कोख में ही हत्या के मामलों में कमी नहीं
जागरण संवाददाता, झज्जर : लिंग विषमता अनुपात के मामले में जिले के हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं। यहां प्रति एक हजार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या 816 है, जो एक खराब स्थिति मानी जा सकती है। सुंदरहेटी में दो दिन पूर्व एक कन्या का भू्रण मिलने के बाद इस बात को और अधिक बल मिल रहा है कि जिले में कन्या भू्रण हत्या की घटनाओं में कमी नहीं आ रही। स्वास्थ्य विभाग के तमाम प्रयास विफल साबित हो रहे हैं। पीएनडीटी एक्ट को सख्ती से लागू करने में भी विभाग पूरी तरह सफल साबित नहीं हो रहा।
प्रदेश में कन्या भू्रण हत्या की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने प्री नेटल डायग्नास्टिक तकनीक यानि पीएनडीटी एक्ट को सख्ती से लागू कराने के आदेश कई बार दिए हैं। झज्जर, नारनौल, रेवाड़ी व पलवल जिलों में लिंग विषमता अनुपात की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। इन जिलों में प्रति एक हजार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या 816 से कम ही है, जो काफी खतरनाक है। वर्ष 2011 के आंकड़ों के मुताबिक उस समय जिले में प्रति हजार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या 862 थी। यानि प्रदेश सरकार के कन्या भू्रण हत्या की घटनाओं को रोकने के तमाम प्रयास यहां फेल ही साबित हुए हैं। दो दिन पूर्व सुंदरहेटी में करीब सात माह का कन्या भू्रण मिलने के बाद यह बात और पुख्ता हो गई है कि गर्भ में कन्याओं की हत्या करने के मामलों में कमी नहीं आ रही है। इन मामलों में पुलिस अज्ञात महिला के खिलाफ केस तो दर्ज करती है, लेकिन बाद में केस फाइलों में ही सिमटकर रह जाता है। कन्या भू्रण हत्या की बढ़ती घटनाओं के पीछे अल्ट्रासाउंड केंद्र संचालकों का हाथ रहता है। कई केंद्र संचालन पूरी सख्ती के बावजूद गर्भ में भू्रण लिंग की जांच का काम करते हैं। इस काम में ग्रामीण क्षेत्रों में बिना डिग्री के प्रेक्टिस करने वाले कथित डाक्टरों की भूमिका भी होती है। ये फर्जी डाक्टर गर्भवती महिलाओं को एक विशेष पर्ची के जरिए अल्ट्रासाउंड केंद्रों तक भेजते हैं, जहां पर्ची के आधार पर गर्भ में शिशु के लिंग की जांच की जाती है। कानून के शिकंजे से बचने के लिए पर्ची में कोई खास बीमारी के लिए अल्ट्रासाउंड की बात लिखी जाती है, जबकि केंद्र संचालक मोटे पैसे लेने के बाद मौखिक तौर पर यह बताते हैं कि गर्भ में पल रहा शिशु लड़का है या लड़की। इसके बाद लड़की के प्रति औछी मानसिकता रखने वाले लोग ऐसे ही फर्जी डाक्टरों से गर्भपात कराने में कामयाब हो जाते हैं।
कारगर नहीं रहे कदम
स्वास्थ्य विभाग की ओर से कन्या भू्रण हत्या की घटनाओं को रोकने के लिए गर्भवती महिलाओं पर नजर रखने का निर्णय लिया गया था। इसके तहत विभाग की महिला कर्मचारियों, आशा वर्करों और आंगनवाड़ी वर्करों की सहायता से गर्भवती महिलाओं की सूची तैयार करने व नियमित अंतराल के बाद उनकी जांच करने का प्रावधान किया गया था। इस मामले में अब सिर्फ खानापूर्ति ही हो रही है। अभी तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है, जिसमें गर्भपात की बात सामने आई हो।
रिकॉर्ड के नाम पर चकमा
विभाग की ओर से पीएनडीटी एक्ट को सख्ती से लागू कराने के लिए इसी साल मार्च माह में आदेश जारी किए गए थे, जिसके तहत अल्ट्रासाउंड केंद्र संचालकों को गर्भवती महिलाओं का अल्ट्रासाउंड करने से पूर्व एक फॉर्म भरना था। इसमें महिला के नाम से लेकर बच्चों तक का पूरा ब्योरा देना होता है। इसके बावजूद अधिकांश अल्ट्रासाउंड केंद्र संचालक नियमों को ताक पर रखकर काम कर रहे हैं। कानून जितना सख्त होता है, ये लोग अपनी फीस उतनी ही ज्यादा कर देते हैं।
यह है एक साल की स्थिति
कुल पंजीकृत अल्ट्रासाउंड केंद्र 29
जांच में पकड़े गए केंद्र 05
फर्जी डाक्टरों पर केस 24
भू्रण मिलने के मामले 04
पीएनडीटी एक्ट को सख्ती से लागू करने के लिए लगातार कार्रवाई की जा रही है। विशेष टीम बनाकर अल्ट्रासाउंड केंद्रों की जांच की जाती है। प्रदेश में सबसे ज्यादा केस हमारे जिले में ही दर्ज कराए गए हैं।
-डा. रमेश धनखड़, सीएमओ।