हर दंगल की शान, हरी ¨सह अखाड़े के पहलवान
सुरेंद्र सैनी, कैथल : आजकल आमिर खान की दंगल की धूम है। प्रदेश सरकार ने भी इसे टैक्स फ्री
सुरेंद्र सैनी, कैथल : आजकल आमिर खान की दंगल की धूम है। प्रदेश सरकार ने भी इसे टैक्स फ्री कर दिया है। महावीर फौगाट के अखाड़े से निकलकर अंतरराष्ट्रीय दंगल में छाई बेटियों ने हरियाणा का नाम तगड़ा कर दिया है। ऐसा ही एक अखाड़ा कैथल के हरी ¨सह पहलवान का भी है। एक सदी से ज्यादा समय से यह अखाड़ा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में अपना वर्चस्व कायम रखता आ रहा है। यूं तो इस प्रदेश की माटी ने देश को योगेश्वर दत्त, बजरंग व गीता फौगाट जैसे नामी पहलवान दिए, जिन्होंने पूरी दुनिया में अपनी पहलवानी का डंका बजाया है। इन सब के बीच एक ऐसा शख्स भी है, जो पिछले करीब 40 सालों से बिना किसी सरकारी सहायता के चुपचाप पहलवानों की नई पौध को तराशने में लगा है, नाम है हरी ¨सह पहलवान। अब तक इस अखाड़े से 150 के करीब ऐसे पहलवान निकल चुके हैं, जिन्होंने न केवल राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि विदेशी धरती पर दंगल जीतकर भारत का नाम रोशन किया है।
100 साल पहले हुई शुरुआत
अखाड़ा संचालक 70 वर्षीय हरी ¨सह पहलवान ने बताया कि इस अखाड़े की शुरुआत उनके पिता सरदारा राम ने की थी। उसे भी बचपन से ही पहलवानी करने का शौक था। 15 साल की आयु में पिता ने अखाड़े में उतार दिया। पिछले करीब 100 सालों से यह अखाड़ा चल रहा है। वर्ष 1970 से वे इस अखाड़े को चला रहे हैं। अखाड़े से कई नामी पहलवान निकले हैं। जिन्होंने बाद में भारतीय सेना, पुलिस, बिजली, खेल विभाग में भी सेवाएं देकर देश व प्रदेश का नाम रोशन किया। अखाड़े के पहलवान राजेंद्र ¨सह और सतबीर कुमार अंतरराष्ट्रीय मुकाबले खेल चुके हैं। गांव मानस के देसू पहलवान, अमन कुमार तीन बार राष्ट्रीय स्वर्ण पदक विजेता रहे। इसके अलावा अभिषेक कुमार दो बार राष्ट्रीय स्वर्ण, जगदीश स्टेट चैंपियन, शमशेर ¨सह राष्ट्रीय पदक विजेता, मुकेश शर्मा पांच बार राष्ट्रीय स्वर्ण पदक विजेता रहे। हरी ¨सह बताते हैं कि वे स्वयं मुम्बई, बंगलुरू, महाराष्ट्र, जयपुर, अमरावती, बनारस, शिमला सहित अन्य शहरों में आयोजित दंगल में सोना जीत चुके हैं। मुंबई में 1976-77 में आयोजित दंगल में प्रथम स्थान आने पर स्व. दारा ¨सह व पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने भी उन्हें सम्मानित किया था।
पहलवानों को सिखा रहे दाव-पेंच
बुजुर्ग होते हुए भी हरी ¨सह रोजाना सुबह व शाम अखाड़े में आकर पहलवानों को दाव-पेंच सिखाते हैं। अभी भी 50 के करीब पहलवान अभ्यास के लिए रोजाना सबेरे आ रहे हैं। इन सभी पहलवानों को निशुल्क को¨चग के साथ ही रहने की सुविधा, डाइट का खर्च स्वयं ही उठाते हैं। सरकार व प्रशासन की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। पहलवान ¨सह ने बताया कि कुछ समय पहले डेढ़ लाख रुपये खर्च कर मैट अखाड़े में लगवाया है, लेकिन अभी भी काफी सुविधाओं की जरूरत है, जिनकी कमी पहलवानों को खल रही है।