डाइटीशियन के प्लान में फिट नहीं पुलिस विभाग का मीनू
डाइटीशियन ने सलाह दी है कि पुलिस कर्मचारी दोपहर का खाना भर पेट खाएं। लंच अच्छी क्वालिटी का होना चाहि
डाइटीशियन ने सलाह दी है कि पुलिस कर्मचारी दोपहर का खाना भर पेट खाएं। लंच अच्छी क्वालिटी का होना चाहिए। मगर सरकारी कैंटीन के मीनू में दोपहर का भोजन बनता ही नहीं। फील्ड में काम करने वाले कर्मचारियों का सोने व उठने का कोई समय निर्धारित नहीं है। कर्मचारी खुद संकट में हैं कि कब व्यायाम करें और कहां से खाना खाएं।
पेश है एक रिपोर्ट:-
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प्रदीप जांगड़ा, फतेहाबाद
एएसआइ ओमप्रकाश ने शाम को सलाह बनाई कि सुबह उठकर आंवला रस व एलोवेरा पीएगा। इसके बाद सैर करने जाएगा। रात को दो बजे फोन आया कि बीघड़ में मर्डर हो गया। घंटी बजते ही ओमप्रकाश पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचा। शव को अस्पताल पहुंचाया। घटना स्थल से सबूत एकत्र किए। पीड़ितों के बयान दर्ज किए। कागजी कार्रवाई करते-करते अगली सुबह हो गई। फिर हत्यारों की धरपकड़ के लिए निकल पड़ा। कार्रवाई में ही पूरा दिन बीत गया। खाली पेट। खाने को जो मिला, वह खा लिया।
यह हर उस पुलिस कर्मचारी की दिनचर्या है, जो फील्ड में काम करता है। ऐसे में यह फरमान पुलिस कर्मचारियों को परेशान कर रहा है कि पुलिस कर्मचारी अपनी फिटनेस सुधारें। क्योंकि धरातल पर पड़ताल करें तो डाइटीशियन के सुझावों को पुलिस कर्मचारी चाह कर भी नहीं मान सकते। डाइटीशियन ने पुलिस कर्मचारियों को जो डाइट प्लान बनाकर दिया है, सरकारी भोजन उसके अनुसार मिलता ही नहीं है। हालात ये हैं कि दिन भर कर्मचारी भूखे रहकर ड्यूटी करते हैं। जब खाना मिलता है, तब भूख से भी ज्यादा खा जाते हैं। कई तो थकावट दूर करने के लिए कुछ शराब का सहारा भी लेते हैं। साथ में रात को मांस व अंडे भी खाते हैं।
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इतना सादा भोजन, फिर भी मोटापा
थानों की कैंटीन में कर्मचारियों के लिए भोजन तैयार होता है। इस भोजन में सादी दाल, सब्जी व रोटी होती है। चिकित्सक दावा करते हैं कि सादा भोजन करने से व्यक्ति फिट रहता है। मगर सवाल यही है कि सरकारी भोजन इतना सादा होने के बावजूद पुलिस कर्मचारी मोटे क्यों हो जाते हैं। कर्मचारियों की मानें तो यह भोजन केवल उन्हीं को समय पर नसीब हो पाता है, तो थाने में ही ड्यूटी करते हैं। फील्ड में काम करने वालों को यह खाना रास ही नहीं आता। पुलिस कर्मचारी बताते हैं कि कई बार उन्हें दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, यूपी व हिमाचल आदि राज्यों में जांच के लिए जाना पड़ता है। तब रास्ते में भूख मिटाने के लिए समोसे, ब्रेड, ढाबों का खाना आदि सब खाना पड़ता है। यह उनकी मजबूरी होती है। कार्यालयों में सुबह से शाम की ड्यूटी करने वाले कर्मचारी तो शेड्यूल बना पाते हैं। फील्ड के कर्मचारी शेड्यूल नहीं बना पाते।
डाइट प्लान के विपरीत सरकारी मीनू
थानों की कैंटीन में सिर्फ दो समय भोजन मिलता है। सुबह दाल रोटी मिलती है और शाम को दाल की जगह सब्जी मिलती है। दोपहर के समय भोजन नहीं बनता। डाइटीशियन अशोक कुमार ने पुलिस कर्मचारियों को सलाह दी है कि वे सुबह व दोपहर के समय बढि़या क्वालिटी का खाना खाएं। दोपहर का खाना हेवी है तो चलेगा, लेकिन रात का खाना हल्का हो। मगर दोपहर को पुलिस कर्मचारी भूखे रहते हैं। उस स्थिति में पूरे दिन की कसर रात को पूरा करते हैं। शाम को भर पेट खाना खाने के बाद रात को पीसीआर में ड्यूटी करते हैं।
सैर के वक्त मिलता है सोने का समय
हवलदार रमेश कुमार बताते हैं कि लोग सुबह 4 से 6 बजे के बीच सैर के लिए निकलते हैं। रात भर गश्त करने वाले पुलिस कर्मचारी उस समय ड्यूटी करते थानों में लौटते हैं। अगले दिन फिर ड्यूटी करनी होती है। इसलिए आकर यही सोचते हैं कि दो चार घंटे सो लिया जाए। उस स्थिति में 5 से 8 बजे के बीच नींद लेते हैं। उस समय नींद भी नहीं आती। ऐसे में सैर व व्यायाम जैसी बातें सोच ही नहीं पाते। भूखे रहने और फिर ज्यादा खाने के कारण पाचन तंत्र बिगड़ जाता है।
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आंकड़ों से जानिए स्थिति
-1200 कर्मचारी
-800 कर्मियों का फील्ड वर्क
-20 फीसद शराब व मांस के शौकीन
-2 टाइम सरकारी भोजन
-10 रुपये डाइट खर्च
-24 में सिर्फ 4 घंटे नींद
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खाने में परहेज करें कर्मचारी : पुलिस अधीक्षक
इसमें कोई दोराय नहीं कि पुलिस का काम बहुत कठिन है और शेड्यूल नहीं बन पाता। मगर कर्मचारियों को तली व अधिक वसा वाली चीजों से परहेज करना चाहिए। मजबूरी में जरूरी नहीं कि समोसा ही खाएं, उसकी बजाय सेब भी खा सकते हैं। कई कर्मचारी समय होने के बावजूद फिटनेस पर ध्यान नहीं देते। इनमें ऐसे कर्मचारी भी हैं, जो फील्ड में काम नहीं करते। हमारा प्रयास सकारात्मक है और इसके अच्छे परिणाम आएंगे।
-ओपी नरवाल, पुलिस अधीक्षक।