आज धूमधाम से मनेगी अहोई अष्ठमी
संवाद सहयोगी, सतनाली : मां तो मां होती है। उसकी हर सांस से बच्चों के लिए दुआएं निकलती हैं। रविवार
संवाद सहयोगी, सतनाली : मां तो मां होती है। उसकी हर सांस से बच्चों के लिए दुआएं निकलती हैं। रविवार का दिन पुत्रवती माताओं के लिए बेशकीमती होगा। इस दिन मां अपने बच्चों के स्वस्थ व दीर्घायु जीवन के लिए अहोई माता से आशीष मांगेगी। वैसे इस बार अहोई व्रत दो दिन रखा जा रहा है। अनेक महिलाओं ने शनिवार को भी अहोई का व्रत रखा। हालांकि कहा जाता है कि जिस वार को दीपावली पर्व मनाया जाता है उसी वार को अहोई की पूजा कर व्रत रखा जाना शुभ है।
अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण अष्टमी के दिन किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है। माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोई का पूजन किया जाता है। अहोई गेरू आदि के द्वारा दीवार पर बनाई जाती है अथवा किसी मोटे वस्त्र पर अहोई बनाकर पूजा के समय उसे दीवार पर टांग दिया जाता है।
अहोई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोईमाता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। संपन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लेपकर कलश की स्थापना होती है। अहोईमाता की पूजा करके दूध व चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है।
अहोई अष्टमी की दो लोक कथाएं प्रचलित हैं। ज्योतिषियों द्वारा निर्धारित तिथि के अनुसार अहोई अष्टमी रविवार को मनाई जाएगी। इसके लिए समय का कोई विशेष मुहूर्त नहीं है। यह पारिवारिक परंपराओं के अनुसार मनाया जाएगा। कुछ माताएं तारों की छांव में तो कुछ चंद्रमा को अर्घ्य देकर अहोई माता से आशीष मांगेंगी। इससे पूर्व अहोई माता की कहानी सुनकर उनका पूजन किया जाएगा। चौथे और पांचवे दिन को लेकर हुए भ्रम के बावजूद यह पर्व शनिवार व रविवार दोनों ही दिन मनाया जा रहा है।
अहोई अष्टमी व्रत विधि : अहोई व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए 'मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं' ऐसा संकल्प करें। अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे। अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं, इसलिए माता पर्वती की पूजा करे। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करे।
अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे सेह या स्याहू कहते हैं। इस सेह की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं। पूजा के पश्चात सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करें।