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मंदिरों के कचरे से लहलहाएंगी फसलें

मनोज राणा, करनाल फसलों में रसायनिक खाद का बढ़ता उपयोग देख मन बेहद दुखी था। देखते ही दे

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Apr 2017 03:01 AM (IST)Updated: Sat, 22 Apr 2017 03:01 AM (IST)
मंदिरों के कचरे से लहलहाएंगी फसलें
मंदिरों के कचरे से लहलहाएंगी फसलें

मनोज राणा, करनाल

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फसलों में रसायनिक खाद का बढ़ता उपयोग देख मन बेहद दुखी था। देखते ही देखते हवा, पानी यहां तक कि खानपान भी धीमे जहर के समान हो गया। थोड़े से मुनाफे का लालच ऐसा कि पूरी व्यवस्था बीमार। जैविक खेती तो मानों ख्वाब बन गई। आज हर साल भयानक बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है। मर्ज की दवा सभी को पता है, लेकिन इलाज करने की जुर्रत कौन करे। बिगड़ते हालात में ममता बंसल ने स्वस्थ समाज का न केवल सपना बुना, बल्कि उसे पूरा करने के लिए बकायदा अभियान छेड़ दिया। प्रारंभिक प्रयास भले ही छोटा है, लेकिन इसके पीछे मंशा कहीं बड़ी और विश्व कल्याण से जुड़ी है।

कंपोस्ट प्लांट के रूप में स्वस्थ समाज के साथ ही पर्यावरण संरक्षण की भी अनूठी अलख। सोचा कि घरों का गलनशील कचरा गलियों में बिखरकर पर्यावरण प्रदूषण की बजाय जैविक खाद के रूप में मानव का कल्याण कर सकता है। इसी उधेड़बुन के बीच खोजबीन शुरू की। चंडीगढ़ की कई नर्सरियों को खंगाल दिया। जहां चाह, वहां राह की कहावत कंपोस्ट प्लांट के रूप में एक बार चरितार्थ हुई। करीब पांच फीट का यह यंत्र गलनशील कचरे को कुछ ही दिनों में जैविक खाद में बदल देता है। अब ममता ने इसे मंदिरों में लगाने की मुहिम शुरू की है।

मंदिरों में लगाएंगे कंपोस्ट प्लांट

ममता का मानना है कि मंदिरों में फूल व फल के रूप में काफी गलनशील कचरा जमा होता है। फूलों व फल के पत्तों को नहरों में फेंक कर नहरों का पानी दूषित करने की बजाय इनका उचित प्रबंधन हो। इसलिए ठान लिया कि शुरुआत में शहर के मंदिरों में यह कंपोस्ट प्लांट लगाया जाए। धरती को बचाने की शुरुआत पृथ्वी दिवस पर 22 अप्रैल को गीता मंदिर से होगी। मंदिर में रोजाना सैकड़ों लोग इसे देखेंगे तो जागरूक भी होंगे। एक की कीमत करीब सात हजार रुपये है, लेकिन ममता बंसल एआइवीएफ की महिला ¨वग की प्रधान आशा गोयल के साथ मिलकर इसका खर्च वहन करेंगी।

सात दिन में जैविक खाद तैयार

ममता ने बताया कि करीब पांच फीट के इस अनूठे कंपोस्ट प्लांट के लिए एक वर्ग फीट जगह ही काफी है। इसमें गलनशील कचरा जैसे फल व सब्जियों के छिलके डालने से सात दिन में जैविक खाद तैयार हो जाएगी। बशर्ते नींबू, पाइनएप्पल का छिलका और नमक इसमें नहीं जाए। नीचे लगे ढक्कन से खाद निकालें और ऊपर के ढक्कन से रोजाना कचरा डालते रहें। इस खाद से घर में ही जैविक फल व सब्जियां तैयार कर परिवार तो स्वस्थ रहेगा ही साथ ही कचरे का भी उचित प्रबंधन हो जाएगा। जिन व्यवसायिक संस्थानों में रोजाना टन के हिसाब से गलनशील कचरा निकलता है, वह बड़े स्तर पर जैविक खाद तैयार की जा सकेगी। हर घर में ऐसा हो तो हालात स्वयं बदल जाएंगे।

पौधों पर लगाएंगे बच्चों की फोटो

जॉयलैप प्री स्कूल की संचालिका ममता बंसल के अनुसार हालात बदलने हैं तो हमें बच्चों को भी प्रकृति से जोड़ना होगा। इसलिए उन्होंने निर्णय लिया है कि वह स्कूल में बच्चों से पौधे लगवाकर उन पर बकायदा उनकी फोटो लगवाएंगी। एक तरफ पौधे बड़े होंगे और दूसरी तरफ बच्चे। इससे वह पेड़-पौधों से उनका लगाव रहेगा और वह उनकी अहमियत भी समझेंगे। मानना है कि छोटे-छोटे प्रयासों से ही समाज में बदलाव आए


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