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हरियाणा में सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल पर प्रतिबंध, टकराव की नौबत

हरियाणा सरकार ने एक महत्‍वपूर्ण कदम उठाते हुए राज्‍य के सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल में भाग लेने पर प्रतिबंध्‍या लगा दिया है। सरकार ने आदेश जारी कर राज्‍य के सरकारी कर्मचारियों के किसी भी प्रकार के धरना, हड़ताल और प्रदर्शन आदि में भाग लेने पर रोक लगा दी है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 22 Nov 2015 04:19 PM (IST)Updated: Sun, 22 Nov 2015 04:36 PM (IST)

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए राज्य के सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल में भाग लेने पर प्रतिबंध्या लगा दिया है। सरकार ने आदेश जारी कर राज्य के सरकारी कर्मचारियों के किसी भी प्रकार के धरना, हड़ताल और प्रदर्शन आदि में भाग लेने पर रोक लगा दी है। इस कदम से सरकार व कर्मचारियों के बीच टकराव की नौबत आ गई है।

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सामूहिक अवकाश भी नहीं होगा स्वीकृत

इसके साथ ही हरियाणा सरकार ने हड़ताल, धरना और प्रदर्शन के लिए कर्मचारियोंं के सामूहिक आकस्मिक अवकाश स्वीकृत न करने का निर्णय भी किया है। राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा इस संबंध में सभी प्रशासनिक सचिवों, विभागाध्यक्षोंं, मंडलायुक्तों व अन्य अधिकारियों को पत्र जारी किया गया है। समझा जाता है कि हरियाणा रोडवेज के कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने की धमकी के बाद यह कदम उठाया गया है।

हरियाणा रोडवेज के कर्मग्चारियों ने प्रदेश सरकार द्वारा अनुबंध पर निजी बसें चलाने के निर्णय के विरोध में हड़ताल परी जाने की धमकी दी है। विभिन्न विभागों के कर्मचारियों के आए दिन हड़ताल पर जाने से भी राज्य सरकार परेशान है।

राज्य सरकार व कर्मचारी यूनियनों में टकराव

राज्य सरकार के इस कदम के बाद सरकारी कर्मचारी यूनियनों से टकराव की नौबत आ गई है। राज्य के करीब पौने तीन लाख कर्मचारियों ने 25 नवंबर को सीएम सिटी करनाल में राज्यस्तरीय रैली का एलान किया है। सर्व कर्मचारी संघ नेइस दिन करनाल में गर्जना रैली का एलान किया है। इस दिन कर्मचारी सरकार को उसके चुनाव घोषणा पत्र की याद कराते हुए समस्याओं का समाधान की मांग करेंगे।

कर्मचारी पंजाब के समान वेतनमान लागू करने, वेतन विसंगतियां दूर करने, वादे के अनुरूप कच्चे कर्मचारियों को नियमित करने, ठेका प्रथा खत्म करने और समान काम के लिए एक समान वेतन दिए जाने समेत करीब दो दर्जन मांगों के लिए आंदोलन कर रहे हैं। 26 नवंबर को सरकार को एक साल एक माह पूरा हो जाएगा। उसके बाद विधानसभा सत्र है, जिसमें विपक्ष द्वारा कर्मचारियों के मुद्दे जोरदार ढंग से उठाए जाने की संभावना है।

लिहाजा, प्रदेश सरकार ने पहले ही कर्मचारियों पर नकेल डालने की कोशिश को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी हड़ताल पर जाने को कर्मचारियों के निर्धारित आचरण नियमों के अंतर्गत गलत बताया है तथा ऐसा करने वाले कर्मचारियों के साथ नियमों के तहत निपटे जाने की आवश्यकता बताई है।

सर्व कर्मचारी संघ के महासचिव सुभाष लांबा ने इस फैसले को सरकार की हड़बड़ाहट करार दिया है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने सत्ता में आने से पहले कर्मचारियों से जो वादे किए थे, उनमें से एक भी पूरा नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री के पास कर्मचारी नेताओं की बात सुनने का समय नहीं है। उनसे मिलने का कई बार समय मांगा गया है, लेकिन वह बात करने को तैयार नहीं होते। सरकार आंदोलनों को दबाने के लिए आपातकाल के हालात पैदा करना चाह रही है।

संघ के महासचिव ने कहा कि ट्रांसपोर्ट पालिसी में रोडवेज का निजीकरण करने की तैयारी कर ली गई है। शिक्षा नीति में बदलाव किए जा रहे हैं। कर्मचारियों के छठे वेतन आयोग की विसंगतियां अभी तक दूर नहीं की जा सकी हैं। हर वादे पर सरकार फेल है। ऐसे में उसके बाद दमन करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है और कर्मचारी इसका जवाब देने को तैयार हैं। सुभाष लांबा ने कहा कि हमें टकराव में मजा नहीं आता। हम टेबल पर बैठ कर बात करना चाहते हैं, लेकिन सरकार इसकी पहल तो करे।




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