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हरियाणा के इन गांवों में बसता फौजियों का दिल, कहीं चार पीढि़यां इंडियन आर्मी में कर रही देश सेवा

हरियाणा में कई ऐसे गांव है जहां हर घर में सैनिक है। हरियाणा से दो थल सेनाध्यक्ष भी रह चुके हैं। एक-एक गांव में सैकड़ों सैनिक हैं। कुछ परिवार ऐसे हैं जिनकी चार पीढिय़ां सेना में हैं

By Manoj KumarEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 05:45 PM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 05:45 PM (IST)
हरियाणा के इन गांवों में बसता फौजियों का दिल, कहीं चार पीढि़यां इंडियन आर्मी में कर रही देश सेवा

हिसार, जेएनएन। झज्जर जिले का गांव बिसाहन हो या भिवानी का बापोड़ा। कैथल का गुलियाणा हो या  यमुनानगर का तिगरा। ये ऐसे गांव हैं, जहां घर-घर में सैनिक हैं। हालांकि ये महज बानगी हैं, और ऐसे गांवों की संख्या प्रदेश में काफी हैं। इन गांवों में कई ऐसे परिवार भी हैं, जहां चार-चार पीढिय़ां सेना में हैं। बापोड़ा पूर्व सेनाध्यक्ष बीके सिंह और बिसाहन पूर्व सेनाध्यक्ष दलबीर सिंह सुहाग का गांव है। इन दोनों गांवों के युवाओं में सेना के प्रति जबर्दस्त क्रेज है। इस गांव में कैथल के गांव गुलियाणा में 400 के करीब फौजी हैं। गांव के युवा सुबह-शाम आपसी सहयोग से तैयार किए गए अस्थाई स्टेडियम पर पसीना बहाते हैं।

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यहां हर घर से आ रही देश सेवा की खुशबू

झज्जर जिले में बिसाहन गांव के हर घर से देश सेवा की खुशबू और किस्से सुनने को मिलते हैं। यह आर्मी चीफ रहे दलबीर सुहाग का पैतृक गांव है। इसे फौजियों का गांव कहा जाता है। गांव बिसाहन की आबादी करीब 3000 की है। गांव के लिए गौरव की बात यह है कि लगभग हर परिवार से कोई न कोई किसी न किसी रूप से सेना से जुड़ा हुआ है। इस गांव से निकलकर 50 से अधिक सुपुत्र सेना में लेफ्टिनेंट, कर्नल , मेजर जैसे पद पर रह चुके हैं। काफी संख्या में सूबेदार, सिपाही के पद पर भी यहां के लोग तैनात हैं। गांव की चौपाल हो या सरकारी स्कूल। यहां हर रोज सेना और उससे जुड़े हुए किस्सों को सुना जा सकता है।

गुलियाणा की मिट्टी में पैदा होते फौजी

कैथल के गुलियाणा गांव की पहचान फौजियों के गांव के नाम से है। यहां छह साल में 350 से ज्यादा युवाओं ने फौज में नौकरियां हासिल की हैं। सेना में शामिल हो चुके गांव के ही युवा ट्रेनिंग देते हैं। इस गांव के युवा भारतीय सेना, एयरफोर्स, नेवी, बीएसएफ, हरियाणा, दिल्ली व चंडीगढ़ पुलिस सहित कई विभागों में नौकरी कर रहे हैं। पूरे गांव में करीब 1200 परिवार हैं, जिसमें से आज 700 से अधिक परिवारों में फौजी हैं।

वीर सपूतों को जन्म देता है करनाल का जयसिंहपुर गांव

करनाल जिले के गांव जयसिंहपुर की जनसंख्या लगभग 6500 है। आजादी के बाद से आज तक इस गांव के सैकड़ों सैनिक देश की सेवा कर चुके हैं। गांव में एक परिवार ऐसा है, जिसकी लगातार चार पीढिय़ां देश सेवा में लगी हैं। यही नहीं, परिवार से भारतीय सेना में अलग-अलग पदों पर सात सदस्य रह चुके हैं। परिवार के मुखिया सबसे ज्यादा उम्रदराज 89 वर्षीय पूर्व हवलदार रामचंद्र हैं जबकि उनका पड़पोता 18 वर्षीय राहुल भी देश सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध है। पूर्व हवलदार रामचंद्र ने बताया कि उनकी चौथी पीढ़ी देश सेवा के लिए मैदान में है। 1965 और 1971 की लड़ाइयों में उनकी हिस्सेदारी रही। उनके बेटे पूर्व कप्तान रामेश्वर ने बताया कि 1971 के भारत -पाकिस्तान युद्ध में हम दो भाई और पिता रामचंद्र एक साथ हिस्सा ले चुके हैं। उस युद्ध में हमारे परिवार से अलग गांव के दर्जनों सैनिकों ने दुश्मन के छक्के छुड़ाए थे। रामेश्वर ने बताया कि देश सेवा का जज्बा हमारे परिवार और गांव में कूट-कूट कर भरा हुआ है। उन्होंने बताया कि उनके बाद पहले बेटे सुरेश कुमार ने सेना में भर्ती होकर देश की सेवा की। फिर सुरेश कुमार का बेटा राहुल 12वीं कक्षा में पढ़ते-पढ़ते सेना में भर्ती हो गया। गांव में शहीद मोमनराम का स्मारक करनाल रोड पर स्थित है।

सेनाध्यक्ष के गांव बापोड़ा में गली-गली में सरहद के रक्षक

भिवानी जिले का बापोड़ा पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह का गांव है। इस गांव में हर तीसरे घर में सैनिक हैं, इसलिए इस गांव को फौजियों का गांव कहा जाता है। यहां दर्जनों सेना के बड़े अधिकारी हैं। खेल स्टेडियम यहां पर है वह अनदेखी का शिकार है। सेना में जाने के लिए यहां के युवाओं में उत्साह बना रहता है। सेना में भर्ती होने के लिए युवाओं को अभ्यास के लिए नजदीक के शहर में जाना पड़ रहा है।

तिगरा गांव के रोम-रोम में देशभक्ति

बात यदि देश प्रेम की हो और यमुनानगर के तिगरा गांव का जिक्र न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। इस गांव के रोम-रोम में देशभक्ति है। हर गली में सरहद के रक्षक बसें हैं। 45 युवा देश की सेवा को समॢपत हैं। इनमें 35 भारतीय सेना, तीन पुलिस विभाग व एक मर्चेंट नेवी में है। छह भारतीय सेना से रिटायर हो चुके हैं। क्षेत्र का यह एकमात्र गांव हैं जहां से इतनी बड़ी तादाद में युवा सेना में हैं। यहां के युवाओं में सेना में भर्ती होने की होड़ है। बता दें कि यह गांव यमुना नदी के किनारे बसा है और गांव की आबादी करीब ढाई हजार है।


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