दिव्यांग प्रमाण पत्र के लिए चक्कर लगा रहे रोहतक के
राजकुमार, नारनौल : सरकार ने भले ही असक्त का नाम बदल कर दिव्यांग कर दिया है। मगर अब भी नागरिक अस्प
राजकुमार, नारनौल : सरकार ने भले ही असक्त का नाम बदल कर दिव्यांग कर दिया है। मगर अब भी नागरिक अस्पताल के कमरा नंबर 26 पर विकलांग शब्द ही प्रयोग किया जा रहा है। अस्पताल में हड्डी चिकित्सक को छोड़कर आंखों एवं गूंगे-बहरों की विकलांगता जांच रिक्त पदों के कारण नहीं हो पा रही। उन्हें पीजीआइ रोहतक के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने शब्द परिवर्तन करते हुए असक्त लोगों को नया दिव्यांग नाम दे दिया है। मगर नारनौल के नागरिक अस्पताल में रेडक्रास द्वारा रूम नंबर 26 स्थित कक्ष में आज भी विकलांग शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। जबकि इस शब्द पर सरकार ने पाबंदी लगा दी है। अस्पताल में वर्षों बाद हड्डी रोग चिकित्सक का रिक्त पद भर दिया गया है, मगर अब भी अस्पताल में आंखों का कोई चिकित्सक नहीं है। गूंगे-बहरों की जांच एवं उपचार के लिए तो आज तक अस्पताल में किसी चिकित्सक की नियुक्ति नहीं हुई है। नेत्र एवं गूंगे-बहरे दिव्यांगों को दिव्यांग प्रमाण पत्र के लिए पीजीआइ रोहतक के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। रोहतक में विकलांगता जांच करने के बाद चिकित्सक आवेदक को हाथोंहाथ प्रमाण पत्र जारी नहीं करते हैं और वह कई बाद छह महीनों बाद मिलता है तो अनेक बार वह भेजा ही नहीं जाता। ऐसे में नेत्रहीन तथा गूंगे-बहरे प्रमाण पत्र के लिए बार-बार रोहतक के चक्कर काटते रहते हैं, जबकि दिव्यांग इन चिकित्सकों का एक सप्ताह नहीं तो कम से कम एक महीने तो जिला स्तर का नारनौल के कैंप लगाया ही जा सकता है। सीएम भी इसकी घोषणा कर चुके हैं, लेकिन यह अब तक लागू नहीं हो पाई है।
महेंद्रगढ़ जिले में एक जनवरी 2011 से 15 जुलाई तक 60 से 69 प्रतिशत तक कुल 134 विकलांगता प्रमाण पत्र नागरिक अस्पताल नारनौल की ओर से जारी किए गए हैं, जिन्हें सरकार की ओर से चलाई गई दिव्यांग पेंशन योजना का लाभ नहीं मिल रहा। 70 फीसद से अधिक विकलांग को ही सरकार ने पेंशन देने का प्रावधान किया हुआ है, जिनमें 4502 लोग शामिल हैं और इन्हें समाज कल्याण विभाग की ओर से अब तक 1400 रुपये मासिक मिलता रहा है। नवंबर में 200 रुपये बढ़ाकर इस 1600 रुपये सरकार ने कर दिया है, मगर अब तक बढ़ी हुई राशि के साथ पेंशन नहीं मिली है। समाज कल्याण विभाग की ओर से 207 दिव्यांग बच्चों को 700 रुपये मासिक दिए जा रहे हैं।
''दिव्यांग पेंशन को सरकार ने तुलनात्मक दृष्टिं से कम कर दिया है। एक समय में वृद्धावस्था के 600 तो दिव्यांग को 1000 रुपये मासिक पेंशन मिलती थी, मगर अब इसे बराबर कर दिया गया है। दिव्यांग बुजुर्गों की तुलना में असहाय होते हैं। मनुष्य पूरी ¨जदगी कमाने के बाद बुजुर्ग होता है, जबकि दिव्यांग बचपन से ही यह दंश झेलते हैं। अनेक हादसों में दिव्यांग हो जाते हैं। ऐसे में 5000 रुपये मासिक दिया जाना चाहिए। 70 फीसद की शर्त को घटाकर 40 फीसद पर पेंशन लागू होनी चाहिए। दिव्यांगों के लिए विशेष भर्ती होनी चाहिए।
- मनमोहन ¨सह, प्रधान, हरियाणा विकलांग उत्थान समिति, नारनौल।
''रेडक्रास की ओर से दिव्यांगों को जो ट्राई साइकिलें दी जाती हैं, वे बेहद घटिया होती हैं। दिव्यांग के चलने में सहायक सीढ़ी भी हल्की किस्म की होती है। अब जमाना फास्ट हो गया है। इसलिए सरकार को ट्राई साइकिल की जगह स्कूटी देनी चाहिए। नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
- वीरेंद्र ¨सह, नारनौलवासी।