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फरीदाबाद के प्रगतिशील किसान का कमाल, दो एकड़ में केले और पपीते से 7 लाख की कमाई

कुछ करने की चाहत हो तो कुछ भी असंभव नहीं। नारायण सिंह राजस्व विभाग से सेवानिवृत्त हुए और खेती का काम शुरू किया। आज वह दो एकड़ में केले और पपीते की खेती से सात लाख की कमाई कर रहे हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 18 Dec 2020 10:00 AM (IST)Updated: Fri, 18 Dec 2020 10:01 AM (IST)
हरियाणा का किसान कर रहा केले व पतीते से साल में सात लाख की कमाई। फाइल फोटो प्रेट्र

नई दिल्ली [बिजेंद्र बंसल]। भारतीय राजस्व विभाग से सेवानिवृत्त होकर नारायण सिंह वापस अपने गांव मंझावली (फरीदाबाद) लौटे तो पारिवारिक खेती कार्य में जुट गए। खेती में नए प्रयोग करके छोटे भाई मुकेश यादव तो पहले से ही प्रगतिशील किसानों की श्रेणी में खड़े थे। नारायण सिंह ने भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बिकने वाली गेहूं, धान की सामान्य फसलों की बजाय फल, सब्जियों की आधुनिक खेती पर ध्यान दिया। दो साल की मेहनत के बाद नारायण सिंह की मेहनत भी रंग लाई और उनके खेत के एक एकड़ में चार लाख रुपये का केला तथा एक एकड़ में तीन लाख रुपये की पपीतेे की पैदावार हुई। 

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केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मिलने आए हरियाणा के प्रगतिशील किसानों के प्रतिनिधिमंडल में दिल्ली आए नारायण सिंह ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा, किसान जब तक अपनी पैदावार के व्यापार में खुद भी शामिल नहीं होगा तब तक उसकी आय नहीं बढ़ेगी। इस समय शहरों के आसपास के गांवों में खेती खत्म होने की चुनौती से निपटना है।

नारायण सिंह ने कहा कि किसान की नई पीढ़ी खेती नहीं करना चाहती, क्योंकि उन्होंने अपने गांव के नजदीक के शहरों की चकाचौंध देख ली है। मौजूदा समय में भी पंजाब, हरियाणा के किसान के खेत में बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान के मजदूर काम कर रहे हैं। किसान की नई पीढ़ी खेती से दूर सरकारी व निजी नौकरियां करने को प्राथमिकता दे रही है, इसलिए किसान की नई पीढ़ी को पहले खेती से जोडऩा होगा। नई पीढ़ी को जोडऩे के लिए एमएसपी की परंपरागत खेती छोड़कर बाजार मांग के अनुसार आधुनिक खेती पर ध्यान देना होगा।

किसान का भाग्य बदल देंगे तीनों कृषि कानून

नारायण सिंह बताते हैं कि वे सेवानिवृत्ति के बाद किसी उद्योग या व्यापार की तरफ भी जा सकते थे, मगर उन्होंने अपने गांव में खेती को इसलिए अपनाया कि अब यदि किसान चाहे तो उद्योग-व्यापार भी अपने ऊपर निर्भर कर सकता है। एक उदाहरण के साथ नारायण सिंह तीन कृषि कानूनों में से एक अनुबंध खेती (कांट्रेक्ट फाॄमग) के फायदे बताते हैं।

उनका कहना है कि वे इंडिया गेट जैसे नामी ब्रांड से बासमती चावल बेचने वाली गाजियाबाद की केआरबीएल कंपनी के लिए बासमती के बीज तैयार करते हैं। कंपनी से उनका अनुबंध है। कंपनी ने कई बार मोटा मुनाफा दिया है मगर आज तक उनसे उनकी जमीन छीनने की बात नहीं की। नारायण सिंह बताते हैं कि यदि वे केआरबीएल से बासमती चावल के बीज तैयार करने का अनुबंध नहीं करते तो कंपनी देखरेख के लिए उनके खेतों तक अपने विशेषज्ञ विज्ञानी भी नहीं भेजती। वे वही परंपरागत खेती में लगे रहते। मगर अब न सिर्फ वे कंपनी को बीज तैयार करके देते हैं बल्कि कंपनी के ही विज्ञानियों की मदद से बासमती चावल की कई किस्म भी उगाते हैं।

उन्होंने कहा कि अब बासमती चावल को तो सरकार नहीं खरीदती फिर एमएसपी के लिए इतना शोर मचाने की क्या जरूरत है। नारायण सिंह का कहना है कि किसान को तीन कृषि कानूनों का विरोध छोड़कर मौजूदा दौर में अपनी नई पीढ़ी को खेती के प्रति आकर्षित करने के लिए आधुनिक खेती अपनानी चाहिए। पंजाब और हरियाणा के किसानों को इसमें पहल करनी चाहिए।


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