Move to Jagran APP

स्मार्टफोन बन रहा किशोरों के अवसाद का कारण

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : बचपन में खिलौने और दोस्तों के साथ खेलने की उम्र में बच्चे स्मार्ट

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Apr 2017 11:50 PM (IST)Updated: Tue, 25 Apr 2017 11:50 PM (IST)
स्मार्टफोन बन रहा किशोरों के अवसाद का कारण
स्मार्टफोन बन रहा किशोरों के अवसाद का कारण

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र :

loksabha election banner

बचपन में खिलौने और दोस्तों के साथ खेलने की उम्र में बच्चे स्मार्टफोन को अपनी ¨जदगी में शामिल कर रहे हैं, जो उनके मानसिक विकास को बढ़ाने के साथ उनमें अवसाद का बीज भी बो रहा है। स्मार्ट फोन से हर समय चिपके रहना उन्हें बीमार बना रहा है। किशोरावस्था में पहुंचने पर यह लत उनकी आदत बिगाड़ रही है और छोटी-छोटी बातों को लेकर किशोर डिप्रेशन में जा रहे हैं। व्यावहारिक समस्याएं उन्हें घेरने लगती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों व किशोरों को सारा दिन मोबाइल से चिपके नहीं रहने देना चाहिए। ऐसा उनके भविष्य के लिए ठीक नहीं है। पढ़ाई में मदद के लिए दिन में आधा घंटा मोबाइल उनके लिए काफी होता है। केवल उतनी ही देर मोबाइल दें, जितनी देर बच्चे को स्टडी मटेरियल ढूंढने की जरूरत पड़े।

बॉक्स

प्रति वर्ष 11 हजार किशोरों को पड़ती काउंसि¨लग की जरूरत

जिले के 22 सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में 22 मित्रता क्लीनिक स्थापित हैं, जिनमें 10 से 19 वर्ष के किशोरों की काउंसि¨लग की जाती है। इन क्लीनिक पर प्रतिवर्ष 11 हजार किशोर किशोर स्वयं या फिर अभिभावकों व स्कूलों के माध्यम से अपनी काउंसि¨लग कराने के लिए पहुंच रहे हैं। इनमें ज्यादातर बच्चे व्यावहारिक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं, जो कहीं न कहीं अवसाद की चपेट में होते हैं। किशोरों को यह बीमारी घुन की तरह भीतर से चाट रही है। जिस उम्र में उन्हें अपनी शिक्षा और मनोरंजन पर ध्यान देना चाहिए उस उम्र में वे ¨चताओं का टोकरा अपने सिर पर लेकर घूम रहे होते हैं।

बॉक्स

फोटो संख्या : 27

स्मार्टफोन को बीमारी न बनने दें

अच्छे मित्र व मार्गदर्शक के सानिध्य में रहने की बजाय किशोर स्मार्ट फोन को ज्यादा तवज्जो देने लगे हैं। अपनी हर समस्या का समाधान वे स्मार्ट फोन की ऐप में ढूंढने का प्रयास करते हैं, यही उनकी बीमारी का सबसे बड़ा कारण है। किशोरावस्था के दौरान अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ एक मित्र की तरह व्यवहार करना चाहिए। साथ ही बच्चों को कितनी देर टीवी देखना है कितनी देर बाहर खेलना है और कितनी देर पढ़ाई करनी है, उसकी एक समयसारिणी तैयार की जानी चाहिए। स्मार्ट फोन के लिए भी किशोरों को आधे घंटे से ज्यादा नहीं देना चाहिए। अभिभावकों को समय-समय पर अपनी भी काउंसि¨लग करानी चाहिए।

सोनिया सेतिया, किशोर परामर्शदाता, मित्रता क्लीनिक।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.