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ऐसे स्वच्छता अभियान के क्या मायने

By Edited By: Published: Sat, 13 Sep 2014 09:22 PM (IST)Updated: Sat, 13 Sep 2014 09:22 PM (IST)

जागरण संवाददाता, गुड़गांव : देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भले ही स्वच्छता की चिंता हो, लेकिन सरकारी एजेंसियां आज भी दशकों पुरानी कार्यशैली से ही काम कर रही हैं। देश को स्वच्छ व निर्मल बनाने के अभियान की शुरुआत मोदी ने शौचालय निर्माण कराने के साथ करने का एलान किया। दिल्ली में नगर निगम ने विज्ञापन, पंफलेट एवं एफएम के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का अभियान भी शुरू कर दिया है। दूसरी ओर गुड़गांव की नगर निगम एवं जिला प्रशासन अभी तक निष्क्रिय बना हुआ है।

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शहर में हजारों लाखों की तादात में दूसरे प्रदेश के लोग यहां पर मेहनत-मजदूरी कर रहते हैं। इस वर्ग के अधिकतर लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। सबसे अधिक दिक्कत महिलाओं एवं लड़कियों को होती है। शौच के लिए यह सड़क किनारे, ग्रीन बेल्ट, नाले, जोहड़ आदि का उपयोग करते हैं। साथ ही इन्हें अलसुबह उठना होता है। इसके अलावा मुख्य मार्केट, चौक-चौराहा हों या फिर बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन के आसपास का एरिया सार्वजनिक शौचालय की कमी साफ नजर आती है। इसी के चलते लोग सार्वजनिक जगह का उपयोग करने को विवश हैं। निगम ने करीब सौ मोबाइल टायलेट तो शहर में विभिन्न जगह रखा रखे हैं लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं। साथ ही इनके रखने की जगह ठीक नहीं है। इसके कारण इनका समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। यदि सरकारी स्कूलों का निरीक्षण किया जाए तो वहां पर भी शौचालय की कमी साफ नजर आती है। यह किसी की समझ में नहीं आ रहा कि इस मुद्दे को जब पीएम प्रमुखता से उठा रहे हैं, तो आखिरकार सरकारी मशीनरी इसमें क्यों लापरवाही बरत रही हैं।

सदन में हमेशा उठा मुद्दा

नगर निगम की तीन साल से हो रही अधिकतर बैठक में सार्वजनिक शौचालय निर्माण का मुद्दा पार्षदों ने उठाया। बावजूद आज भी इसकी प्लानिंग कागजों तक ही सीमित है।

''किसी को भी खुले में शौच न जाना पड़े इस दिशा में हम बहुत काम कर रहे हैं। यहां तक मनरेगा योजना के तहत भी शौचालय का निर्माण कराया जा रहा है। स्कूलों में पर्याप्त शौचालय हों इसके लिए लगातार निर्देश दिए जा रहे हैं।''

-पुष्पेंद्र सिंह चौहान, अतिरिक्त उपायुक्त

''सार्वजनिक जगह शौचालय निर्माण के लिए जगह का चयन हो गया है। मोबाइल टायलेट का उपयोग हो इस दिशा में भी ठोस कदम उठाएंगे।''

-बलजीत सिंह सिंगरोहा, चीफ इंजीनियर


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