साल में ढाई हजार नए मरीजों को अपने आगोश में ले रही टीबी
मोहन भारद्वाज, जींद नियमित सरकारी अभियानों के बावजूद जिले में टीबी तेजी से पांव पसार रही
मोहन भारद्वाज, जींद
नियमित सरकारी अभियानों के बावजूद जिले में टीबी तेजी से पांव पसार रही है। जिले की कुल आबादी के करीब 0.18 प्रतिशत आंकड़े के साथ प्रतिवर्ष 2500 नए मरीज टीबी की गिरफ्त में आ रहे हैं।
इस सरकारी आंकड़े में प्राइवेट अस्पतालों में उपचार करवाने वाले मरीजों की संख्या शामिल नहीं है। इसके बावजूद जिले में मल्टी ड्रग्स रेसिसटेंट (एमडीआर) मरीजों को भर्ती करने तथा बलगम पॉजिटिव पाए जाने तथा छोटे बच्चों की जांच के लिए की सुविधा उपलब्ध नहीं है। एमडीआर मरीजों को उपचार के लिए रोहतक तो आधुनिक जांच के लिए हिसार भेजा जाता है। बीच में उपचार छोड़ने वाले तथा नियमित खुराक देने पर भी ठीक नहीं होने वाले मरीजों की जांच व उपचार जिला नागरिक अस्पताल में बने टीबी सेंटर में उपलब्ध है।
छाती रोग विशेषज्ञ व फिजिशियन विशेषज्ञ की अनउपलब्धता भी मरीजों के उपचार व जांच में कई बार बाधा बनती है। जानलेवा समझी जाने वाली टीबी के लिए जिले को जींद, नरवाना, उचाना, कलवा, सफीदों, व जुलाना छह रीजन (यूनिट) में बांटा गया है। इनमें जींद, नरवाना व उचाना से अधिक तथा कलावा, सफीदों व जुलाना में कम केस पाए जाते हैं। सामान्यत: टीबी का उपचार 6 से 9 व 9 से 12 माह तक चलता है।
जांच के लिए 13 लैब
जिले में टीबी जांच के लिए जिला नागरिक अस्पताल सहित 13 लैब स्थापित की गई है। जहां पर संदिग्ध मरीजों की जांच की जाती है। जांच में पॉजिटिव पाए जाने के बाद जिला टीबी केंद्र से संबंधित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के माध्यम से मरीज को उपचार दिया जाता है। उपचार शुरू होने के दो माह बाद फिर से जांच कर मरीज का स्टेट्स जाना जाता है। सामान्य श्रेणी के सभी टीबी मरीजों को सप्ताह में तीन दिन मंगलवार, वीरवार व शनिवार तथा एमडीआर मरीजों को कोर्स पूरा होने तक नियमित रूप से दवाई की खुराक दी जाती है। जिले में एमडीआर मरीजों की संख्या 36 है।
बचाव व लक्षण
छूत का रोग होने के कारण टीबी के कीटाणु आसानी से एक दूसरे तक फैलते रहते हैं। भीड़भाड़ वाले स्थान पर मुंह को ढककर रखने, खांसी करते समय मुंह पर कपड़ा रखने, साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखने, दूध को अच्छी तरह से उबाल कर पीने तथा अच्छी खुराक लेने से इससे बचा जा सकता है। कमजोर मनुष्यों पर आसानी से हमला करने वाले टीबी कीटाणु अच्छी खुराक खाने से सफल नहीं हो पाते। लगातार दो सप्ताह तक खांसी के साथ बलगम आने, बलगम के साथ हल्का खून आने, शाम को हल्का बुखार होने या थकावट के साथ बुखार होने, वजन घटने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
ऐसे पनपता रोग
गाय या भैंस का कच्चा (बिना उबाले या सीधे थनों से) दूध पीने, हवा के माध्यम से, पीड़ित मरीज के बर्तन या कपड़े प्रयोग करने तथा सीधे संपर्क में आने व पानी इत्यादि के माध्यम से एक दूसरे में फैलती है।
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टीबी से बचाव के लिए सरकार के निर्देश पर विभाग द्वारा व्यापक स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है। जिले भर में 13 स्थानों पर जांच लैब स्थापित की गई है। जांच के बाद स्वास्थ्य वर्कर्स, आंगनबाड़ी वर्कर्स या फिर आशा वर्कर्स के माध्यम से मरीजों को समय पर खुराक देने की व्यवस्था की हुई है। इससे बचाव के लिए समय- समय पर जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं।
डॉ. मंजुला, डिप्टी सिविल सर्जन