फिर बर्बादी के मुहाने पर धरती पुत्र
रणबीर धानिया, धनौरी : गेहू की फसल में आए घाटे की भरपाई करने के अरमान लिए बैठा किसान फिर तबाही के मु
रणबीर धानिया, धनौरी : गेहू की फसल में आए घाटे की भरपाई करने के अरमान लिए बैठा किसान फिर तबाही के मुहाने में जा फंसा है। कौलेखा गाव में धान की फसल में आई बीमारी से करीब दो सौ एकड़ कृषि रकबा फूस में तबदील हो गया है। ज्यों-ज्यों कटाई का समय नजदीक आता जा रहा है त्यों-त्यों फसल तेजी से नष्ट हो रही है। तबाही के इस मंजर को देखकर किसान बिलख उठे हैं।
इनका कहना है कि जो हालात बड़े कृषि रकबे के बने है उसमें किसान को अनाज तो दूर की बात पशुओं के लिए चारा भी नसीब नहीं होगा। इसके चलते खलिहान उनके लिए बर्बादी का पिटारा बने है। गेहूं बिजाई का समय नजदीक आ रहा है। लेकिन जिस तरह धान की फसल बीमारी की गिरफ्त में आई है उसको कोई पशु चारे के लिए भी लेने को तैयार नहीं है। इन हालातों में वे कैसे संकट से निपटे?
किसान होशियार सिंह, पिरथी, शमशेर, प्रीतम, ओमप्रकाश, राजकुमार, तरसेम और दूसरे प्रभावित किसानों का कहना है कि एक-एक एकड़ में बड़ी रकम उत्पादन तैयार करने में खर्च हुई है। गेहू के सीजन में उनको घाटा हाथ लगा था। इसके मद्देनजर उधारी लेकर धान की फसल की रोपाई की थी। खरपतवार, दवा, बीज और मजदूरी का दूसरे खर्च की सूची लंबी है। वे ये ख्वाब संजोए बैठे थे कि इस बार वे हर्जाने को श्रम के पसीने से पाट देंगे। लेकिन ऐन वक्त पर बर्बादी के मंजर ने उन्हे खून के आसू रुला दिया है। एक तो कर्ज और ऊपर से ब्याज की घूमती सुई उन्हे दिन रात चैन से नहीं बैठने देती। किस बात पर वे अपने दिल को समझाए कोई रास्ता समस्याओं के भंवर से बाहर नहीं निकालता।
धरती पुत्र आखिर जाए तो जाए कहा? कौलेखा क्षेत्र में सिंचाई के स्त्रोत ज्यादा कारगर नहीं है। मोटी रकम खर्च कर किसानों ने पेयजल साधनों को विकसित किया है। जब उत्पादन ही न हो तो वे कहा से आय जुटाए? परिवार पर कर्ज और समस्याओं को बोझ इतना भारी है कि पर्वत की भी कमर टूट जाए। इसके बावजूद भी सरकार उन पर नजरे इनायत नहीं कर रही। चाहिए तो यह था कि किसान की स्थिति को देखते हुए धान की भी विशेष गिरदावरी करवाई जाती। ताकि मेहनतकश वर्ग के घावों पर मरहम लगता। लेकिन नेताओं की बेरुखी घावों को कुरेद रही है।
किसान की झोली में घाटे पर घाटा:
प्रभावित किसानों ने कहा कि धान कटाई यदि वे मजदूरी पर करवाते है तो घाटे पर घाटा होगा। इसलिए वे गाव में पशु चारे के लिए फसल काट लेने की मुनादी करवा चुके है। लेकिन बीमारी का शिकार बनी फसल को पशु पालक भी काटने को तैयार नहीं है। इस बेबसी में अब वे ऐसा मार्ग तलाश रहे है जिससे फूस को सरल व बगैर खर्च के हटाया जा सके।