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युवा पीढ़ी में लेखन के प्रति जागृति अच्छे संकेत : डॉ. कुमुद

जागरण संवाददाता, पानीपत एसडी पीजी कॉलेज में हरियाणा की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में हरियाणा सा

By Edited By: Published: Sun, 23 Oct 2016 02:10 AM (IST)Updated: Sun, 23 Oct 2016 02:10 AM (IST)
युवा पीढ़ी में लेखन के प्रति जागृति अच्छे संकेत : डॉ. कुमुद

जागरण संवाददाता, पानीपत

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एसडी पीजी कॉलेज में हरियाणा की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय लेखन प्रशिक्षण कार्यशाला के दूसरे दिन 7 जिलों के 150 छात्र- छात्राओं ने भाग लिया।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. लालचंद गुप्त 'मंगल' ने कथा साहित्य में लघुकथा एवं कहानी लेखन की रचना प्रक्रिया एवं शास्त्रीय विश्लेषण की जानकारी दी। काव्य विधा के प्रशिक्षण में प्रतिभागियों ने गुरुग्राम से आए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल से दोहा, चौपाई, ग़ज़ल, पद, मुक्तक, कुण्डली छंद और काव्य रचना के प्रमुख घटकों व शिल्प विधान के बारे में बताया। सोनीपत से आए वरिष्ठ रचनाकार डॉ. रामेश्वर कम्बोज ने निबन्ध, व्यंग्य निबन्ध, जीवनी, आत्मकथा, संचरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज का उदाहरण देते हुए अवगत करवाया।

अकादमी निदेशक डॉ. कुमुद बंसल ने कहा कि साहित्य के बिना समाज की कल्पना और उत्थान संभव नहीं है। मानवीय मूल्यों के बिना समाज बेमानी है। ऐसी स्थिति में इन कार्यशालाओं का औचित्य और बढ़ जाता है। प्राचार्य डॉ. अनुपम अरोड़ा ने कहा कि विचारों को सही दिशा देना ही इस कार्यशाला का मूल उद्देश्य है। इस अवसर पर डॉ. बाल किशन शर्मा, डॉ. आरपी सैनी, डॉ. संगीता गुप्ता, डॉ. सुरेंद्र वर्मा, डॉ. राकेश गर्ग, प्रो. इंदु पूनिया, प्रो. यशोदा अग्रवाल सहित अन्य स्टाफ सदस्य मौजूद रहे।

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अपने मन की बात छंद में कहें युवा पीढ़ी : डॉ. गिरिराज

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल ने कहा कि आज कविता का रूप बदल सा गया है। कवि छंद लिखना भूल गए हैं। कविता सीखने की इच्छा रखने वाली युवा पीढ़ी को अपने मन की बात छंद में कहनी चाहिए। कविता में तालमेल, विचार और लय जरूर होना चाहिए। छंद की कविताएं हजारों सालों तक जीवित रहती हैं। छंदरहित कविताएं स्मरण शक्ति से बाहर हो जाती हैं।

साहित्य सृजन में अच्छे शब्दों का चयन जरूरी : डॉ. रामेश्वर कम्बोज

केंद्रीय विद्यालय संगठन से अवकाश प्राप्त प्रधानाचार्य डॉ. रामेश्वर कंबोज ने गद्य की विभिन्न विधाओं जैसे आत्मकथा, जीवनी, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, फीचर, समीक्षा, निबंध, गद्य काव्य और डायरी लेखन को याद करते हुए कहा कि अब ये विधाएं कम होती जा रही हैं। इन पर काम करने की जरूरत है। किसी घटना जैसे बाढ़ या हादसे को चित्रात्मक रूप देने के लिए रेखाचित्र विधा का प्रयोग किया जाता है। इस विधा से युक्त लेखन सजीव लगता है। आजकल ये पाठयक्रम में भी नहीं दिखाई देते। इनके लुप्त होने का कारण संस्थाओं व शिक्षकों की रुचि में कमी आना भी है। उन्होंने साहित्य सृजन में अच्छे शब्दों चयन को भी जरूरी बताया।

साहित्य की सर्जिकल स्ट्राइक से आएंगे सुखद परिणाम : लाल चंद गुप्त मंगल

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पूर्व ¨हदी विभागाध्यक्ष व संस्कृति मंत्रालय में मौजूदा वरिष्ठ अध्येता डॉ. लाल चंद गुप्त ने साहित्य व नाटक लेखन में युवा वर्ग की कम होती रुचि पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि साहित्य आज हाशिये पर है और पाठक विमुख है। संवेदनाएं केवल व्हॉटसएप तक सीमित होकर रह गई हैं। सामाजिक व सांस्कृतिक सरोकार सोच के दायरे से निकलते जा रहे हैं। भविष्य के रचनाकारों को किस्सागोई या मंचन के माध्यम से साहित्य लेखन की ओर आना चाहिए।

दफ्तर के अंदर नहीं हो सकता साहित्यकारों का निर्माण : डॉ. कुमुद बंसल

फरवरी, 2016 से हरियाणा साहित्य अकादमी की निदेशक ने कहा कि साहित्य केवल दर्पण ही नहीं, पथ प्रदर्शक भी साहित्य में नई पीढ़ी का निर्माण दफ्तर में रहकर नहीं किया जा सकता। युवा पीढ़ी को साहित्यकारों का रूप देने के उद्देश्य से ही अकादमी ने ऐसी कार्यशाला की है। साहित्य केवल दर्पण ही नहीं, पथ प्रदर्शक भी है।


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