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लुप्त होने लगा है होली का खेल

-समय के साथ बदलने लगा है पर्व की होली ठिठोली होशियार ¨सह, कनीना: रंगों के त्योहार होली पर अनेक प

By Edited By: Published: Thu, 05 Mar 2015 03:42 PM (IST)Updated: Thu, 05 Mar 2015 03:42 PM (IST)
लुप्त होने लगा है होली का खेल

-समय के साथ बदलने लगा है पर्व की होली ठिठोली

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होशियार ¨सह, कनीना: रंगों के त्योहार होली पर अनेक प्रकार के रंगों और गुलाल से होली का लुत्फ लिया जाता है वहीं होलिका दहन से पूर्व ग्रामीण अचल में अनेकों प्रकार के खेल खेले जाते रहे हैं जिन्हें होली के खेल कहा जाता है। अब तो धीरे-धीरे होली के खेल लुप्त होने लगे हैं। होली अब रंगों का प्यार भरा पर्व न होकर दुश्मनी साधने का एक तरीका बन गया है।

एक जमाना था जब रंगों के त्योहार को प्यार और सौहार्द से मनाया जाता था और आंखों व मुंह में रंग आदि नहीं डाला जाता था ¨कतु अब तो या तो मुंह को काले तेल से लेपकर सरेआम मुंह काला कर दिया जाता हे या फिर मुंह में गंदे रंग भरकर दुश्मनी साधी जाती है। अब तो ग्रामीण अंचलों में भी कीचड़ में इंसान को पटककर होली खेली जाती है। यही कारण है कि होली के प्रति वो लगाव नहीं रहा है और सभ्यजन तो होली से कोसों दूर रहना चाहता है।

होली से पूर्व कई दिनों तक चलने वाले होली के खेल भी अब समाप्त होते जा रहे हैं। युवा वर्ग अब होली के खेल न खेलकर दुश्मनी के खेल खेलने में अधिक रुचि लेता है। होली के खेल अगर इस मौके पर खेले जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बिजली अभाव के कारण होली खेलने वालों को चोर समझ कर पीट दिया जाएगा। यही कारण है कि होली के खेल लुप्त प्राय हो चले हैं।

एक वक्त था जब होली का डांडा गाड़ा जाता था उसी वक्त से ही होली के खेल शुरू कर दिए जाते थे। मस्तानों की टोलियां जहां होली के खेल खेलती थी वहीं डांडे के चारों ओर भारी मात्रा में ईंधन डालकर होलिका दहन के लिए तैयार करते थे। अब तो हालात यह बन गई है कि होली पर ईधन डालने वालों की ही कमी नजर आती है।

एक जमाना था जब होली के खेलों को चांदनी रातों में लुका छिपी के रुप में खेला जाता था। गलियों में रातभर भागदौड़ मची रहती थी। घरों में औरतें और बच्चे होली के खेल खेलते थे और गीत गाकर होली आगमन की सूचना देते थे। अब गांवों में होली खेलने वालों का लगभग अकाल ही पड़ गया है। रंजिश के चलते कोई भी माता पिता अपने बच्चों को घर से बाहर नहीं जाने देता। यदि युवा वर्ग होली खेलने निकलेगा तो वो दिन दूर नहीं है जब आपस में भारी मार पिटाई शुरू न कर देंगे। ऐसे में अब होली के खेल समाप्त होने को हैं। अब न तो सौहार्दपूर्ण वातावरण ही रहा है और न ही होली के खेल रहे हैं। आने वाले समय में होली का पर्व महज एक औपचारिकता बनकर रह जाएंगे।


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