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पटौदी के दो जांबाजों की शहादत

By Edited By: Published: Sun, 27 Jul 2014 02:53 AM (IST)Updated: Sat, 26 Jul 2014 06:37 PM (IST)
पटौदी के दो जांबाजों की शहादत

संवाद सहयोगी, पटौदी : कारगिल युद्ध में पटौदी क्षेत्र के जांबाजों ने सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया था। कारगिल में शहीद होने वाला सबसे कम उम्र का शहीद भी इसी क्षेत्र का था। क्षेत्र को ही नहीं बल्कि देश को अपने इन वीर सपूतों पर गर्व है।

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शहीदों में मुमताजपुर गांव के लास नायक आजाद सिंह एवं दौलताबाद कूणी के बिजेंद्र सिंह शामिल थे। शहीद बिजेंद्र सिंह की तो उस समय आयु मात्र पौने अठारह वर्ष थी। वह कारगिल में शहीद होने वाला देश का सबसे कम उम्र का जवान था।

शहीद आजाद सिंह

लास नायक आजाद सिंह का जन्म मुमताजपुर निवासी चौ. सुल्तान सिंह-कमला देवी दंपती के घर 4 मई 1969 को हुआ था। वह बचपन से दिलेर था एवं देश सेवा की भावना उसमें कूट कूटकर भरी हुई थी। 1988 में वह फौज में भर्ती हो गया था। आतंकवादियों द्वारा निर्दोषों की हत्या करने पर उसे बहुत गुस्सा आता था। वह कहा करता था कि एक बार उसे पाकिस्तानी सेना से दो-दो हाथ करने का मौका मिलना चाहिए। उसकी यह इच्छा कारगिल युद्ध के दौरान पूरी हुई। कारगिल युद्ध मेंआजाद सिंह एवं उसके साथियों को मश्कोह घाटी में प्वाइंट 4730 चौकी दुश्मनों से खाली करवाने के आदेश हुए। आजाद सिंह ने चौकी पर मौजूद 21 पाक सैनिकों को मार गिराया। बाद में पाकिस्तान ने चौकी पर आर्टिलरी से भारी गोलाबारी कर दी। तोप का एक गोला गलने से आजाद सिंह शहीद हो गया था। आजाद सिंह का बेटा राजू कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहा है जबकि बेटी निधि बारहवीं कक्षा में पढ़ रही है। निधि डाक्टर बन देश की सेवा करना चाहती है तो राजू इजीनियर बन समाज की सेवा करना चाहता है। आजाद के पिता की मृत्यु हो चुकी है। शहीद स्मारक बनाने की राशि अब तक नहीं मिली।

शहीद विजेंद्र सिंह

पटौदी के गांव दौलताबाद कूणी में जगमाल सिंह-बिरमा देवी के घर 1 अक्टूबर 1981 को जन्मे बिजेंद्र सिंह में भी बचपन से देश सेवा की भावना भरी हुई थी। दसवीं कक्षा उत्तीर्ण करते ही वह 19 मार्च 1998 को फौज में 13 कुमायू रेजीमेंन्ट में भर्ती हो गए थे। कारगिल युद्ध के दौरान उन्हे चोटी नंबर 5685 को दुश्मनों से खाली करवाने का हुकम हुआ। बिजेंद्र ने अपने कुछ साथियों के साथ अग्रिम पंक्ति में चौकी पर धावा बोला तथा चार पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया। परन्तु इसी दौरान 30 अगस्त को उसे दुश्मन की सात गोलियां लगीं और वह वीरगति को प्राप्त हो गए। पौने अठारह वर्ष की आयु में शहादत देने वाले बिजेंद्र पर उसके परिजनों, क्षेत्रवासियों को ही नहीं अपितु पूरे देश को गर्व है। परिजनों को भी चाहे सरकार द्वारा की गई घोषणाओं का लाभ मिला है परंतु उनके घर तक पक्की सड़क बनाने का वादा आज तक पूरा नहीं हो पाया।


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