बाटम : महागठबंधन को लेकर लग रहे कयास
दांव पेंच का लोगो लगाएं
-बराबर सीटों से कम पर नहीं जुड़ेंगे बसपा और हजकां के तार
-सीएम पद पर हजकां को खुला हाथ नहीं देना चाहता हाथी
महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी: भाजपा से नाता टूटने के बाद बेशक हरियाणा जनहित कांग्रेस ने विनोद शर्मा की अगुवाई वाली हरियाणा जनचेतना पार्टी से गठबंधन कर लिया है, लेकिन अब बसपा के साथ इन दोनों दलों को मिलाकर नये महागठबंधन की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। तीन दलों का महागठबंधन अस्तित्व में आयेगा या फिर चर्चाओं में ही दम तोड़ देगा, इसके लिए राजनीति के जानकार अपने-अपने तर्क दे रहे हैं। परंतु महागठबंधन होने के पक्ष में अंदर की खबर ये है कि बराबर सीटें मिले तो बसपा भी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी का समय ढाई वर्ष से कम करने पर सहमत हो सकती है।
पिछले कुछ दिनों के दौरान दोनों दलों के बीच बातचीत का दौर जारी हैं। इस दौरान बसपा की ओर से ये स्पष्ट कर दिया गया है कि बराबरी से कम पर हजका से तार नहीं जोड़े जायेंगे। सूत्रों के अनुसार बसपा की ओर से अभी यही कहा जा रहा है कि पार्टी किसी सूरत में छोटे भाई की भूमिका में रहने के लिए तैयार नहीं है। सीधे तौर पर बसपा भाजपा से वर्ष 2011 में हुए समझौते की तरह ही हजकां से गठबंधन चाहती है, लेकिन हजकां इसे दबाव की राजनीति मान रही है। यह भी कहा जा रहा है कि महागठबंधन से जिन दलों में चिंता बढ़ रही है, उन दलों से भी बाधाएं डालने का पूरा प्रयास होगा।
कल तक ये बात मानी जा रही थी कि महागठबंधन के मूर्तरूप लेने में बड़ी बाधा सीएम की कुर्सी की ढाई वर्ष की दावेदारी है, लेकिन सूत्रों के अनुसार बराबर सीटों पर समझौता हो तो बसपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार अरविंद शर्मा आधे कार्यकाल का दावा कम करने पर सहमत हो सकते हैं। अंतरंग बातचीत में मायावती की पार्टी ने ये संकेत दिये हैं कि सीटों की संख्या में तो बराबरी पर खड़ी होने के लिए तैयार है, लेकिन कुलदीप बिश्नोई को ये छूट नहीं दी जा सकती कि सत्ता में आने पर लगातार पांच वर्ष तक मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके पास ही रहे।
जनचेतना को लेकर स्टैंड स्पष्ट
हरियाणा जनचेतना पार्टी को लेकर बसपा का स्टैंड स्पष्ट है। बसपा सूत्रों के अनुसार समझौता होने पर विनोद शर्मा की पार्टी के लिए जितनी सीटें हजकां छोड़ेगी, उतनी ही सीटें बसपा छोड़ देंगी। यदि महागठबंधन में अन्य छोटे दल शामिल किये जाते हैं तो दोनों पार्टियां ऐसे दलों के लिए भी अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली सीटों में से बराबर सीटें देकर महागठबंधन को कायम रख सकती है। राजनीति के जानकारों के कहना है कि बसपा के लिए 90 सीटों पर चुनाव लड़कर कम सीटें जीतने की बजाय कम सीटों पर चुनाव लड़कर अधिक सीटें जीतने का रास्ता कहीं बेहतर है। यही बात हजकां पर भी लागू होती है, लेकिन यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि हर दल को खुद की ताकत वास्तविकता से अधिक होने का भ्रम होता है। हरियाणा में ये भ्रम कुछ अधिक ही लग रहा है।