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जनहित जागरण : जिला में केवल बहादुरगढ़ क्षेत्र की होती है वायु प्रदूषण की सैंप¨लग

जागरण संवाददाता, झज्जर : हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से झज्जर जिले में केवल बहादुरगढ

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 May 2017 04:56 PM (IST)Updated: Mon, 22 May 2017 04:56 PM (IST)
जनहित जागरण : जिला में केवल बहादुरगढ़ क्षेत्र की होती है वायु प्रदूषण की सैंप¨लग

जागरण संवाददाता, झज्जर : हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से झज्जर जिले में केवल बहादुरगढ़ क्षेत्र से ही वायु प्रदूषण के लिए सैंपल लिए जा रहे हैं। बाकि जिले में प्रदूषण का स्तर क्या है इसके आंकड़े बोर्ड के पास भी नहीं हैं। इसे देखा जाए तो प्रदूषण नियंत्रण के मामले में केवल खानापूर्ति होती दिखाई दे रही है। इन आंकड़ों के अनुसार तो बहादुरगढ़ क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर मानकों से कम है। जबकि परिवेश वायु में निलंबित कण वस्तु (एसपीएम) के प्रदूषकों का प्रमुख स्त्रोत वाहन से निकलने वाला धुआं, सड़क धूल, कचरा और अवशेष जलाने, निर्माण धूल आदि हैं। जो वायु प्रदूषण को बढ़ावा देने में करीब 70 फीसद योगदान करते हैं। वायु प्रदूषण में बाकि योगदान औद्योगिक इकाईयों का माना जा रहा है। हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक एसपीएम 10 माइक्रोन या उससे कम के व्यास वाले कणों की मात्रा 10 माईक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब से कम होना चाहिए। जबकि बहादुरगढ़ क्षेत्र में वायु प्रदूषण में इनकी मात्रा औसतन आठ माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब है। जबकि मानकों के अनुसार आरएसपीएम की मात्रा वातावरण में 100 माइक्रोगाम प्रति मीटर क्यूब होनी चाहिए। आंकड़ों के अनुसार बहादुरगढ़ क्षेत्र में इनकी औसतन मात्रा करीब 91.3 माईक्रोगाम प्रति मीटर क्यूब है। हालांकि बाकि जिले में अगर कोई शिकायत आदि के आधार पर ही कभी-कभी प्रदूषण की जांच के लिए सैंपल लिए जाते हैं। जबकि दीपावली के आसपास आतिशबाजी के कारण व फसलों की कटाई के सीजन में फसलों के अवशेष जलाने के कारण वातावरण में जहरीली गैसें घुलने से लोगों का सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है और आंखों में भी जलन होती है। इसके बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। पिछले कई दिनों तक क्षेत्र में स्मोग कर समस्या भी बन गई थी।

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550 औद्योगिक इकाईयां हैं जिले में : प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार झज्जर जिले में करीब 550 औद्योगिक इकाईयां बताई जा रही हैं। इसे देखते हुए फिलहाल झज्जर जिले में केवल बहादुरगढ़ क्षेत्र में नियमित जांच होती है। जबकि झाड़ली क्षेत्र में थर्मल पावर प्लांट व अन्य औद्योगिक इकाईयां होने के कारण वहां की एजेंसी की तरफ से प्रदूषण की जांच की जाती है।

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ड्रेन आठ दे रही प्रदूषण को बढ़ावा : पहले साहबी नदी के पानी को यमुना तक ले जाने वाली ड्रेन नंबर आठ जल प्रदूषण को बढ़ावा देने में महती भूमिका निभा रही है। इसके

पानी में प्रदूषण का स्तर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के अनुसार नहीं है। पानी में बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड 30 बीओडी प्रति लीटर होनी चाहिए। पानी में केमिकल आक्सीजन की डिमांड 250 मिली ग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। वहीं ऑयल व ग्रीस की मात्रा मानकों के मुताबिक 10 मिली ग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए, लेकिन ड्रेन नंबर आठ के पानी में तो इनकी मात्रा कहीं अधिक है। शहरों के सीवरों का पानी इस ड्रेन में गिरता है जो इसे प्रदूषण का मुख्य कारण बना हुआ है। इसके पानी को प्रदूषण रहित

