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जीवन का बस मंत्र यही, मम दीक्षा गोरक्षा : स्वामी सत्यदेवानंद

जागरण संवाददाता, झज्जर : गोरक्षा सिर्फ किसी एक धर्म या संप्रदाय से जुड़ा विषय नहीं है बल्कि ये मान

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Jun 2017 01:01 AM (IST)Updated: Fri, 23 Jun 2017 01:01 AM (IST)
जीवन का बस मंत्र यही, मम दीक्षा गोरक्षा : स्वामी सत्यदेवानंद
जीवन का बस मंत्र यही, मम दीक्षा गोरक्षा : स्वामी सत्यदेवानंद

जागरण संवाददाता, झज्जर :

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गोरक्षा सिर्फ किसी एक धर्म या संप्रदाय से जुड़ा विषय नहीं है बल्कि ये मानव समाज के अस्तित्व की लड़ाई है। गोरक्षा प्रत्येक व्यक्ति को बचाने की लड़ाई है, जब समाज में गौ माता की रक्षा होगी, गो आधारित कृषि और व्यापार होंगे, गोमाता के दूध, दही, घी और पंचगव्य से निर्मित चीजों का सेवन होगा तभी व्यक्ति के सद्चरित्र का निर्माण होगा। सद्चरित्र लोगों से एक सभ्य और सुसंस्किरित समाज का निर्माण होगा।

उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत की धर्म और अर्थ व्यवस्था गो पर ही निर्भर थी। घरों में फर्श लेपने और खाना पकाने से लेकर औषधियों और कृषि भूमि से लेकर वाहन के रूप में गो की भूमिका सर्वोपरि रही है। भारत का प्रत्येक नागरिक अगर गो प्रेमी हो और वह अपना कुछ समय और आय का भाग गोवर्धन में नियोजित करें तो इस देश का और उस गौ प्रेमी का उठान सुनिश्चित है।

प्रवचन के दौरान उन्होंने भक्त प्रह्लाद और वामन अवतार का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि भगवान तो भक्त के वशीभूत है। बस जरूरत है उनके अहसास को समझते हुए आगे बढ़ने की। आज की कथा में श्री राम चरित मानस से भगवान श्री राम का जन्म और श्री कृष्ण जन्मोत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। आदर्श जीवन जीने से जुड़े विषय पर अपनी बात रखते हुए स्वामी जी ने कहा कि भगवान श्रीराम की मातृ-पितृ भक्ति भी बड़ी महान थी वो अपने पिता राजा दशरथ के एक वचन का पालन करने 14 वर्ष तक वनवास काटने चले गए और माता कैकयी का भी उतना ही सम्मान किया। भातृ प्रेम के लिए तो श्रीराम का नाम सबसे पहले लिया जाता है उन्होंने अपने भाइयों को अपने बेटों से बढ़ कर प्यार दिया इनके इसी भातृ प्रेम की वजह से उनके भाई उन पर मर मिटने को तैयार रहते थे। श्रीराम ने रावण का और अन्य असुरों का संहार कर धरती पर शांति भी कायम की।

गोसेवा के चमत्कार : अनादिकाल से मानवजाति गोमाता की सेवा कर अपने जीवन को सुखी, समृद्ध, निरोग, ऐश्वर्यवान एवं सौभाग्यशाली बनाती चली आ रही है। तीर्थ स्थानों में जाकर स्नान दान से जो पुन्य प्राप्त होता है, ब्राह्मणों को भोजन कराने से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, सम्पूर्ण व्रत-उपवास, तपस्या, महादान तथा हरी की आराधना करने पर जो पुण्य प्राप्त होता है, सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा, सम्पूर्ण वेदों के पढ़ने तथा समस्त यज्ञों के करने से मनुष्य जिस पुण्य को पाता है, वही पुण्य बुद्धिमान पुरुष गोमाता को खिलाकर पा लेता है। जो पुरुष गोमाता की सेवा और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौ माता उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती है। गाय की सेवा यानी गाय को चारा डालना, पानी पिलाना, गाय की पीठ सहलाना, रोगी गाय का ईलाज करवाना आदि करने वाले मनुष्य पुत्र, धन, विद्या, सुख आदि जिस-जिस वस्तु की ईच्छा करता है, वे सब उसे प्राप्त हो जाती है, उसके लिए कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होती।


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