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पसीने की खुराक से वटवृक्ष बन गया 'ज्ञान का पौधा'

महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी: पसीने की खाद व पसीने का पानी। इसका उदाहरण है यहां का कन्हैयालाल पब्लिक काल

By Edited By: Published: Wed, 28 Jan 2015 07:11 PM (IST)Updated: Wed, 28 Jan 2015 07:11 PM (IST)
पसीने की खुराक से वटवृक्ष बन गया 'ज्ञान का पौधा'

महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी: पसीने की खाद व पसीने का पानी। इसका उदाहरण है यहां का कन्हैयालाल पब्लिक कालेज। पांच दशक पूर्व लगाया गया ज्ञान का पौधा आज वट वृक्ष बन पाया है। वर्ष 1965 में लगाए गए इस पौधे के वटवृक्ष बनने की कहानी यहां के कई गणमान्य लोगों के संघर्ष व जीवट का परिणाम है। आज कालेज बेशक भव्य भवन में चल रहा है, लेकिन कम लोग जानते हैं कि प्रथम शैक्षणिक सत्र की शुरुआत तंबुओं से हुई थी।

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70 हजार में 28 बीघा जमीन

मात्र 70 हजार रुपये में खरीदी गई थी कालेज के लिए 28 बीघा जमीन। अतीत में झांके तो उस समय ये रकम जुटाना आसमां से तारे तोड़ने जैसा था।

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जावित्री शर्मा ने दिए थे डेढ़ लाख

वर्ष 1963 में उस समय डेढ़ लाख रुपये आज के करोड़ों से भी अधिक थे। बहुत बड़ी बात थी, लेकिन जब शहर के लोगों ने स्व. कन्हैयालाल शर्मा की धर्मपत्‍‌नी जावित्री देवी से इस बारे में अनुरोध किया तो उन्होंने सहर्ष डेढ़ लाख रुपये दे दिए। ये कालेज स्थापना की दिशा में अहम कदम था। इसी से जमीन खरीदने जैसे काम पूरे किए गए। शहर के लोगों ने भी जावित्री देवी के सहयोग को नमन करते हुए इस कालेज का नाम उनके पति कन्हैयालाल के नाम पर रख दिया।

तंबू के नीचे बीता था पहला सत्र

कालेज का पहला सत्र तंबू व पेड़ों की छांव में बीता था। वर्ष 1964 में खरीदी जमीन को समतल करवाकर उस समय प्रसिद्ध रही दिल्ली की डीसीएम मिल के प्रबंध निदेशक भरत राम से कालेज का शिलान्यास करवाया गया। तब इस कालेज में 250 विद्यार्थी थे, जबकि अब ये संख्या 4 हजार से भी अधिक पहुंच चुकी है। इसे पीजी कालेज का दर्जा भी मिल चुका है। पब्लिक एजुकेशन बोर्ड इस कालेज का संचालन करता है, लेकिन इस कालेज की अपनी प्रबंधकारिणी भी है।

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कालेज शहर के कई लोगों के जज्बा और दृढ़ संकल्प के बलबूते पर खड़ा हुआ था। समाज के उन लोगों ने इस कालेज के निर्माण के लिए पसीना बहाया, जिनके मन में शिक्षित समाज बनाने की दृढ़ इच्छा थी। रेवाड़ी शहर के हजारों विद्यार्थी इस कालेज से पढ़कर उच्च पदों पर सेवारत है। मैं स्वर्ण जयंती वर्ष पर उन सभी को नमन करता हूं, जिनकी बदौलत ये तंबू से भव्य भवन तक का सफर पूरा हुआ है।

-आनंद स्वरूप डाटा, प्रधान

केएलपी कालेज।


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