जल व जंगल की तरह जमीन पर भी खतरा
पृथ्वी दिवस पर विशेष: रेड पट्टी में लगाएं
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इस खबर से संबंधित फोटो फाइल संख्या 21 आरईडब्ल्यू. 7 में है।
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-अब भारी पड़ने लगी है प्राकृतिक व्यवस्था में अनावश्यक छेड़छाड़,
-वाहनों की बढ़ती संख्या बढ़ा रही है ग्लोबल वार्मिग की समस्या
-बढ़ गये कंक्रीट के जंगल, गायब हो गई नदिया
-औद्योगिक विस्तार से प्रदूषित हुआ भूमिगत जल
महेश कुमार वैद्य, रेवाड़ी: 'मैं रेवाड़ी में हू। अतीत से जोड़ें तो साढ़े पाच हजार वर्ष पुराना रेवा वाड़ी। महाभारत काल के राजा रेवत की बेटी रेवती के नाम पर बसा शहर। भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम की ससुराल। बलराम की पत्नी तथा राजा रेवत की बेटी के नाम पर बसा मैं रेवाड़ी शहर किसी जमाने में जंगलों से घिरा हुआ था। साहबी जैसी नदिया मेरे चरण धोकर निकलती थी, लेकिन अब तो मेरी पहचान ही बदल गई है। पाच दशक में तो विकास नाम पर जो कुछ हुआ, उसने मुझे व मेरे साथ सटे कस्बों व गावों को बदल दिया है। मेरे चरण धोने वाली साहबी अब मुझसे रूठ चुकी है। जिन जंगलों में कभी जंगली जानवर कुलाचें भरते थे, वहा अब कंक्रीट के जंगल है। मेरे आसपास बसे कई गावों से चिड़िया की चहचहाहट अब गायब हो गई है। कुओं-बावड़ी व पोखर-तालाब पर टिकी मेरी पुरानी व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई है।' ..अरे मेरा तो दम घुट रहा है। बचाओ तेज धुआ मेरे भीतर घुसा आ रहा है। फैक्ट्रियों व वाहनों से निकलने वाले धुएं से मुझे सास लेने में दिक्कत हो रही है। अरे मेरी तो जान जा रही है। ओह! ये तो सपना था। मैं कुशल-मंगल हू। मेरी गलती यह है कि मैं अतीत से वर्तमान का सफर करते हुए कुछ आगे भविष्य में निकल गया था। लेकिन यह मेरी कहानी नहीं है। एनसीआर के लगभग हर शहर की यही कहानी है। गुड़गाव से रेवाड़ी तक, अलवर से लेकर भिवाड़ी तक, नीमराणा से बहरोड़ तक। हर जगह हालात एक जैसे है।
बहरहाल पृथ्वी दिवस पर प्रति वर्ष 22 अप्रैल को हम चिंता अवश्य जताते है, लेकिन अधिकाश शहरों व उनसे सटे गावों की हालत इतनी दयनीय हो चुकी है कि पृथ्वी को सुरक्षित रखने के किसी एक दिन आयोजन से काम नहीं चलेगा। आज की युवा पीढ़ी बुजुर्गो के पास बैठकर पता करेगी तो पता चलेगा कि हमने क्या खोया है? सबसे बड़ी समस्या अब ग्लोबल वार्मिग की है। तापमान का आकड़ा गड़बड़ा रहा है। औसत ताप में बढ़ोतरी हो रही है।
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पाच दशक पहले की स्थिति
-धारूहेड़ा के रास्ते साहबी नदी हर बरसात में दिल्ली की ओर जाती थी। इससे जलस्तर बढ़ता था।
-रेवाड़ी जिले में वनाच्छादित क्षेत्र 25 प्रतिशत से अधिक था।
-दलहन मुख्य पैदावार में शामिल थी।
-अरावली क्षेत्र वन्य जीवों व औषधीय वनस्पतियों के लिए जाना जाता था।
-कुंड-मनेठी क्षेत्र में पहाड़ी पर हरियाली छाई रहती थी।
-मशीनीकरण नहीं था। वृहत्त उद्योग नहीं थे। कुटीर उद्योगों से काम चलता था।
-फैक्ट्रियों के स्थान पर मूंग-मोठ के खेत लहलहाते थे। जंगली जानवर खेतों में भी शरण लिये रहते थे।
-भूमिगत पानी शुद्ध था। जोहड़, कुएं व बावड़ी पर टिकी व्यवस्था जल संरक्षण होता था। जल स्तर नहीं गिरता था।
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वर्तमान की स्थिति
-रेवाड़ी में वनाच्छादित क्षेत्र 3.8 प्रतिशत है। अरावली पौधारोपण क्षेत्र को मिलाकर भी यह आकड़ा लगभग 4 प्रतिशत के आसपास है।
-अब दलहन की खेती अतीत बन चुकी है।
इतना कहते-कहते मेरा दम
-अब करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी अरावली नंगी हो चुकी है।
-अब अरावली क्षेत्र में दूर-दूर तक खनन का दुष्प्रभाव नजर आता है।
-अब देश की सबसे अधिक मोटर साइकिल रेवाड़ी में बनती है। बावल ऑटो हब बन चुका है।
-भूमिगत पानी धारूहेड़ा व बावल जैसे कई स्थानों पर प्रदूषित हो चुका है।
-अब खोल जैसे क्षेत्र में जलस्तर गिर रहा है। वाटर शेड जैसी परियोजनाओं का फिर से सहारा लिया जा रहा है।
-साहबी नदी अब सूख चुकी है। वर्षो से इसमें पानी नहीं आया है। राजस्थान में चैक डैम बनने से यहा का पूरा पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ गया है।
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इनसेट:
नन्हें-मुन्नों ने दिया पृथ्वी बचाने का संदेश
रेवाड़ी: यहा के मोहल्ला कंपनी बाग स्थित संसोरियम पब्लिक स्कूल में सोमवार को विश्व पृथ्वी दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। विद्यार्थियों द्वारा पृथ्वी का माडल बनाया गया तथा मानव श्रृंखला बना कर पृथ्वी को बचाने का संदेश दिया। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि पृथ्वी को सुंदर व हरी-भरी रखने के लिए सभी अपना योगदान दें। इस अवसर पर वक्ताओं ने पृथ्वी दिवस की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सभी को मिल कर प्रयास करने से ही पृथ्वी पर जीवन सुरक्षित रहेगा।