यहां हर कोई छुपाता अपनी पहचान
जागरण संवाददाता, जींद : अलग-अलग फील्ड में काम करने वालों की पहचान अलग-अलग होती है, परंतु कुछ के लिए
जागरण संवाददाता, जींद : अलग-अलग फील्ड में काम करने वालों की पहचान अलग-अलग होती है, परंतु कुछ के लिए स्पेशल ड्रेस कोड बनाया गया है। कचहरी में पांव रखते ही काला कोट तो अस्पताल में कदम रखते ही हर किसी की निगाह सफेद कोट को ढूढ़ने लगती है। अस्पताल में पहुंचने के बाद सफेद कोट नजर नहीं आए तो, मरीजों के लिए डॉक्टर व आम इंसान की पहचान करना मुश्किल काम है।
ऐसे में यदि अस्पताल में पूरा सिस्टम ही अपनी पहचान छुपाने का प्रयास करे तो वहां मरीजों व उनके अभिभावकों की मनोदशा का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। जिला सामान्य अस्पताल में मंगलवार को कुछ ऐसा ही देखने को मिला, जब अस्पताल के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर एसएमओ तक ड्रेस कोड की बजाय साधारण कपड़ों में ड्यूटी बजाते नजर आए।
मंगलवार सुबह करीब करीब साढ़े 11 बजे का वक्त था। अस्पताल में पंजीकरण खिड़की से लेकर ओपीडी व डिस्पेसरी तक मरीजों की लंबी-लंबी कतारें लगी हुई थी। कोई बारी के इंतजार में खड़ा था तो कोई अस्पताल में बने बैंचों पर बैठकर अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। दैनिक जागरण की टीम सबसे पहले एमरजेंसी विंग में पहुंची। जहां एक महिला चिकित्सक साधारण कपड़ों में एक मरीज की जांच कर रही थी। थोड़ा आगे बढ़ने के बाद यहीं पर एक अन्य मरीज की जांच भी सामान्य कपड़ों में करते हुए पाई गई। इसके बाद यहां से सीधे लैब का रुख करने पर लैब को पूरे अमले के बिना ड्रेस कोड के काम करते हुए पाया। यहां से सीधे सर्जन ओपीडी के 11 नंबर कक्ष का रुख किया। यहां भी साधे कपड़ों में एक चिकित्सकों को मरीजों की जांच करते हुए पाया। इसके बाद जच्चा-बच्चा वार्ड से होते हुए निक्कू का रुख किया गया। जहां कार्यरत महिला चिकित्सक भी बगैर ड्रेस कोड के अपनी ड्यूटी बजाती नजर आई। यह सिलसिला यही पर खत्म नहीं हुआ तथा यहां से सीधे डिस्पेंसरी का रख किया तो डिस्पेंसरी में कार्यरत फार्मेसिस्ट भी साधे कपड़ों में ही मरीजों को दवाईयां देते नजर आए। यानी की करीब आधे घंटे तक अस्पताल के प्रत्येक कोने में घूमने के दौरान कहीं कोई ऐसा छोर नजर नहीं आया, जहां पैरा-मेडिकल स्टाफ व चिकित्सक अपनी पहचान छुपाकर काम करते देखे गए। ऐसे में यदि चिकित्सक व पैरोडिकल स्टाफ के सदस्य मरीजों के सामने से भी गुजर जाए तो मरीज उन्हें पहचान नहीं पाते। जिससे मरीजों व उनके अभिभावकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
एसडीएम ने खुद देखा था नजारा
पिछले सप्ताह अल्ट्रासाउंड न होने पर स्ट्रेचर के साथ मरीजों को डीसी निवास पहुंचने के बाद चिकित्सकों व मरीजों में जमकर आरोप प्रत्यारोप का दौर चला था। इसी विवाद के बीच स्थिति का जायजा लेने के लिए जब एसडीएम वीरेंद्र सिंह सहरावत जिला सामान्य अस्पताल पहुंचे तो एमरजेंसी के डाक्टर सादे कपड़ों में ड्यूटी बजा रहे थे। यानी की खुद एसडीएम भी अपनी आंखों से डाक्टरों को अपनी पहचान छुपाकर ड्यूटी करते देख चुके हैं, भले ही उन्होंने इसे अनदेखा कर दिया हो।
हर किसी के लिए होता ड्रेस कोड
स्वास्थ्य संस्थाओं में कार्यरत स्वीपर से लेकर मेडिकल सूपरीटेडेट तक सभी के लिए ड्रेस कोड निर्धारित होता है। डाक्टरों के साथ-साथ फार्मेसिस्ट, लैब सहायक, स्टाफ नर्स (एएनएम, जीएनएम), रेडियोलोजिस्ट आदि को एपरेन (सफेद कोट) पहनना होता है। जबकि स्वीपर, चपरासी, वार्ड सहायक व सुरक्षाकर्मियों के लिए भी भी ड्रेस कोड निर्धारित होता है।
न्यू कृष्णा कालोनी निवासी मनीषा ने बताया कि सुबह नौ बजे आई थी। जिस कमरे भी देखो, वहीं अधिकतर सादे कपड़ों में नजर आता है। जिससे पता ही नहीं चलता कि कौन स्टाफ का है तथा कौन बाहर का।
बूढ़ा खेड़ा लाठर निवासी रामपाल ने बताया कि हाथ में फेक्चर दिखाने के लिए आया था। कमरे में कोई बैठा नहीं है तथा बाहर कोई कुछ बताने वाला नहीं है। घंटों इंतजार के बाद सादे कपड़ों में एक आया तथा पर्ची देखकर डाक्टर नहीं होने की बात कहते हुए तीन दिन बाद आने के लिए कहा।
विभाग की तरफ से सभी के लिए गाइड लाइन बनाई गई है तथा गाइड के अनुसार ड्रेस कोड के लिए सभी को निर्देश जारी किये हुए हैं। यदि इस मामले में लापरवाही बरती जा रही है, तो नए सिरे से निर्देश जारी गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित किया जाएगा।
डॉ. अनिल कुमार बिरला
मेडिकल सूपरीटेंडेट, सामान्य अस्पताल जींद।