करने के लिए बनाए गए ट्रीटमेंट प्लांट भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के अनुसार पानी को साफ नहीं कर रहे हैं।

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चार जिलों का गंदा पानी लाती है ड्रेन : प्रदेश के चार जिलों सोनीपत, रोहतक, झज्जर व गुड़गांव से निकलने वाले गंदे व दूषित पानी को लेकर दिल्ली होते हुए यह यमुना नदी में

गिरती है। करीब 200 किलोमीटर लंबी 1600 क्यूसिक की क्षमता वाली ड्रेन नंबर आठ वैसे तो जींद से शुरू होती है। सोनीपत के गोहाना से रोहतक जिले से होती हुई झज्जर जिले में प्रवेश करती है यहां इसका नाम ड्रेन नंबर आठ होता है। झज्जर से आगे यह दिल्ली में नजफगढ़ के पास नजफगढ़ ड्रेन में मिल जाती है। इसके बाद यह दिल्ली की गंदगी को साथ लेकर यमुना नदी में गिरती है। यह ड्रेन जिन शहरों के साथ से गुजरती है। उन शहरों से निकले वाली गंदगी को अपने साथ बहा कर ले जाने वाली इस ड्रेन के पानी में प्रदूषण का स्तर काफी अधिक है। झज्जर के बहादुरगढ़ शहर व उद्योगों का दूषित पानी भी को लेकर जाने वाला नाला भी आगे दिल्ली में जाकर यमुना तक जाने वाली इसके माध्यम से यमुना में गिरता है।

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पर्यावरण हो रहा दूषित, भूमि हो रही बंजर : मिट्टी के खनन से वन क्षेत्र हो या वन क्षेत्र से बाहर (प्री कवर एरिया) वनस्पतियां इसकी भेंट चढ़ रही हैं। खनन चाहे वैध हो या अवैध इसका सीधा प्रभाव पेड़-पौधों पर पड़ रहा है। हरियाली दिन प्रति दिन सिमटती जा रही है और पर्यावरण भी दूषित होता ता रहा है। वहीं कृषि योग्य भूमि बंजर होती जा रही है। मिट्टी के चल रहे अंधाधुंध खनन से पेड़ पौधे नष्ट होने के साथ खेतों की सकल सूरत भी बिगड़ती जा रही है। हर वर्ष हजारों एकड़ भूमि से ईंट बनाने के लिए मिट्टी उठाई जाती है। खेतों से उठाई जा रही मिट्टी के कारण भूमि का जल स्तर भी बिगड़ता जा रहा है। जिससे वर्षा व सर्दी के मौसम में भूमि का जल स्तर उपर आ जाता है। जिससे पेड़ पौधे भी नष्ट हो जाते हैं। जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।

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450 ईंट भट्ठे चल रहे हैं जिले में : झज्जर जिले में करीब 450 से ईंट भट्ठे हैं। इन दिनों भट्ठों पर ईंट बनाने का कार्य चल रहा है। ईंट बनाने के लिए जहां मिट्टी का खनन किया जा रहा है। वहीं इनकी चिमनियां भी धुआं उगल रही हैं। जिला में सबसे अधिक ईंट भट्ठे बादली क्षेत्र में हैं। लेकिन इस क्षेत्र के वायु प्रदूषण की जांच नहीं की जा रही है। बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार अभी तक जिला में मैनुअल रूप से प्रदूषण की जांच की जाती है। आन लाइन सिस्टम होने के बाद नियमित रूप से जांच होने लगेगी। फिलहाल मैंन पावर की भी कमी है।

