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भगवान परशुराम के मार्ग पर चलें : संपूर्णानंद

जागरण संवाददाता, पंचकूला : भगवान परशुराम जन्मोत्सव शहर में बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। हजारों श्रद्ध

By JagranEdited By: Published: Fri, 28 Apr 2017 05:50 PM (IST)Updated: Fri, 28 Apr 2017 05:50 PM (IST)
भगवान परशुराम के मार्ग पर चलें : संपूर्णानंद
भगवान परशुराम के मार्ग पर चलें : संपूर्णानंद

जागरण संवाददाता, पंचकूला : भगवान परशुराम जन्मोत्सव शहर में बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। हजारों श्रद्धालुओं ने भगवान परशुराम के आगे शीश झुकाकर आर्शीवाद लिया। मुख्य समारोह सेक्टर-14 पंचकूला में भगवान परशुराम ब्राह्मण कल्याण संघ हरियाणा एवं श्री ब्राह्मण सभा (रजि.) श्री दुर्गा माता मंदिर में आयोजित किया गया। इसमें संपूर्णानंद ब्रह्मचारी ने भगवान परशुराम के बारे में बताया। भगवान परशुराम ब्राह्मण कल्याण संघ हरियाणा के संयोजक रविंद्र शर्मा, अध्यक्ष जितेंद्र शर्मा एवं श्री ब्राहमण सभा (रजि.) के मुख्य संरक्षक केडी प्रभाकर एवं अध्यक्ष टीआर शर्मा ने महंत संपूर्णानंद ब्रह्मचारी का स्वागत किया।

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इससे पूर्व यज्ञ किया गया, जिसमें सभा के पदाधिकारियों ने आहूतिया डालीं। महिला मंडल सेक्टर-4, 11, 14 ने संकीर्तन किया। समारोह में अति विशिष्ठ अतिथि मा. विभाग संघ चालक कर्नल राम स्वरूप कौशल, एडीजीपी आलोक राय रहे। विशिष्ठ अतिथि चंडीगढ़ के डिप्टी मेयर अनिल दुबे, काग्रेस नेता शशी शकर तिवारी, पार्षद दलीप शर्मा, पानीपत रिफाइनरी के मुकेश शर्मा, पूर्व विधायक स्व. डीके बंसल की पत्नी अंजलि बंसल, समाजसेवी तेजपाल गुप्ता, अशोक गुप्ता, चंद्रमोहन शर्मा, संतोष शर्मा, शशी शर्मा, राज कृष्ण शर्मा, जगदीप अत्री, सत्यनारायण गुप्ता, संजय राय, राकेश शर्मा, महेंद्र चौबे, जितेंद्र सिंह, प्रमोद मिश्रा, विनोद राजदान, विनय कुमार, राज नारायण पाडे, मोहन लाल वशिष्ठ, सतनाम सिंह चट्ठा, मनोज अग्रवाल, गुरप्रीत सिंह बेदी रहे।

महंत संपूर्णानंद ब्रह्मचारी ने कहा कि जब से इस संसार में मानव जाति की उत्पति हुई तब से ही मानवीय समाज को अच्छाई-बुराई का अंतर समझाने, धर्म तथा अधर्म का भेद समझाने के लिए ऋषियों-मुनियों द्वारा उपनिषदों, पुराणों इत्यादि धर्म ग्रंथों की रचना की गई। भगवान विष्णु ने भृगुकुल में जमदग्रि ऋषि पिता तथा माता रेणुका के पुत्र परशुराम के रूप में जन्म लिया, जिन्हें पुराणों में भगवान का छठा अवतार माना गया। इन्हें भगवान शिव ने अपना अमोघ परसा प्रदान किया, जिससे उनका नामकरण परशुराम हुआ। उन्होंने लोगों से भगवान परशुराम के दिखाए मार्ग पर चलने का संदेश दिया। अंत में संपूर्णानंद जी महाराज ने मुख्य मेहमानों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।


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