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मुक्ति ही सर्वोत्तम आनन्द: स्वामी सत्यानन्द गिरी

जागरण संवाददाता, गुड़गांव : अखण्ड परमधाम गुफावाले शिवमंदिर सेवा समिति द्वारा सेक्टर-51 स्थित मेफील

By Edited By: Published: Fri, 27 Mar 2015 07:35 PM (IST)Updated: Fri, 27 Mar 2015 07:35 PM (IST)
मुक्ति ही सर्वोत्तम आनन्द: स्वामी सत्यानन्द गिरी

जागरण संवाददाता, गुड़गांव : अखण्ड परमधाम गुफावाले शिवमंदिर सेवा समिति द्वारा सेक्टर-51 स्थित मेफील्ड गार्डन में रात्रि को चलने वाले माण्डूक्योपनिषद के छठें दिन अपने प्रवचन में श्री श्री 1008 महामण्डलेश्वर स्वामी सत्यानन्द गिरी जी महाराज ने प्रवचन में श्रृद्धालुओं को बताया कि मनुष्य को अपनी इद्रियों को भौतिक सुख देने की बजाय आध्यात्मिक सुख पाने का प्रयास करना चाहिए। मानव जीवन बहुत क्षणिक है, परतु है बहुत मूल्यवान। इसलिए मनुष्य का कर्तव्य है कि वे अपने आप को भगवान की भक्ति से जोड़ें।

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स्वामी जी ने कहा कि सिर्फ मनुष्य शरीर ही ऐसा शरीर है जिसे परमात्मा ने उच्चतर बुद्धि दी है और हमें उच्चतर चेतना भी मिली है। इसलिए जीवन में आध्यात्मिक आनंद के लिए प्रयत्न करना चाहिए। सबको चाहिए कि परमात्मा की सेवा में लीन रहे क्योंकि वे ही मुक्ति रूपी आनन्द प्रदान करने वाले है।

उन्होंने यह भी कहा कि मुक्ति ही सर्वोत्तम आनन्द है। अभी हम भौतिक बंधन में हैं। इस समय जो शरीर हमें मिला है वह कुछ समय बाद इस शरीर को त्याग करके दूसरा अन्य शरीर धारण करने के लिए बाध्य होना होगा। दूसरा शरीर कौन मिलेगा यह व्यक्ति की अपनी इच्छा पर निर्भर है। स्वामी जी ने कहा कि कलयुग में मानव जीवन को सौ वर्ष का माना जाता है। आधा जीवन रात में सोने में बीत जाता है और दिन के समय मनुष्य को यह चिंता रहती है कि धन कहा है। मैं अपने शरीर को कैसे बनाए रखूं और जब धन आ जाता है तो वह सोचता है कि क्यों न में इसका उपयोग अपनी पत्नी व परिवार के अन्य सदस्यों के लिए करूं। स्वामी जी कहते है इस प्रकार के क्रम से आध्यात्मिक अनुभूति नहीं रहती।

संसारिक सुखों को भोगने वाला व्यक्ति खुद तो दुख पाता ही है दूसरों को भी दुखी करता है। सभी भोग दुखों के कारण है। सासारिक सुख पहले भी नहीं थे और बाद में भी नहीं रहेगे। स्वयं अविनाशी होते हुए भी ऐसे नाशवान सुखों के वश में होना अपना नाश करने के बराबर है। सुख का भोगी व्यक्ति कभी पापों और दुखों से बच नहीं सकता और इससे प्रसन्न होने वाले व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिल सकता। कर्मयोगी व्यक्ति विरक्त और त्यागी होता है उसे देखकर दूसरों को सुख होता है।


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