साग हरियाणवी संस्कृति का हिस्सा : नरसीराम
संवाद सूत्र, उचाना : कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी की ओर से आयोजित रत्नावली युवा साग महोत्सव का बृहस्पतिवा
संवाद सूत्र, उचाना : कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी की ओर से आयोजित रत्नावली युवा साग महोत्सव का बृहस्पतिवार को राजीव गाधी महाविद्यालय उचाना में शुभारंभ हुआ। महोत्सव की शुरुआत बागर शिक्षा समिति के प्रधान लाला नरसीराम ने दीप प्रवलित करके की। यह युवा साग महोत्सव चार दिनों तक चलेगा। इसका समापन 1 मार्च को होगा। साग का बुजुर्गो, छात्र-छात्राओं ने लुत्फ उठाया। महाविद्यालय में शुरू हुए रत्नावली युवा साग महोत्सव में पहले दिन आरके एसडी कॉलेज कैथल की टीम ने सेठ ताराचंद किस्से के दूसरे भाग चंद्रगुप्त पर आधारित साग प्रस्तुत किया।
लाला नरसीराम ने कहा कि साग को हरियाणवी संस्कृति का हिस्सा माना जाता है। गाव में आयोजित होने वाले साग को देखने के लिए सभी एकत्र होकर जाते थे। समय के आए बदलाव के चलते युवा पीढ़ी का साग को लेकर रुचि कम हो रही है। इस तरह के आयोजनों से युवाओं का साग की तरफ रुझान बढ़ेगा। साग उत्सव देख कर लगता है कि हमारी पुरानी संस्कृति आज भी जीवित है। इस मौके पर साग आयोजक बलजीत सिंह, प्राचार्य डॉ. रोहताश मलिक, डॉ. राजेश श्योकंद, कुमार अनिल, अशोक कुमार,जगदीप, राजेश गोयत, नीना शर्मा मौजूद रहे।
साग के माध्यम से दर्शाया दान-पुण्य का महत्व
साग में युवा टीम द्वारा दर्शाया गया सेठ ताराचंद दिल्ली शहर का रहने वाला था। वह दानी, धर्मार्थ व्यक्ति था। वह खुले मन से दान, दक्षिणा व सेवा का कार्य करता था, जिससे उसका व्यापार भली-भाति फल-फूल रहा था। सेठ ताराचंद ने एक दिन अपने छोटे भाई हरिराम के कहने से दान-पुण्य बंद कर दिया। इस कारण सेठ ताराचंद के के व्यापार में नुकसान होना शुरू हो जाता है। इससे एक दिन उसकी स्थिति यह हो जाती है कि उनके पास कुछ परिवार चलाने के लिए कुछ नहीं बचता। सेठ ताराचंद अपने घर को चलाने के लिए छह साल के लड़के चंद्र गुप्त को हापुड़ शहर में अपने परम मित्र मंशा सेठ के यहा गिरवी रख देते हैं। एक रोज मंशा सेठ के दोनों पुत्र सिंघल द्वीप में व्यापार करने से जाने से मना कर देते हैं। इन दोनों की जगह चंद्र गुप्त वहा व्यापार करने के लिए चला जाता है। जब वह व्यापार करने के लिए जाने लगता है तो उसकी भाभियों ने उससे नौ करोड़ी लाल, सच्चे मोतियों को चुड़ा लाने के लिए कहती है। भाभियों ने चंद्रगुप्त को कहा कि अगर वो ये नहीं लेकर आए तो अपनी शक्ल न दिखाए। वहा जाकर चंद्र गुप्त ने व्यापार में अच्छा-खाश पैसा कमा लिया। जब वह वापस घर लौटने लगता है तो उसने अपने भाभियों से किया वायदा याद आता है, जिसको लेकर वह काफी चिंतित होकर बैठ जाता है। तब उसे साधु मिलता है। साधु चंद्र गुप्त से चिंता का कारण पूछा तो उसने पूरी बात साधु को बताई। साधु ने बताया कि जो चीज आपकी भाभियों ने मंगवाई है वह सिर्फ शादियों में ही मिलती है। साधु ने बताया कि यहा एक सेठ की लड़की की शादी है, बारात आने वाली है। लड़की का जो दूल्हा है, वह काले रग का है। वह आपसे एक दिन का दूल्हा बनने के लिए कहे तो आप उनकी बात से इकार मत करना है। वह साधु की बात मान कर एक दिन का दूल्हा बन कर धर्ममाल से शादी रचा लेते है। शादी रचाने के लिए धर्ममाल को सच्चाई का पता लगता है तो वह अपने पिता को कहती है कि जिसके साथ मैंने फेर लिए है मैं उसके साथ ही जाऊंगी। चंद्र गुप्त धर्ममाल को लेकर अपने घर की तरफ निकल पड़ते है। रास्ते में उन्हे समझ आती है कि तेरे पास कुछ भी नही धर्ममाल को कहा रखेगा। सेठ ताराचंद दोबारा से धर्म-कर्म करने लगता है। धर्म-कर्म में इतनी शक्ति होती है कि उसे अपना गिरवी रखा पुत्र मिलने के साथ व्यापार पहले की तरह चल पड़ता है। इससे शिक्षा मिलती है मनुष्य को जीवन में धर्म-कर्म करते रहने चाहिए, जिससे हमारे जीवन में सुख-शाति बनी रहे।
ये होंगे साग
चार दिनों तक चलने वाले युवा साग महोत्सव में 27 फरवरी को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की टीम द्वारा नौ बाहार, 28 फरवरी को राजकीय कॉलेज पानीपत की टीम द्वारा खंडे राव परी, एक मार्च को राजकीय कॉलेज करनाल की टीम द्वारा सिंगला भरथरी पर आधारित साग प्रस्तुत किया जाएगा।