कोई भी मांग सकता है टिकट
महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी:
सतीश खोला भाजपा की रेवाड़ी जिला इकाई के प्रधान हैं। वर्ष 2007 में हजकां का दामन थामकर राजनीति में कदम रखने वाले सतीश खोला भी 22 अन्य आवेदकों के साथ रेवाड़ी विधानसभा सीट से टिकट के दावेदार थे। भाजपा में आने से पूर्व खोला कुछ समय इनेलो में भी रहे तथा पिछली बार कोसली विधानसभा सीट से इनेलो की टिकट पर चुनाव भी लड़ा। 7 जनवरी 1971 को जन्मे खोला सिविल इंजीनियर हैं। बिट्स पिलानी से उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी।
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अंतिम समय तक भाजपा टिकट मिलने का दावा करने वाले सतीश खोला टिकट की दौड़ में रणधीर सिंह कापड़ीवास से मात खा गये। उन्हें अंतिम समय तक ये भरोसा था कि पार्टी जिला प्रधान की कुर्सी की तरह टिकट भी उनकी झोली में ही डालेगी, लेकिन कुशल संगठनकर्ता के उनके दावों को पार्टी ने कोई तवज्जो नहीं दी। कम समय में कायम किये गये अपने संबंधों के बल पर सतीश खोला मजबूती के साथ खुद को टिकट की रेस में सबसे आगे बताते रहे, लेकिन उनके हर तर्क पर कापड़ीवास की वरिष्ठता भारी पड़ी। खास बात ये है कि टिकट से वंचित रहने के बाद खोला अतीत की तरह अपने दल से नाराजगी जाहिर नहीं कर रहे हैं, बल्कि संगठन की मजबूती की बात कर रहे हैं। टिकट की दौड़, जिले में टिकटार्थियों के बीच पनपे असंतोष व राजनीतिक सफर को लेकर जागरण ने उनसे विस्तार से बात की। प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश-
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टिकट की बाजी आप हार गये। क्या टिकट पर कैंची चलने से किसी तरह का मनमुटाव है? भाजपा से किसी तरह की शिकायत?
-भाजपा लोकतांत्रिक पार्टी है। हर कार्यकर्ता हक से यहां टिकट मांग सकता है। रेवाड़ी से भी पार्टी के वरिष्ठ व कनिष्ठ कुल 22 कार्यकर्ताओं ने टिकट मांगी थी। रणधीर सिंह कापड़ीवास को मुझसे वरिष्ठ मानकर टिकट दी गई है। मनमुटाव की बात सोच भी नहीं सकता। मैंने टिकट की घोषणा होते ही पहला फोन कापड़ीवास को खुद किया है। मैं चुनाव में हर संभव मदद करूंगा। रही बात टिकट पर निचले या ऊपर के लेवर पर कैंची चलने की तो पार्टी किसी एक को ही टिकट दे सकती थी। मैं अंतिम समय तक रेस में रहा, यही बड़ी बात है। भाजपा से किसी तरह की शिकायत नहीं। मजबूती के साथ पार्टी के साथ हूं।
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भाजपा से आपका जुड़ाव सबसे बाद में हुआ है। इससे पहले आप हजकां व इनेलो में भी रहे। कम समय में इतनी बार दल बदलने की क्या मजबूरी रही और क्या अब ये मान लिया जाये कि भाजपा आपका स्थायी ठिकाना है?
-मैं भाजपा में आया ही इस बात को सोचकर था कि एक राष्ट्रवादी विचारधारा वाली पार्टी में स्थायी रूप से रहकर राजनीति कर सकूं। हजकां व इनेलो का दौर तो तब का है, जब मेरी राजनीति परिपक्व नहीं हुई थी।
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किस तरह से राजनीति में पदार्पण हुआ था?
-7 जुलाई 2007 को कुलदीप बिश्नोई के साथ जुड़ा। उस समय हजकां अस्तित्व में नहीं आई थी। 2 दिसंबर 2007 को हजकां का गठन होने पर मुझे ग्रामीण इकाई का जिला प्रधान बनाया गया।
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फिर हजकां को छोड़ने, इनेलो से जुड़ने व भाजपा में आने का घटनाक्रम कैसे हुआ?
-मैं कोसली से चुनाव लड़ने की इच्छा से हजकां में गया था, लेकिन हजकां का बसपा का सिरे नहीं चढ़ने वाला समझौता हुआ और कोसली सीट बसपा के खाते में चली गई। इस बीच जब जगदीश यादव ने वर्ष 2009 के चुनाव से ऐन पहले इनेलो छोड़ा तो इनेलो सुप्रीमो ने मुझे टिकट देने का आश्वासन दिया तथा मुझे चुनाव लड़वाया, लेकिन वहां जाकर ये महसूस हुआ कि इनेलो के नेता मुझे सम्मान नहीं दे पा रहे हैं। 23 सितंबर 2011 की जनसभा में मुझे नीचा दिखाने का प्रयास हुआ और मैने 27 सितंबर को भाजपा का दामन थाम लिया। तब से पार्टी में पूरी निष्ठा के साथ काम कर रहा हूं।
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टिकट वितरण के बाद रेवाड़ी जिले की तीनों सीटों पर असंतोष दिख रहा है। जिला प्रधान के नाते कैसे स्थिति संभल पायेगी?
-रेवाड़ी जिले की तीनों सीटों पर अब कहीं कोई असंतोष नहीं है। हर पार्टी कार्यकर्ता मिलकर तीनों उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने में सहयोग करेंगे।
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