बिटिया के अफसर बनने का 'सपना' वक्त ने छीन लिया
आदित्य राज, गुरुग्राम सड़क के किनारे बेटी सपना को स्कूल जाने के लिए छोड़कर गई थी, दुनिया से जाने के
आदित्य राज, गुरुग्राम
सड़क के किनारे बेटी सपना को स्कूल जाने के लिए छोड़कर गई थी, दुनिया से जाने के लिए नहीं। कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा हादसा हो जाएगा, वरना बच्चे को कभी यहां छोड़कर नहीं जाती। वक्त ने उसे हमेशा के लिए छीन लिया। यह कहते-कहते मां शोभा बार-बार बेहोश हो रही थी।
शनिवार सुबह सेक्टर 45 में एक पिकअप ने चार वर्षीय सपना को कुचल दिया। सपना की मां शोभा ने बताया कि वह प्रतिदिन अपने दोनों बच्चे को तैयार करके घर से कुछ ही दूरी पर मार्केट के नजदीक छोड़कर काम पर चली जाती थी। आसपास के लोग दोनों बच्चों को पहचानते है, इसलिए वह निश्चिंत रहती थी। अगर उसे जरा भी अंदेशा होता तो वह बच्चों को छोड़कर नहीं जाती। जिस बेटी के लिए उसने इतने सपने देखे थे वह सब एक झटके में खत्म हो गया। उसका नाम भी सपना इसलिए रखा था कि अपने सपने पूरे हो सकें। सोचा था कि चाहे जितनी मेहनत करनी पड़े दोनों बच्चों को पढ़ा-लिखाकर अफसर बनाना है।
बहन को ढूंढ रही है भाई की आंखें
छह वर्षीय सौरभ प्रतिदिन अपनी बहन सपना को साथ लेकर ही साउथ सिटी एक स्थित महर्षि दयानंद मॉडल प्राइमरी स्कूल जाता था। उसकी आंखों के सामने ही हादसा हुआ। इसके बाद भी उसे ऐसा नहीं लगता है कि उसकी बहन अब दुनिया में नहीं रही। वह कहता है उसकी बहन को चोट लग गई है। ठीक होने के बाद आ जाएगी। पड़ोसियों की आंखों के आंसू भी नहीं थम रहे हैं क्योंकि सपना काफी चुलबुली थी। वह किसी के भी पास जाने में हिचकती नहीं थी।
'सपना स्कूल की रौनक थी'
सपना महर्षि दयानंद मॉडल प्राइमरी स्कूल में नर्सरी की छात्रा थी। वह काफी तेजतर्रार थी। उसे जो भी टास्क दिया जाता था उसे हर हाल में पूरा करती थी। उसकी मौत की सूचना मिलते ही शनिवार को स्कूल में सन्नाटा पसर गया। शिक्षकों से लेकर बच्चों ने उसे भावभीनी श्रद्धांजलि दी। स्कूल के संस्थापकों में से एक वयोवृद्ध समाजसेवी व लेखक जयदेव हसीजा वानप्रस्थी कहते हैं कि सपना स्कूल की रौनक थी। हर गतिविधि में वह बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थी। वह निश्चित रूप से आगे चलकर बेहतर करती। उसके मां-बाप चाहते थे कि सपना जीवन में बेहतर करे। जो वे प्राप्त न कर सकें, सपना के माध्यम से प्राप्त करें। बता दें कि महर्षि दयानंद मॉडल प्राइमरी स्कूल में गरीब परिवार के बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है। स्कूल पूरी तरह सामाज के सहयोग से चलता है।