स्वर्णिम सफर में सांस्कृतिक गौरव की रामलीला
अजय मेहता, भूना प्रदेश के अलग अस्तित्व में आए पचास साल पूरे हो रहे हैं। स्वर्ण जयंती मनाई जा रही ह
अजय मेहता, भूना
प्रदेश के अलग अस्तित्व में आए पचास साल पूरे हो रहे हैं। स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है। वाजिब ही। वजूद का कतई स्वर्णिम सफर। कारण कि इस दौरान सामाजिक व आर्थिक चेतना जागृत होने के साथ ही सांस्कृतिक संवेदनाएं भी असमान छू गई। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है विजय दशमी से पूर्व आयोजित होने वाली रामलीलाएं। पचास साल में मानो परवान ही चढ़ गईं ये रामलीलाएं। बेशक, टीवी संस्कृति यदा-कदा हावी हुई मगर परंपरा के पांवों में प्रयोग की झंकार ऐसी हुई कि तमाम सामाजिक सरोकार भी रामलीलाओं से जुड़ते चले गए। दहेज, कन्या भ्रूण हत्या अथवा नशाखोरी जैसी सामाजिक कुरीतियों पर रामलीला के मंच से जबरदस्त प्रहार किये जाते रहे।
अतिशयोक्ति नहीं। उदाहरण के तौर पर सात दशक से भूना के मुख्य बाजार में रामाकृष्णा कलां मंच द्वारा आयोजित रामलीला केवल मात्र मनोरंजन का साधन न होकर
श्रद्धा का केंद्र बन गई है। हालांकि इसकी भी सत्तर साल पुरानी प्रेरक दास्तां है। वक्त के साथ समाज से जुड़े मुद्दे रामलीला के दौरान मंच से जुड़ जाते हैं। यहां तक कि रामलीला के किरदार निभाने वाले कलाकार भी पूरी तरह सात्विक होते हैं। स्टेज पर न तो चटक-मटक और न ही फूहड़ता। संवाद अदायगी ऐसी कि सीधा दिल को छू ले।
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1952 में हुई थी बैठक
वर्ष 1952 में भारत विभाजन के बाद यहां पहुंचे रामलीला के सदस्यों ने बाबा राणाधीर मंदिर में एक बैठक का आयोजन किया था। जिसमें भूना में रामलीला करने के बारे में चर्चा की गई थी। वहां मौजूद लोगों का कहना था कि कबीर वाला शहर हाल आबाद पाकिस्तान में रामलीला का आयोजन होता था। परंतु देश विभाजन होने के बाद मौजूद रामलीला के सदस्य भूना आबाद हो गए। फिर रामलीला शुरू करने के लिए बैठक बुलाई गई। सभी सदस्यों ने आपस में करीब पांच सौ रुपये की राशि एकत्रित की और एक बल्ब तथा एक स्पीकर के सहारे रामलीला का सफल आयोजन हुआ। धीरे-धीरे बुजुर्ग द्वारा रोपित पौध विशाल वृक्ष का रूप लेता चला गया और अब भी उन बुजुर्गो की तीसरी पीढ़ी ने अपने पूर्वजों की परम्परा को जीवित रखा और अब इस क्लब में करीब सौ से ऊपर सदस्य हैं जो कि विभिन्न जातियां व राजनीतिक पार्टियों से हैं। अब भी सभी सदस्य रामलीला मंचन के दौरान नशा को दूर रहकर कोई सदस्य प्याज तक का सेवन नहीं करता। जात-पात के भेदभाव से उठकर
एक-दूसरे को भाई-भाई मानते हैं और रामलीला के दौरान यहीं संदेश दर्शकों को भी दिया जाता है। रामलीला के मंच को राजनीतिक नहीं बनने दिया जाता व बुजुर्गों की परम्परा के अनुसार रामलीला में न तो कोई फिल्मी गाना गाया जाता है और न ही कोई डांसर बुलाई जाती है। एक बार फिर दशहरा पर्व मनाने के लिए रामलीला शुरू होने जा रही है, जिसमें इस बार लेजर तकनीक का प्रयोग किया जाएगा व जिसका शुभारंभ भूना थाना प्रभारी बिमला देवी करेगी।