एंकर..विदेशों से बरकरार है ग्वार गम की मांग
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: लंबी उपेक्षा के बाद पिछले तीन-चार वर्षो से ग्वार का उत्पादन फिर से बढ़ने लगा है। इसकी बड़ी वजह है विदेशों से ग्वार गम की मांग का बरकरार रहना। हालांकि कम उत्पादन के चलते अब रेवाड़ी जिले में ग्वार गम के उद्योग नहीं है, लेकिन उत्पादन बढ़ने से अब फिर से रेवाड़ी में ग्वार गम उद्योग स्थापित होने की संभावना बढ़ गई है। विविध उपयोग के कारण ग्वार गम की मांग कई देशों से हो रही है।
सिरसा व हिसार से लेकर रेवाड़ी तथा महेंद्रगढ़ तक की बेल्ट शुष्क-रेतीली है। इस बेल्ट को ग्वार उत्पादन में सबसे आगे माना जाता है। स्प्रिंकलर सिस्टम के आने से पहले शुष्क रेतीले खेतों में ग्वार की फसल ही अहम थी, लेकिन तब इसका उपयोग पशुचारा के रूप में ही अधिक होता था। विदेशों से भी मांग नगण्य थी। मांग कम होने के कारण ही रेवाड़ी में ग्वार गम उद्योग खड़ा होने से पहले ही दम तोड़ गया था। ग्वार की ओर सबसे अधिक ध्यान तब आकर्षित हुआ जब 2 हजार रुपये के आसपास रहने वाले ग्वार के भाव तीन वर्ष पूर्व रिकार्ड 32 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गये थे। हालांकि उसके बाद एकाएक रकबा बढ़ने व मांग कमजोर होने से ग्वार के रेट कम हो गये, लेकिन ग्वार सामान्यतया 5 हजारी तो बना ही रहा। कृषि विभाग भी ग्वार के उत्पादन को किसानों के लिए फायदे का सौदा बता रहा है।
इसमें होता है ग्वार का इस्तेमाल
ग्वार गम का इस्तेमाल खनन क्षेत्र में भी होता है तथा दवा उद्योग में भी। इसके अलावा जहां तेल के कुएं हैं, वहां लीकेज रोकने में भी ग्वार सबसे उपयोगी है। फूड इंडस्ट्रीज व कास्मेटिक इंडस्ट्रीज में भी ग्वार की भारी मांग है।
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रेवाड़ी में ग्वार का रकबा करीब 10 हजार हेक्टेयर है। इस बार 7 हजार हेक्टेयर में ग्वार की बिजाई हुई है। बारिश कम होने के कारण ऐसा हुआ है। वैसे ग्वार का उत्पादन कुछ वर्षो से बढ़ना शुरू हुआ है। ग्वार का व्यवसायिक उत्पादन किसानों के हित में है, क्योंकि ग्वार गम की मांग विदेशों में बढ़ती जा रही है।
-दीपक यादव, उपमंडल अधिकारी
कृषि विभाग।
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ग्वार उत्पादन पर किसान जितना अधिक ध्यान देंगे। उतना ही उन्हें लाभ मिलेगा। ग्वार पशुचारा नहीं बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने वाली अहम फसल है। ग्वार गम दुनिया के कई देशों में इस्तेमाल हो रहा है। रेवाड़ी में भी अब ग्वार गम उद्योग की संभावना बन गई है।
-डा. वीके यादव, वरिष्ठ वैज्ञानिक
क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, बावल।
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महत्वपूर्ण तथ्य:
-तीन-चार दशक पहले रेवाड़ी जिले में ग्वार का रकबा 50 हजार एकड़ से भी अधिक होता था।
-पांच वर्ष पहले तक ग्वार से किसानों का रुझान पूरी तरह घट चुका था।
-तीन वर्ष पूर्व आई रिकार्ड तेजी व ग्वार गम कंपनियों के प्रचार ने किसानों को फिर ग्वार की ओर आकर्षित किया है।
-तीन वर्ष से औसत रकबा करीब 10 हजार हेक्टेयर है। इस बार केवल 7 हजार हेक्टेयर है।