Move to Jagran APP

असंतुलित लिंगानुपात क्या बन पाएगा चुनावी मुद्दा

By Edited By: Published: Sat, 23 Aug 2014 01:02 AM (IST)Updated: Sat, 23 Aug 2014 01:02 AM (IST)

अमित पोपली, झज्जार :

loksabha election banner

राजनीति भी एक अजीब शय है। मुद्दे आते है और चर्चा का विषय बन जाते हैं। चुनाव के समय पर अलग समीकरण और अलग मुद्दे प्रचार के दौरान हावी होते है। मुद्दे के नाम पर जमकर वोट मागी जाती है। कोई मुद्दा पूरा हो जाए तो उसे भुनाकर वोट मिलती है। कुल मिलाकर सारा खेल वोट का रहता है। बात चुनावी माहौल की है तो यहा एक जमात ऐसी भी है जो कि आधी आबादी जिसमें चूल्हा चौका करने वाली से लेकर कामकाजी महिलाएं शामिल है। जिनके अधिकार और उन्हे प्रदान किए जाने वाले आरक्षण की इस दफा भी खूब बातें होंगी और उनको पूरा किए जाने के दावें भी होंगे। इसी जमात से जुड़ा एक गंभीर पहलू है निरतर असंतुलित होता हुआ लिंगानुपात। जिसका मूल कारण कन्या भ्रूण हत्या के रुप में देखने को मिला है। यहा चिंता का विषय यह है कि अभी तक के समय काल में ऐसा देखने को नहीं मिला कि असंतुलित हो रहे लिंगानुपात से जुड़े विषय को चुनावी मुद्दे के रुप में लिया गया हो। जबकि समय की जरुरत यह दिखती है कि आधी आबादी के जन्म लेने से पूर्व जो पुख्ता इतजाम होने चाहिए उसे राजनैतिक दलों के मेनीफेस्टो में एक अह्म मुद्दे के रुप में स्थान प्रदान किया जाए। चूंकि संविधान ने महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर प्रदान करने का अधिकार प्रदान किया है।

----------------

महाराजा अग्रसेन महिला महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. साधना गुप्ता का कहना है कि कल्पना चावला के प्रदेश हरियाणा की बात करे तो यहा करीब 1.56 करोड़ मतदाताओं में से 71 लाख से अधिक मतदाता महिलाएं है। महिलाओं के लिए बनाए जाने वाले कानूनों को कड़ाई से लागू करने एवं उन्हे मुद्दे के रुप में सामने लाने वाली कड़ी का मजबूत होना भी अनिवार्य है। घर से लेकर कार्यस्थल तक सुरक्षा का मुद्दा तथा ग्रामीण अंचलों में शराब व अन्य नशीलें पदार्थो की बढ़ती हुई बिक्री से घरेलू हिंसा या महिला अत्याचारों में लगातार बढ़ोतरी का होना स्वयं में काफी परेशानीदायक है। कन्या भ्रूण हत्या जैसे गंभीर विषय को इस दफा चुनावी मुद्दे के रुप में शामिल किए जाने को वह सीधे रुप से महिला सशक्तिकरण की एक अह्म कड़ी से जोड़कर देखती है। उनके मुताबिक अगर ऐसा होता है तो उसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।

बेरी विस क्षेत्र से इनेलो के लिए मैदान में उतरी डॉ. संतोष अहलावत का कहना है कि वे पिछले लंबे समय से इस मुहिम में जुटी है। बेशक ही इनेलो की ओर से घोषित हो चुके मेनीफेस्टो में इस विषय को शामिल नहीं किया गया है। लेकिन वे व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं से जुड़े हुए सभी मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर लेकर चल रही है। उनकी नजर में बगैर महिलाओं का सशक्तिकरण किए आदर्श समाज की परिकल्पना करना नामुमकिन ही प्रतीत होता है।

झज्जर से विधायक एवं कैबिनेट मंत्री गीता भुक्कल का कहना है कि वे चुनाव के दौरान अवश्य ही इस मुद्दे को गंभीरता से आमजनता के समक्ष उठाएंगी। उनका कहना है कि यह मुद्दा काफी गंभीर है और सीधे रुप से सामाजिक ताने-बाने पर असर डालने वाला है। ऐसे में काग्रेस सहित अन्य सभी राजनैतिक दलों को इस विषय पर एकमत होते हुए जनता के बीच पहुचना चाहिए। उनका कहना है कि विषय को मेनीफेस्टो में डाले जाने से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हमारी सभी की अपनी सोच इसके प्रति गंभीर बने।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.