्ठ रोग दूसरे को न फैले, इसके लिए कुष्ठ रोगी के लिए सावधानी रखना बेहद जरूरी है। एयर इफेक्शन के कारण नए रोगी पैदा हो सकते है। इसलिए इस बीमारी के रोगी को मुंह पर कपड़ा आदि रखना चाहिए और बलगम को उचित ढग से नष्ट करना चाहिए।
पहली डोज महत्वपूर्ण : इस बीमारी में पहली खुराक सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। 90 प्रतिशत खतरा पहली खुराक से ही दूर हो जाता है। यह बीमारी दो प्रकार की होती है। मल्टी बेसिलरी में एक वर्ष तक दवा दी जाती है और पॉसी बेसीलरी में छह माह में ही रोग दूर हो जाता है। हालाकि जो अंग एक बार नष्ट हो गया, वह दोबारा पैदा नहीं हो सकता, लेकिन सचेत व जागरूक रह कर हम प्रभावित अंग नष्ट होने से पहले ही बीमारी को दूर कर सकते है।
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स्लोगन लिखवाए
रेवाड़ी : सिविल सर्जन डॉ. एचआर यादव के अनुसार, स्वास्थ्य विभाग ने बस स्टैंड सहित जिले में 100 से अधिक स्थानों पर स्लोगन आदि लिखवाए है। कुष्ठ रोग उन्मूलन के लिए कार्यक्रम जारी रखना तब तक जरूरी है, जब तक कि एक भी कुष्ठ रोगी सामने आता है। उन्होंने कहा कि एक पखवाड़े के दौरान आशा वर्कर, एएनएम व आगनबाड़ी वर्कर घर-घर जाकर ऐसे लोगों की पहचान करेगी, जिन्हे कुष्ठ हो सकता है। अभियान के दौरान चिह्नित रोगियों का तुरत उपचार शुरू कर दिया जाएगा।
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