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जो कल तक थे ' गैरों' में वो आज पड़े है पैरों में

By Edited By: Published: Fri, 29 Aug 2014 06:07 PM (IST)Updated: Fri, 29 Aug 2014 06:07 PM (IST)
जो कल तक थे ' गैरों' में वो आज पड़े है पैरों में

प्रचार के रंग:

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-कई संभावित प्रत्याशी वोटरों के बीच अपना 'नृत्य' दिखा रहे हैं

-चुनाव के दृष्टिगत कई अनोखे नजारे देखने को मिल रहे हैं

जागरण संवाददाता, नारनौल :

हरियाणा में विधानसभा चुनावों की घोषणा अभी तक हुई भी नहीं है किंतु चुनाव प्रचार का पारा गर्म है। एक ही पार्टी के कई संभावित प्रत्याशी वोटरों के बीच जाकर अपना 'नृत्य' दिखा रहे हैं। कुछ तो स्वयं दिल्ली में बैठे अपनी टिकट पक्की कर रहे हे और उनका परिवार वोट पका रहा है। अटेली विधानसभा क्षेत्र में तो कुछ संभावित प्रत्याशी अभी से प्रचार में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आने वाले चुनाव के दृष्टिगत कई अनोखे चुनावी नजारे देखने को मिल रहे है।

चुनाव की हवा ऐसी चली है कि कल तक एक दूसरे की बुराई करते नहीं थकते थे वो आज पैरों में पड़े है और उनका गुणगान कर रहे है। 'गैरों' की पार्टी में अब शामिल जो हो गए और उनके गुण गाने लगे हे। टोन बदलते देर नहीं लगाई है। पार्टी के बड़े नेता को दुश्मन बताते थे आज उन्हे फूलमाला देकर उनके चरणों में धोक लगाकर कहते नजर आते है-तन,धन, मन, तू सब कुछ मेरा।

मूछों लग गए ताव-

अब तो जिनकी घर में कद्र नहीं होती थी या घर में सही ढग से खाना नहीं मिलता था वे अपनी चौधर चमकाने के लिए मूछों पर ताव लगाने लगे हैं। वो कहते है कि अब दिन बदलेंगे। सही कि बारह माह में कुरड़ी के रग बहुरते है। अब तो बेहतर खाना, पीना और मुर्ग मुसल्लम मिलने की आश में मूछों पर ताव लगा रहे है। टिक्कड़पाड़ भी प्रसन्न नजर आ रहे है। सरकार बदले या न बदले, राजनीति में चाहे कोई फेर बदल हो उनके दिन जरूर बदलेंगे।

भूत बंगले हुए आबाद-

जिन जगह पर लोग लघुशका करते वक्त भी कापते थे वहा अब महफिल जमने लगी है। चुनावी चखचख सुनाई पड़ती है और जाम छलकने लगे है। जिन्हे साफ पानी पीने को नसीब नहीं होता था अब उन्हे आदर सहित शराब मिलती है। शराब पीते है तब तक वोट शराब देने वाले की और दूसरा नेता शराब देने आ गया तो फिर सारी वोट उसकी।

तू डाल-डाल तो मैं पात-पात-

नेता बहुत चालाक हो गए तो वोटर भी कहीं अधिक चालाक हो गए है। पाच साल तक दर्शन नहीं देने वाले नेता जब वोट मागने आ रहे है तो मतदाता सभी को वोट देने का आश्वासन दे रहे है। सभी से राम राम सभी अपने किंतु एक वोट मिलेगा किसे कहना मुश्किल। नेता यह थाह नहीं लगा पा रहे है कि वोट किसे मिलेगा।

तुम्हें तो रेल की टिकट मिलेगी-

वोटर अब चालाक हो गए है। वो कहते हुए देर नहीं लगाते। एक नेता ने वोट मागते हुए कहा कि मैं अटेली से टिकट लेकर आऊंगा तो वोटर ने झटपट कहा कि किस टिकट की बात कर रहे हो, तुम्हे तो कोई टिकट नहीं मिलेगा, हा, रेल की टिकट जरूर मिल सकती है किंतु उसके लिए भी लाइन में लगना होगा। आज कल तो उसमें भी सीटें आरक्षण कराना मुश्किल है। ऐसे में नेता अपना सा मुंह लेकर चला गया।

दल बदलकर चुनाव लड़ने की फिराक में-

गिरगिट की भाति रग बदलने वाले कुछ नेता तो अब तक कई पार्टियों में रहकर खूब रस मलाई खाकर अब दल बदलकर टिकट पाने की फिराक में है। अपने क्षेत्र में रहकर छोटे नेता रहकर खूब नुकसान किया और अब वो बड़े नेता बनकर बड़ा नुकसान करने की सोच रहे है।


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