टिकट पक्का नहीं, खर्च सीमा पार
सत्येंद्र सिंह, गुड़गांव : बगैर अधिसूचना जारी हुए ही चुनाव मैदान में ताल ठोंक कूद पड़े पहलवानों की अब बेचैनी बढ़ने लगी है। रकम खर्च का मीटर देख कईयों के तो दस्त भी लग गए हैं। उन्हें ओआरएस का घोल पीना पर रहा है। जबकि कुछ नेताओं ने अपने हाथ भी समेट लिए हैं। दरअसल जो बजट भावी उम्मीदवारों ने टिकट मिलने पर नैया पार कराने के लिए तैयार किया था वहां तक खर्च मीटर की सुई अभी से ही पहुंच चुकी है। ऐसे में टिकट मिला तो आगे नैया कैसे चलेगी? इसके लिए नेता परेशान नजर आ रहे हैं।
उन्हें लग रहा था कि पंद्रह अगस्त तक अधिसूचना जारी हो जाएगी और बीस अगस्त तक पार्टी उम्मीदवारों की घोषणा कर देगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पहले लगाए गए कयासों के विपरीत चुनाव तिथि में घोषित होने में कब से कम बीस दिन से अधिक विलंब है। अब उम्मीद है कि सितंबर के प्रथम सप्ताह में चुनावी तिथि की घोषणा होगी। ऐसे में जिस उत्साह से टिकट की आस में कई पार्टियों से उम्मीदवारों ने ताल ठोंकी थी वह प्रचार की मैराथन पारी नहीं झेल पा रहे हैं। रकम खर्च कर एक नेता अपने पक्ष में हवा बनाता है तो दूसरे दिन दूसरा अपनी ताकत दिखा हवा अपने माकूल बना लेता है। एक क्रम लगभग एक माह से चल रहा है। शुरुवात में पोस्टर वार भी चल रहा था वह भी धीरे-धीरे कम पड़ता जा रहा है। चुनावी मौसम देख कर बार की तरह फुदकने वाले नेताओं की तो दम भी टूट चुकी है। वह अंदर खाते दूसरे के भी हो लिए हैं। कांग्रेस पार्टी से टिकट का दावा करने वाले उम्मीदवार ने कहा बढ़े समय ने उनका बजट खराब कर दिया। पार्टी ने अगर टिकट दिया तो चुनाव लड़ने के लिए उसे रकम जुटानी पड़ेगी। फायदा उन उम्मीदवारों को जरूर है जिन्हें टिकट मिल चुका है या मिलना पक्का है। वह पोस्टर वार से दूर हट डोर-टू डोर मतदाता दर्शन पर अधिक विश्वास कर रहे हैं। उनकी नजर में उन्हें फायदा भी चुनाव में मिल जाएगा। क्योंकि मतदाता यह तो मानेगा कि टेली मैसेज नहीं नेता जी खुद उसके द्वार तक आए। इन सभी बातों से हट बाजा-गाजा वाले प्रचार आइटम बनाने वाले टैक्सी संचालक, बाउंसर जरूर खुश है क्योंकि उन्हें एक मुश्त रोजगार लंबे दिनों तक बरकरार रहेगा।