लीड-16 वर्षो से छात्रों को पढ़ा रहे देवदत्त शास्त्री
जनहित जागरण: शिक्षा ------ फोटो: 19 एनएआर 15 व 15ए -सबहेड--सेवानिवृत्ति के बाद से नारनौल के श
जनहित जागरण: शिक्षा
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फोटो: 19 एनएआर 15 व 15ए
-सबहेड--सेवानिवृत्ति के बाद से नारनौल के शारदा संस्कृत महाविद्यालय में जारी रखा शिक्षण कार्य
- 84 की उम्र में भी नि:स्वार्थ भाव से बच्चों को कर रहे हैं शिक्षित
-1954 में लोवर मिडिल स्कूल बाछौद में हुई उनकी नियुक्ति
राजेंद्र कुमार, नारनौल : शिक्षक उस दीपक के समान है, जो खुद जलकर दूसरों को रोशनी देता है। दूसरों को संस्कार देना व बड़ों का आदर व सत्कार कराना भी शिक्षक ही सिखाता है।
उक्त पंक्तियां मोहल्ला पीरआगा निवासी मास्टर देवदत्त शास्त्री पर सटीक बैठती हैं। उन्होंने न केवल सरकारी नौकरी पर रहते हुए बच्चों को अच्छी शिक्षा दी, बल्कि सेवानिवृत्ति के बाद भी वे नि:स्वार्थ भाव से बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। 84 साल के होने के बावजूद वे इस समय गौड़ ब्राह्मण सभा नारनौल में स्थित शारदा संस्कृत महाविद्यालय में 16 वर्षो से बिना वेतन के छात्रों को संस्कृत पढ़ा रहे हैं।
गांव भूषण कलां में 10 मई 1930 को जन्मे देवदत्त शास्त्री ने पुरानी मंडी स्थित किशोरी लाल संस्कृत महाविद्यालय में पहली कक्षा से शास्त्री तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने काव्य तीर्थ, साहित्याचार्य उसी महाविद्यालय से पास की, जिसके बाद उन्होंने 14 जून 1950 को एक कमेटी बनाकर राष्ट्रीय हाई स्कूल स्थापित किया गया, जिसमें उन्होंने हजारों छात्रों को संस्कृत और हिंदी का ज्ञान दिया। 1954 में उनकी नियुक्ति लोवर मिडिल स्कूल बाछौद में संस्कृत अध्यापक के रूप में हुई। वर्ष 1956 में उन्होंने सोशल एजूकेशन में पढ़ाने हेतु सरकार से आग्रह किया। सरकार द्वारा स्वीकृति मिलने पर उन्होंने गांव नांगल सिरोही में 20 गांवों का एक सामाजिक केंद्र बनाया तथा वहां के बच्चों को शिक्षित करने लगे। देवदत्त के कार्य से प्रभावित होकर सरकार ने उन्हें पटियाला बुला लिया। वहां पर भी उन्होंने गांव कल्याण में 20 गांवों का सामाजिक केंद्र खोला। सरकार ने इनके कार्यो से प्रसन्न होकर उन्हें प्रशंसा पत्र भी दिया। वे बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ समाजसेवा का कार्य भी करते थे। उन्होंने राताकलां में लोवर मिडिल स्कूल में कमरों का निर्माण भी कराया।
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सामाजिक व धार्मिक सेवा के लिए कर रहे हैं कार्य
मास्टर देवदत्त शास्त्री के 1988 में सेवानिवृत्त होने के बाद गौड़ ब्राह्मण सभा द्वारा उन्हें सभा का आजीवन सदस्य बनाया गया। इसके बाद उन्होंने गौड़ ब्राह्मण सभा द्वारा संचालित शारदा संस्कृत महाविद्यालय में 16 वर्षो से लगातार बिना वेतन के छात्रों को कर्म कांड, ज्योतिष व शास्त्री आचार्य का ज्ञान देकर हजारों छात्र तैयार किए, जो आज सामाजिक व धार्मिक सेवा करने के लिए कार्य कर रहे हैं। देवदत्त शास्त्री 84 वर्ष की उम्र में भी निस्वार्थ भाव से संस्कृत और हिंदी का ज्ञान दे रहे हैं। इसके लिए वे रोजाना शाम चार बजे गौड़ ब्राह्मण सभा पहुंचकर वहां बच्चों को पढ़ाते हैं।