अंधेरे जीवन में शिक्षादीप जला रहा दंपती
मोहन भारद्वाज, जींद सुबह से शाम तक कूड़ा कचरा बीनने वाले हाथों में कभी कापी किताब भी ह
मोहन भारद्वाज, जींद
सुबह से शाम तक कूड़ा कचरा बीनने वाले हाथों में कभी कापी किताब भी होगी, हांसी ब्रांच नहर पर बने जयंती देवी मंदिर के पास बसी कोढ़ा बस्ती के सैकड़ों बच्चों ने शायद यह कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। हाउ¨सग बोर्ड निवासी एमए बीएड पास दंपती मोहित व शारदा आशरी के प्रयासों से यह संभव हो पाया है।
शुरुआती सफर में आई कठिनाई विभिन्न वर्गो से मिलने वाले सहयोग के चलते समय के साथ कम होती गई। सकारात्मक सोच के साथ कदम बढ़े तो कूड़ा बीनने वाले सैकड़ों बच्चों में से आज 40 कूड़ा बीनना छोड़कर नियमित क्लास में आने लगे हैं। करीब 40 अन्य बच्चे आंशिक रूप से जुड़कर कभी-कभार क्लास में पहुंचकर शिक्षा के यज्ञ में आहुति देने लगे हैं। पहले छह माह में तीन स्थानों पर भटकने के बाद अब मीट मार्केट रोड पर बनी एक धर्मशाला में स्थायी ठिकाना मिल गया है। 5 से 12 आयुवर्ग के सैकड़ों बच्चे अपने पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ाते हुए शिक्षा से विमुख होकर उसी मार्ग पर चल पड़े थे।
आठ माह से शुरू किया सफर
12वीं पास करते ही शारदा की 2003 में मोहित के साथ शादी हो गई। पति के साथ पानीपत में रहते हुए अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाते हुए एमए बीएड की। इसी बीच निजी स्कूल में अध्यापन से जुड़ी रही। 11 साल बाद जींद शिफ्ट होने के बाद अपने पति के साथ फिर एक निजी स्कूल पकड़ लिया। स्कूल में पढ़ाने से मोहभंग हुआ तो पति की सलाह पर आठ माह पहले गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद से शारदा सुबह से शाम तक बच्चों को पढ़ाते हैं तो मोहित अपने स्कूल की छुट्टी के बाद सीधे वहां पहुंचते हैं।
शुरू में हुई दिक्कत
मोहित व शारदा ने बताया कि अचानक ही यह विचार मन में आया था। शुरुआत में काफी कठिनाई आई। साथी शिक्षकों, स्कूल संचालकों व समाजसेवी संस्थाओं से मिले सहयोग के चलते ही हम आठ माह पहले तक कूड़े बीनने हाथों में कॉपी-किताब थमाने में सफल हो पाए हैं। हमारा प्रयास रहेगा कि शहर का कोई भी बच्चा अशिक्षित न रहे लेकिन सभी के सहयोग से ही ऐसा कर पाना संभव होगा।