बाढ़ राहत के लिए करोड़ों खर्च के बाद भी नहीं टला खतरा
जागरण संवाददाता, करनाल : यमुना से सटे क्षेत्र के लोगों के लिए हर साल मानसून किसी नासूर से
जागरण संवाददाता, करनाल : यमुना से सटे क्षेत्र के लोगों के लिए हर साल मानसून किसी नासूर से कम नहीं है, यह अलग बात है कि यहां के लोगों को कभी कम नुकसान होता है तो कभी ज्यादा, लेकिन नुकसान होना लगभग तय है। जिला प्रशासन हर साल करोड़ों रुपये बाढ़ से बचाव के राहत कार्यों पर खर्च कर देता है, लेकिन अभी तक इसका कोई ज्यादा फायदा लोगों को होता दिख नहीं रहा है। वर्ष 2001 से लेकर 2012 तक के समय का जिक्र किया जाए तो यमुना नदी में बाढ़ राहत कार्य पर करीब 61 करोड़ 43 लाख रुपये करनाल जिले में खर्च कर दिए गए लेकिन हर बार नतीजा सिफर ही रहता है। हालांकि इसके बाद भी बाढ़ राहत कार्यों पर खर्च हुए हैं, लेकिन अभी प्रशासन की ओर से आंकड़ा जारी नहीं किया गया है। स्थिति यह है कि हर साल यमुना पर बाढ़ राहत की राशि बढ़ रही है पर प्रयास हर बार असफल रहता है। जब भी मानसून सीजन में यमुना उफान पर होती है आसपास के क्षेत्र के लोगों की नींद भी उड़ जाती है। किसानों का कहना है कि जिस हिसाब से मानसून बताई जा रही है, उसे बाढ़ की आशंका है। लेकिन बीते सालों में सरकार की ओर से बाढ़ बचाव के लिए कोई कार्य नहीं किया है। जिससे किसानों में प्रशासन के प्रति रोष बढ़ता जा रहा है। यमुना क्षेत्र में बाढ़ बचाव के पुख्ता प्रबंध नहीं होने के कारण यमुना क्षेत्र के गांव बाढ़ जैसी आपदाओं का शिकार होते आए हैं। यमुना में बनाए गए स्टड पुराने होकर उखड़ चुके हैं और तटबंध भी कई स्थान पर कमजोर हैं। यमुना इलाके के किसानों की प्रशासन के प्रति सबसे बड़ी नाराजगी बाढ़ सूचना तंत्र को लेकर बनी हुई है। किसान इस्तिकार, ग्रामीण इमराना, गयूर, सलमान, मोहम्मद आदि
का आरोप है कि प्रशासन की तरफ से उन्हें यमुना में पानी छोड़े जाने के बारे में सूचना समय पर नहीं दी जाती, जिस कारण अक्सर किसान बाढ़ में फंस जाते हैं।
कब हुआ कितना खर्च
वर्ष खर्च (राशि लाखों में)
2000-01 76.60
2001-02 165.82
2002-03 67.30
2003-04 56.99
2004-05 38.00
2005-06 27.84
2006-07 231.33
2007-08 665.84
2008-09 702.43
2009-10 289.72
2010-11 575.61
2011-12 2670.98
2012-13 574.82
नोट : कुल 6143.26 लाख रुपये खर्च हुए हैं। इसके बाद अभी प्रशासन की तरफ से आंकड़ा जारी नहीं किया गया है।
..जब बाढ़ ने ढहाया था कहर
ग्रामीणों का कहना है कि चार साल पहले यमुना में आई बाढ़ ने पूरा कहर ढहाया था। बाढ़ ने तबाही मचाते हुए किसानों की हजारों एकड़ फसल तबाह कर दी थी। इतना ही नहीं, बाढ़ में किसानों के खेतों में पड़े कृषि उपकरण, बिजली के खंबे व ट्रांसफार्मर भी पानी में बह गए थे। इससे उनका लाखों रुपये का नुकसान हुआ था। ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ का पानी कई गांवों के घरों में भी घुस गया था। ग्रामीणों का कहना है कि यमुना किनारे स्टड पर कुछेक पत्थर ही नजर आते हैं। न तो सरकार कुछ ध्यान दे रही है या और न ही प्रशासन। शायद सरकार बाढ़ आने के बाद ही जागती है। यही हाल रहा तो यह मंजर दोबारा फिर दिखेगा।
पानी में बह जाते हैं ठोकरों के पत्थर
ग्रामीणों ने बताया कि ¨सचाई विभाग की ओर से यमुना की ठोकरें बनाने के लिए पत्थर डाले जाते हैं, लेकिन पत्थर डालने के अलावा कोई कार्रवाई न होने के कारण पत्थर भी पानी में बह जाते हैं और स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है। किनारों पर ठोकरें नहीं लग पाने के कारण जमीन का कटाव होता रहता है। इससे भूमि का नुकसान होता है।
प्रशासन के यह दावे
जहां किसान बाढ़ की आशंका और पूर्व प्रबंधों को लेकर सरकार व प्रशासन को कोस रहे हैं। वहीं बाढ़ प्रबंधों को लेकर प्रशासन का दावा कुछ और ही है। एसडीएम वर्षा खंगवाल ने बताया कि यमुना इलाके के गांव सदरपुर में स्टड का निर्माण शुरू हो चुका है। इसके साथ की करीब 600 मीटर लंबे तटबंध को भी मजबूत किया जा रहा है। जल्द ही ¨सचाई विभाग की टीम के साथ यमुना तट के सभी गांवों का निरीक्षण किया जाएगा, ताकि बाढ़ के हालातों से पहले ही इलाके में पुख्ता प्रबंध किए जा सके