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नाईट्रोजन व फास्फोरस की कमी : भूमि सरंक्षण विभाग के अनुसार जिले की भूमि में नाइट्रोजन व फास्फोरस की सबसे ज्यादा कमी है। इसका मुख्य कारण मिट्टी का हो रहा खनन भी है। मिट्टी के खनन के कारण भूमि की उपरी परत प्रभावित हो जाती है। जिसमें फसल के लिए सभी प्रकार को पोषक तत्व मौजूद होते हैं और इसका असर फसलों व पेड़ पौधों पर भी पड़ता है। जब पेड़ पौधे कम होंगे तो वातावरण भी दूषित होगा।

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जिला : झज्जर

शहर : तीन

गांव : 262

ग्राम पंचायत : 250

2011 में जनसंख्या : 956097

2016 में कुल जनसंख्या : 992415

कुल पुरूष : 528963

कुल महिला : 463450

शहरी क्षेत्र की जनसंख्या : 225894

ग्रामीण क्षेत्र की जनसंख्या : 766521

पांच साल में जनसंख्या बढ़ी : 35508

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शहरों में जनसंख्या :

बहादुरगढ़ में कुल जनसंख्या : 154924

पुरूष : 79735

महिलाएं : 75189

झज्जर में कुल जनसंख्या : 55230

पुरूष : 29643

महिलाएं : 25587

बेरी में कुल जनसंख्या : 154924

पुरूष : 8280

महिलाएं : 7460

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औद्योगिक इकाई : करीब 550

ईंट भट्ठे : करीब 450

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जिले में कृषि के लिए कुल भूमि :

- 1 लाख 91 हजार हेक्टेयर

- कितनी भूमि में हो रही खेती :1 लाखा 61 हजार हेक्टेयर भूमि

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3902 हेक्टेयर है वन क्षेत्र :

झज्जर जिले में 3902 .38 हेक्टेयर कुल वन क्षेत्र है। इससे 491 हेक्टेयर सीमित क्षेत्र, 76.04 हेक्टेयर अन्य क्षेत्र, रेल की पटरियों के किनारे झज्जर जिले में 146.57 हेक्टेयर, सड़कें किनारे 1294.26 हेक्टेयर, नहरों व ड्रेनों के किनारे 1852.19 हेक्टेयर, बांधों के किनारे 42.42 हेक्टेयर भूमि वन क्षेत्र में आती है।

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नासमझी से हालात बेकाबू : बिसाहन गांव के सरकारी स्कूल के प्राचार्य ने स्कूल को ही हराभरा नहीं बनाया बल्कि आसपास के क्षेत्र को भी हराभरा बनाया है। बच्चों के सहयोग से हर साल पौधरोपण अभियान चला कर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रहे हैं। बिसाहन स्कूल के प्राचार्य तथा पर्यावरण संरक्षण अभियान में नंबर एक रहने वाले अशोक कादियान का कहना है कि लोगों की नासमझी की वजह से हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। इसके निदान के बारे में उनका कहना है कि ठोस नीति ही पर्यावरण को बचा सकती है। पर्यावरण संरक्षण के केवल पेड़ पौधों से हो सकता है। इस लिए हर नागरिक का फर्ज है कि अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगा की उन्हें अपने बच्चों की तरह पालें।

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प्रशासन की तरफ से किये जा रहे हर साल प्रयास : झज्जर जिले में मानसून के सीजन पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रशासन की तरफ से हर साल लाखों पौधे लगवाए जाते हैं। इनमें किसानों व बच्चों को अपने खेतों व प्लाटों आदि में पौधे लगाने के लिए मुफ्त पौधे वितरित किये जाते हैं। वहीं वन विभाग की तरफ से भी पंचायती व शामलात भूमि पर पौधे लगा कर पर्यावरण संरक्षण किया जा रहा है।

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झज्जर जिला में बहादुरगढ़ औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण वहीं के सैंपल लिये जाते हैं। पूरे जिले से सैंपल लेने के लिए मैंनपावर अधिक चाहिए। कुछ समय बाद प्रक्रिया को आन लाइन कर दिया जाएगा। उसके बाद प्रदूषण की जांच का दायरा बढ़ जाएगा।

- सतेंद्र पाल बांगड़, कार्यकारी अभियंता, प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड, बहादुरगढ़।


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