'मौत और डर के बारे में सोचने का नहीं था वक्त'
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : दिल्ली से हम करीब 50 किलोमीटर दूर थे। उस वक्त एयर एंबुलेंस का लेफ्ट इ
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ :
दिल्ली से हम करीब 50 किलोमीटर दूर थे। उस वक्त एयर एंबुलेंस का लेफ्ट इजन फेल हो गया था। पैसेंजर को अलर्ट करके एटीसी को सूचना दे दी गई थी। हमने बता दिया था कि इमरजेंसी लैंडिग करने जा रहे है। मगर एयरपोर्ट जब 10 किलोमीटर रह गया, तब दूसरा इंजन भी फेल हो गया था। उसके बाद तो सोचने और करने के लिए मुश्किल से 20 सेकेंड का ही वक्त था। नीचे देखा तो शहर था। कुछ ही पलों में दिल्ली-हरियाणा के बॉर्डर पर खाली जगह देखी तो वही लैंडिग कर दी। शुक्र रहा विमान किसी चीज से नहीं टकराया, वरना परिणाम कुछ ओर होता। सप्ताहभर पहले हुई एयर एंबुलेंस विमान की लैंडिग की घटना के वक्त जो आपातस्थिति बनी, उन्हीं पलों को सह पायलेट रोहित ने रविवार को यहा पर साझा किया। ऐसे वक्त में समझदारी और बहादुरी दिखाने पर रोहित का यहा की छोटूराम धर्मशाला में लोगों की ओर से सम्मान भी किया गया।
इस दौरान सह पायलेट रोहित ने उन हालातों का विस्तार से वर्णन किया, जो आपात स्थिति में बने थे। मूल रूप से प्रदेश के चौटाला गाव के रहने वाले रोहित सहारण ने बताया कि इमरजेंसी लैंडिग से पहले तो उनके पास इतना भी वक्त नहीं था कि वे मौत और डर के बारे में सोच सके। दूसरा इजन फेल न होता तो हालात ऐसे न बनते। मगर जब दोनों ही इजनों ने काम करना बंद कर दिया तब किसी भी हिस्से में लैंडिंग करनी थी। कुछ ही सेकेंड का वक्त हमारे पास था। एक तरफ नजफगढ़ शहर था और दूसरी तरफ सामने 150-200 घर नजर आ रहे थे। ऐसे में कैर और सीदीपुर गाव के बीच खाली खेतों को इसके लिए चुना। रोहित बताते है कि मैं विमान में दायीं तरफ बैठा था। पायलेट अमित और मैने एक साथ मन बनाया और वहीं पर लैंडिंग कर दी। इससे पहले यह जरूर देखा कि वहा पर हाईटेंशन की लाइन तो नही। ऐसा नजर नहीं आया तो सीधे विमान को जमीन पर ले आए। यदि बीच में सड़क न आती तो विमान का कोई पुर्जा टूटता भी नहीं। हा, इतना जरूर है कि ऐसे वक्त में किसी चीज से टकराने के बाद विमान में आग लगने का खतरा होता है, क्योंकि विमान में ईधन कहीं ज्यादा होता है। हमने सभी यात्रियों को करीब 15 मिनट पहले बता दिया था कि वे सीट बेल्ट बाध ले। हम इमरजेंसी लैंडिग करने जा रहे है, मगर एयरेपोर्ट तक विमान नहीं पहुच सका। जब दूसरा इजन फेल हुआ तो विमान करीब साढ़े तीन हजार फीट की ऊंचाई पर था। बाद में जब जमीन पर रुका और सभी सुरक्षित बचे तब जान में जान आई।
ट्रेनिंग में सीखा था, हकीकत में पहली बार हुआ
सह पायलेट रोहित बताते है कि इस तरह की आपात स्थिति से कैसे निपटा जाए इसके बारे में ट्रेनिंग के वक्त सिखाया तो जाता है, मगर ऐसा हकीकत में मेरे साथ पहली बार हुआ। वक्त बेहद कम था, इसलिए उस दौरान तो आखें सिर्फ खाली जगह तलाश रही थी। किसी तरह के डर की स्थिति में पहुचने तक का वक्त नही मिला।
लोगों ने किया अभिनंदन
शहर की छोटूराम धर्मशाला में लोगों ने सह पायलेट रोहित का इस बहादुरी और समझदारी के लिए पगड़ी बाधकर अभिनंदन किया। लोगों ने कहा कि ऐसे वक्त में सूझबूझ से काम लेकर दोनों पायलेट ने खुद की और विमान में सवार सभी लोगों की जान बचाई, यह सराहनीय काम है। इस दौरान धर्मशाला प्रधान सज्जान दलाल, दयाकिशन छिल्लर, रवि छिल्लर, पप्पू दलाल, जगदीश शर्मा, जयकिशन दलाल, सनवीर दलाल, बुल्लड़ पहलवान, कृष्ण दलाल, चेतराम डबास, अश्वनी, महेद्र प्रधान समेत काफी लोग उपस्थित थे।