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बाटम-सुविधाओं के अभाव में बेहतरी की उम्मीद

खेल जानर : फोटो संख्या 08 स्लग-उपेक्षा फ्लैग-जिले के करीब ढाई सौ से अधिक खिलाड़ी प्रदेश के विभि

By Edited By: Published: Thu, 30 Oct 2014 05:04 PM (IST)Updated: Thu, 30 Oct 2014 05:04 PM (IST)
बाटम-सुविधाओं के अभाव में बेहतरी की उम्मीद

खेल जानर :

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फोटो संख्या 08

स्लग-उपेक्षा

फ्लैग-जिले के करीब ढाई सौ से अधिक खिलाड़ी प्रदेश के विभिन्न जिलों में भाग ले रहे हैं

-खिलाड़ियों के अनुसार मिलने वाली डाइट की राशि नाकाफी

-औपचारिकताओं तक सिमटी प्रतियोगिताएं

जागरण संवाददाता, रेवाड़ी :

इन दिनो शिक्षा विभाग की ओर से राज्यस्तरीय खेलकूद प्रतियोगिताएं जोरों पर चल रही हैं। भले जिले में कोई राज्यस्तरीय प्रतियोगिता नहीं हो रही हो, लेकिन जिले के करीब ढाई सौ से अधिक खिलाड़ी प्रदेश के विभिन्न जिलों में भाग ले रहे हैं। इन खिलाड़ियों का जिलास्तर तक आयोजित प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन के आधार पर राज्यस्तरीय प्रतियोगिता के लिए चयन हुआ है।

खिलाड़ियों को वर्दी भी नहीं

इन खिलाड़ियों को एक टीम के रूप में दिखने के लिए अलग से वर्दी की राशि भी नहीं मिलती। खिलाड़ियों और कुछ प्रशिक्षकों का कहना है कि राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वालों के लिए कम से कम शिविर लगाए जाने चाहिए, ताकि दूसरे जिलों में जाने से पहले अपना अभ्यास कर सकें। जो खिलाड़ी जिले में प्रथम रहे उनके लिए राज्यस्तरीय प्रतियोगिता के लिए कोई शिविर नहीं लगाए गए। कुछ खिलाड़ियों ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए बताया कि यदि उन्हें सुविधाएं मुहैया कराई जाएं तो वे अपना और दमखम दिखा सकते हैं।

स्पैट वजीफा पाने तक सिमटा

स्पो‌र्ट्स एंड फिजिकल एप्टीट्यूड टेस्ट (स्पैट) केवल वजीफा पाने तक सिमटकर रह गया है। स्पैट में चयनित होने वाले खिलाड़ियों को केवल वजीफा ही मिल रहा है। खेलों में भी उन्हें दमखम दिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

सौ रुपये में डाइट नाकाफी

खिलाड़ियों और उनके साथ जाने वाले प्रशिक्षकों को डाइट के रूप में सौ रुपये प्रतिदिन मिलते हैं। आज की इस महंगाई में सौ रुपये में तीन वक्त की डाइट लेना संभव नहीं है। इसी राशि से उन्हें आयोजन स्थल तक जाने के लिए आटो किराया भी वहन करना पड़ता है।

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स्कूलों में खेलों को बढ़ावा देने का काम डीपीई और पीटीआइ की सक्रियता पर निर्भर है। बजट और संसाधनों के बारे में उच्च विभाग को निर्णय करना होता है। अच्छी प्रतिभाओं के लिए संसाधनों की कमी आड़े नहीं आती। वे अपना रास्ता स्वयं ही तलाश लेते हैं।

-भूपेंद्र सिंह, सहायक शिक्षा अधिकारी (खेल) रेवाड़ी।


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