नई किस्मों से किसानों की बढ़ी खुशहाली
बलराज सैनी, पानीपत किसानों में कार्य करने की क्षमता भले ही कम हुई हो, लेकिन खेतीबाड़ी में अपार तरक्
बलराज सैनी, पानीपत
किसानों में कार्य करने की क्षमता भले ही कम हुई हो, लेकिन खेतीबाड़ी में अपार तरक्की हुई है। 48 वर्षो के दौरान कृषि के तरीके बदल गए हैं। पहले जहां सिर्फ इंद्रदेव की मेहरबानी पर फसल होती थी, आज किसान बारिश न होने पर भी अच्छी फसल ले रहे हैं। पहले जहां पर कलर भूमि थी वहां आज फसलें लहला रही हैं।
हरियाणा को बने हुए 48 वर्ष हो चुके हैं। अगर खेतीबाड़ी की बात करें तो जब से हरियाणा बना है, तब से खेतीबाड़ी में खासी बढ़ोतरी हुई है। पहले की तुलना में किसानों में कार्य करने की क्षमता कम हुई है, लेकिन संसाधनों बल पर किसान आज अच्छी पैदावार ले रहे हैं। हरियाणा गठन के समय बैलों से खेती होती थी, परंतु किसान के पास ट्रैक्टर है। बिजली-पानी का इंतजाम न होने के कारण किसान बारिश पर निर्भर थे। धीरे-धीरे खेतों में ट्यूबवेल लगाने लगे। पहले इंजन से ट्यूबवेल चलते थे, परंतु बाद में खेतों में बिजली पहुंच गई। अब तो बिजली भी न आए तो किसान जनरेटर से ट्यूबवेल तो दूर, बल्कि सबमर्सिबल चला लेते हैं। ऐसे में जब से हरियाणा बना है, तब से लेकर आज तक खेती में काफी सुधार हुआ है।
नई किस्मों ने सुधारी किसान की दशा
नई-नई किस्में आने से फसलों की पैदावार बढ़ी है। बुजुर्गो का कहना है पहले फसल की पैदावार इतनी कम होती थी कि बेचना तो दूर, बल्कि घर पर खाने के लिए पर्याप्त मात्रा में अनाज नहीं होता था। लेकिन आज एक आम किसान इतने अनाज की पैदावार कर लेता है कि वर्ष भर के खाने का अनाज रखने के बाद भी मंडियों में बेच देता है।
वर्जन
खेती में पहले की तुलना में अपार तरक्की हुई है। फसल की पैदावार में ढाई से तीन गुणा की बढ़ोतरी हुई है। पहले एक एकड़ में औसतन 10 क्विंटल की पैदावार भी मुश्किल से होती थी, लेकिन आज 20 क्विंटल से भी अधिक की पैदावार हो रही है। यही हाल धान और अन्य फसलों का है।
चुहड़ सिंह रावल, जिला प्रधान, भारतीय किसान यूनियन।
वर्जन
पहले के मुकाबले किसान में कार्यक्षमता कम हुई है, लेकिन संसाधनों के बल पर किसान फसल की अच्छी पैदावार ले रहे हैं। हमारे गांव में कलर जमीन थी, जहां पर कोई भी फसल नहीं होती थी। आज वहां पर गेहूं और धान की फसलें लहलाती हैं।
प्रीतम सिंह, प्रगतिशील किसान, उरलाना खुर्द।