बाटम- खेतों में लगे खंभे बन रहे हैं जानलेवा
सबहेड-बिजली निगम के अधिकारियों को यह स्पष्ट निर्देश हैं कि सीमेंट के खंभे लगाए जाएं
-किसानों के साथ आए दिन हो रही हैं घटनाएं
-असावधानी के कारण किसान काल का ग्रास बना रहे हैं
फोटो: 27 एनएआर 08
संवाद सहयोगी, कनीना : किसान के खेतों में खड़े बिजली के खंभे, तार, फव्वारा पाइप, थ्रेसर मशीन अंग भग करने एवं मौत के घाट उतारने में अहम भूमिका निभा रहे है। आए दिन किसानों के साथ इस प्रकार की घटनाएं घट रही है।
बिजली विभाग के अधिकारियों को यह स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि लोहे के खंभों को हटाकर उनके स्थान पर सीमेंटेड खंभे लगाए जाएं। देखा जाए तो यह कार्य कागजों में सभी लोहे के खंभे बदल दिए गए है, किंतु अभी भी खेतों में लोहे के खंभे देखने को मिल रहे है। खेतों में साधारण लाइन से लेकर हाईटेंशन लाइनों का जाल बिछा हुआ है। यह तार असावधानी के कारण किसानों को काल का ग्रास बना रहे है।
लटकते तार
किसानों के खेतों में ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र में भी कई स्थानों पर बिजली के तार लटकते रहते है। कई जगह ये तार काफी नीचे हैं। किसानों के काम करने के दौरान बिजली के तार छू जाते हैं, और उनकी मौत हो जाती है। विभाग में बार-बार शिकायत करने पर भी इसका समाधान नहीं मिलता। किसान योगेश कुमार के खेत में बिजली के तार धरती को छूने का प्रयास कर रहे है।
लोहे के पोल
किसान के खेतों में आज भी लोहे के पोल खड़े है। पोल में करट उतरने की संभावना अधिक होती है। इससे किसानों के हताहत होने के साथ पशुओं की मौत भी हो रही है। कई बार तो बिजली के तार ही टूटकर गिर जाते है, जिससे पशुओं की मौत हो रही हैं। बिजली के पुराने तार बदले नहीं जाते है।
फव्वारा पाइप
किसानों की अकारण मौत का एक कारण एल्युमीनियम का पाइप भी है। अक्सर देखने में आता है कि किसान फव्वारा पाइप लाइन को बदलने के लिए खेत में जाता है, और थोड़ी सी असावधानी के चलते पाइप को ऊपर उठा देते हैं जो ऊपर से गुजर रही बिजली की लाइन से छू जाता है और मौत हो जाती है।
बिजली के तारों का जंजाल
लगभग हर दूसरे-तीसरे किसान के खेत से बिजली की तारे गुजर रही है। हर गाव में पावर हाउस बन जाने से भी तारों का जाल बिछ गया है। ये तारों के जंजाल जहा जीव जंतुओं के लिए समस्या बन गए है वहीं इनसे इसानी जीवन को खतरा बन गया है। सरकार द्वारा परिवार के मुखिया की मौत होने पर जहा आर्थिक सहायता दी जा रही है। कनीना के इफको केंद्र के अधिकारी अनिल कुमार ने बताया कि एक बोरा खाद लेने पर चार हजार रुपये का बीमा तथा अधिकतम एक लाख का बीमा स्वत: हो जाता है। यह राशि पीड़ित व्यक्ति को दी जाती है।
समस्या का कैसे हो समाधान
किसान राजेंद्र सिंह, सूबे सिंह, अजीत कुमार का कहना है कि किसान को सचेत होकर खेतों में काम करना चाहिए। हो सके तो एल्यूमीनियम की बजाय प्लास्टिक के पाइप प्रयोग करने चाहिए। थ्रेसिंग पर काम करते वक्त भी सावधानी की जरूरत है।