उम्मीद अभी जिंदा है..
आदित्य राज, गुड़गांव : उत्तराखंड त्रासदी के लगभग 22 महीने हो गए लेकिन तारावती के बच्चों की आंखों के आ
आदित्य राज, गुड़गांव : उत्तराखंड त्रासदी के लगभग 22 महीने हो गए लेकिन तारावती के बच्चों की आंखों के आंसू नहीं सूखे। इतने महीनों बाद भी परिजनों को लगता है कि तारावती ही नहीं बल्कि उनके साथ लापता हुए सभी लौट आएंगे। वे भटक गए हैं। इसी भरोसे के साथ गांव वजीराबाद से एक बार फिर सात लोग केदारनाथ के लिए रवाना हुए हैं।
लगभग दो साल पूर्व गांव वजीराबाद से आठ लोग चारों धाम की यात्रा पर निकले थे। तमन्ना थी परिजनों एवं रिश्तेदारों के साथ बाबा केदार के दरबार में मत्था टेकने की। 15 जून 2013 को उत्तराखंड में इतनी जबर्दस्त बारिश हुई जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। बारिश की वजह से ऐसी तबाही मची कि देखते ही देखते सबकुछ तबाह हो गया। लगातार दो दिन तक प्रकृति का तांडव चला। इस दौरान जहां हजारों लोग पानी में बह गए वहीं हजारों लोग अपनों से बिछड़ गए। इस त्रासदी के शिकार गांव वजीराबाद स्थित एक घर से एक साथ चारों धाम की यात्रा पर निकले लोग भी हुए। आठ लोगों में तीन दीपक, साहिल एवं चमेल किसी तरह लौटकर आ गए लेकिन तारावती, ताराचंद, सुशीला, दुलीचंद एवं चंपा के लौटने का इंतजार अब तक खत्म नहीं हुआ। तारावती दीपक की मां हैं, ताराचंद मामा हैं, सुशीला मौसी हैं, चंपा बुआ हैं जबकि दुलीचंद ड्राइवर है। सुशीला एवं ताराचंद दिल्ली के बादली निवासी हैं जबकि चंपा फरुखनगर के नजदीक खेड़ा गांव निवासी है। दुलीचंद मूल रूप से राजस्थान का रहने वाला है।
जारी हो चुके हैं मृत्यु प्रमाण
पांचों के मृत्यु प्रमाण भी जारी हो चुके हैं। इसके बाद भी परिजनों एवं रिश्तेदारों को सभी के लौटने का इंतजार है। त्रासदी के बाद से कई बार परिजन बाबा केदार के दरबार तक पहुंच चुके हैं लेकिन उम्मीद नहीं टूटी है। अब एक बार फिर सात लोग केदारनाथ के लिए रवाना हुए हैं। सभी को लगता है कि जो गायब हैं वे अपनों से बिछड़ने की वजह से मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए होंगे। काफी लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त हालत में वहां पर मिले भी हैं। इस वजह से भी परिजनों एवं रिश्तेदारों की उम्मीद बंधी है। इसी तरह फरुखनगर एवं पटौदी इलाके से भी काफी लोग गए थे जिनमें कई लौटकर नहीं आए। जिला प्रशासन की ओर से सभी का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हो चुका है।
पता नहीं कब होगा दुख का अंत
तारावती के पुत्र दीपक यादव कहते हैं कि यात्रा के दौरान उनकी मां पोते साहिल का हाथ पकड़कर चल रही थी। त्रासदी में साहिल से उसका हाथ छूट गया। साहिल भी कई दिनों बाद मिला था लेकिन मां आज तक नहीं मिली। लगता है उनकी मां साहिल को ही ढूंढने में भटक गई। इस वजह से वह मानसिक रूप से परेशान हो गई होंगी। इतने महीनों के बाद भी ऐसा लगता है जैसे अब सभी लौटकर आ जाएंगे। जितनी खुशी चारों धाम की यात्रा पर जाने की थी उतना ही दुख त्रासदी से पैदा हुआ। पता नहीं कब दुख का अंत होगा।
आंखों के सामने दिखता है मंजर
उत्तराखंड त्रासदी से किसी तरह परिवार सहित बचकर आए डीएलएफ निवासी अशोक कुमार यादव कहते हैं कि इतने महीनों बाद भी खौफनाक मंजर आंखों की सामने दिखता है। बच्चे तो कई बार अभी भी चौंक जाते हैं। ऐसी त्रासदी किसी फिल्म में भी नहीं देखी थी। देखते ही देखते हजारों मकान, हजारों लोग, हजारों वाहन खत्म हो गए। पेड़ों के पत्ते की तरह गाड़ियां पानी में बह गई। केदारनाथ एवं रामबाड़ा सहित कई इलाके बर्बाद हो गए थे। पता नहीं परिवार सहित बचकर कैसे आया। हालांकि, इसके बाद भी पता नहीं क्यों बार-बार बाबा के दरबार में जाने का मन करता है। इस बार जाने का विचार है। यदि बहुत लोगों की जानें गई हैं तो यह भी सत्य है उनके जैसे हजारों परिवार भी उस त्रासदी से बचकर बाहर आए हैं। कहीं से भी बचकर आने की उम्मीद नहीं थी। यह भी भोले बाबा का ही चमत्कार है।