अंग प्रत्यारोपण कमेटी आरटीआइ के दायरे में
जागरण संवाददाता, गुड़गांव : अंग प्रत्यारोपण करने वाले अस्पतालों को अंग प्रत्यारोपण संबंधी सारी जानकारी लोगों तक पहुंचानी होगी। अंग प्रत्यारोपण कमेटी आरटीआइ एक्ट 2005 के दायरे में आती है। इस कमेटी की कार्यवाही और फैसले आरटीआइ एक्ट के तहत उपलब्ध कराने होंगे।
मेदांता और आर्टिमिस अस्पतालों को अंग प्रत्यारोपण की कमेटी से जुड़े सवालों को लेकर लगाई गई आरटीआइ में राज्य सूचना आयोग के डबल बेंच में योगेन्द्र पॉल गुप्ता और उर्वशी गुलाटी की पीठ ने यह फै सला दिया है। इस फैसले में यह स्पष्ट किया गया है कि मेदांता और आर्टिमिस अस्पताल में अंग प्रत्यारोपण के लिए बनने वाली अधिकृत कमेटी सरकार के नोटिफि केशन से बनती है। इसलिए यह पब्लिक अथॉरिटी की परिभाषा के दायरे में आती है। इसलिए इन अस्पतालों की अंग प्रत्यारोपण से संबंधी कमेटी को आरटीआइ के दायरे में अंग प्रत्यारोपण से जुड़े सवालों के जवाब देने होंगे। साथ ही यह आदेश दिया है कि इन अस्पतालों में मेडिकल सुपरिटेंडेंट अपने अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण सेवाओं संबंधी जानकारी लोगों के लिए उपलब्ध कराएं।
शहर के आरटीआइ एक्टिविस्ट हरींद्र धींगरा की सूचना के अधिकार के तहत दिए गए आवेदन पर राज्य सूचना आयुक्त की डबल बेंच ने यह फैसला पिछली 11 अप्रैल को दिया है। राज्य सूचना आयोग के समक्ष तीन अगस्त 2013 आवेदन किया गया था। इसमें पूछा गया था कि सेक्टर-38 स्थित मेदांता अस्पताल और सेक्टर 51 स्थित आर्टिमिस अस्पताल की अस्पताल आधारित अंग प्रत्यारोपण की अथॉराइजेशन कमेटी की पूरी जानकारी दी जाए। इस बैठक में सदस्यों की अटेंडेंस सीट, अंग प्रत्यारोपण के लिए ली जाने वाली फीस के डॉक्यूमेंट, कमेटी की जांच और अप्रूवल, कमेटी मीटिंग से संबंधित सारे कागजात, संबंधित आकड़े, अगर नष्ट कर दिए गए हैं तो वह किस नियम के तहत किए गए हैं।
इस आरटीआई में अस्पतालों ने यह कह कर सूचना देने से मना कर दिया था कि अस्पताल पब्लिक अथॉरिटी नहीं है। हरीन्द्र धींगरा का कहना है कि देश का यह पहला ऐसा फैसला है जिसके बाद अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया पारदर्शी हो जाएगी। जिन अस्पतालों में 25 से ज्यादा अंग प्रत्यारोपण होते हैं, वहां राज्य सरकार एक कमेटी बनाती है, जिसके सात सदस्य होते हैं। इसमें प्रशासन की ओर एडीसी ओर सीएमओ, दो सामाजिक कार्यकर्ता और तीन अस्पताल के लोग होते हैं।
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यह होगा फायदा
- अंग प्रत्यारोपण का पूरी प्रक्रिया पारदर्शी हो जाएगी
- अनुमति की प्रक्रिया के लिए लिया चार्ज की शिकायतें होती थी, यह दूर हो जाएगी।
-जब यह प्रक्रिया आरटीआई एक्ट 2005 के दायरे आएगी तो मानव अंग की खरीद फरोख्त जिसकी शिकायतें होती थी, यह बहुत ही कठिन हो जाएगी।
- अंग प्रत्यारोपण के प्रस्ताव से लेकर अनुमति तक पूरी प्रक्रिया लोगों की जांच के लिए उपलब्ध होगी।
- इससे इलाज की लागत कम हो जाएगी।