शासन-प्रशासन की ढिलाई से बेलगाम हुए बिल्डर-फाइनेंसर
बिजेंद्र बंसल, फरीदाबाद पिछले छह माह से बिल्डर- फाइनेंसरों के बेईमान होने की चर्चा शहर की हर छ
बिजेंद्र बंसल, फरीदाबाद
पिछले छह माह से बिल्डर- फाइनेंसरों के बेईमान होने की चर्चा शहर की हर छोटी-बड़ी व्यापारिक बैठक में हो रही है। मगर बुजुर्ग व्यापारी सतीश गोयल की आत्महत्या के बाद अब शहर में यह मुद्दा और जोर पकड़ेगा। असल में शासन-प्रशासन भी पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए है। लोग अपनी शिकायत पुलिस के पास लेकर यूं नहीं जा रहे हैं कि बिल्डर और फाइनेंसरों ने उन्हें यह कहकर डराया हुआ है कि उनके कच्चे (बिना लिखत-पढ़त) के पैसे हैं। इसके अलावा जिसने चेक से इन बिल्डरों और फाइनेंसरों को पैसे दिए हुए हैं, उनकी शिकायत को पुलिस यह कहकर टाल रही है कि पुलिस का काम किसी के पैसे पटवाना नहीं है। इसके लिए अदालत का सहारा लो। ऐसे में लोग अपने-अपने अंदाज में बिल्डरों और फाइनेंसरों से अपनी खून-पसीने की कमाई वसूलने में लगे हैं। हालांकि उन्हें पिछले चार माह में कोई सफलता नहीं मिली। बेशक ब्याज पर पैसा देने वाले लोग अपनी वसूली के लिए दर-दर भटक रहे हैं मगर बिल्डर या उनके फाइनेंसरों पर इसका कोई असर नहीं है।
ब्याज पर पैसे देने का धंधा पिछले 15 साल से चल रहा है। हालांकि पिछले पांच साल में यह धंधा लगभग हर छोटे-बड़े घर तक पहुंच गया। लोगों ने अपने खून पसीने की कमाई बिचौलिया फाइनेंसरों को ब्याज पर दी हुई थी। ये बिचौलिया कमीशन पर पैसा आगे बड़े बिल्डरों को देते थे। इस दौरान कुछ फाइनेंसर तो ऐसे पैदा हो गए जिन्होंने बड़े बिल्डरों को पैसा न देकर अपना ही प्रापर्टी का धंधा शुरू कर दिया। ब्याज पर पैसे देने का यह धंधा फरीदाबाद बल्लभगढ़, पलवल, होडल, हथीन, पुन्हाना, गुड़गांव से लेकर दिल्ली, नोएडा और मुंबई तक जा पहुंचा था। इस धंधे में कितने लोगों की कितनी बड़ी राशि लगी हुई है, यह किसी को नहीं पता। मगर जब लोग बिल्डरों पर अपने पैसे की बात करते हैं तो करोड़ से नीचे बात नहीं होती।
फाइनेंसरों का एक बिचौलिया अजय मंगला तो फरवरी से ही घर से गायब है। उसके गायब होने के बाद चार दिन तक प्रशासन व परिजनों ने उसकी खोज आगरा नहर में करवाई। क्योंकि उसकी स्कूटी नहर के किनारे मिली थी। मगर न तो अजय वापस आया और न ही उसका शव नहर में मिला। हां, पिछले सप्ताह उसकी पत्नी रेनू मंगला ने परेशान होकर नींद की इतनी गोलियां खा ली कि अस्पताल में इलाज कराना पड़ा। इससे पहले सेक्टर-3 में रहने वाला अमित मित्तल भी अपने परिवार के साथ शहर छोड़कर भाग गया। वह कहां है इसकी जानकारी भी किसी को नहीं है। फाइनेंस का काम करने वालों में सिर्फ अमित मित्तल, डीके बर्तनवाला, विनोद गर्ग उर्फ मामा ही नहीं, बल्कि महेंद्र गोयल व सुरेंद्र गोयल के अलावा बहुत अन्य भी हैं। बिल्डर कह रहे हैं कि मंदी के चलते उनके प्रोजेक्ट बिक नहीं रहे हैं और इसलिए नकद वापसी नहीं है। कुछ बिल्डर जिनमें एसआरएस और पीयूष शामिल हैं, वे अपने फाइनेंसरों के माध्यम से लोगों को फ्लैट, जमीन आदि दे रहे हैं मगर इससे लोगों को शांति नहीं है। लोगों का कहना है कि वे बिल्डर द्वारा मांगी दर पर जमीन या फ्लैट नहीं लेंगे। कुछ कह रहे हैं कि वे तो केवल नकदी ही लेंगे। इससे बिल्डर भी परेशान हैं। बिचौलिए जिन्होंने पिछले 15 साल में कमीशन के रूप में एकत्र धनराशि से मकान,दुकान और अन्य जेवरात, जमीन जायदाद खरीदी है, वे एक भी अपना पैसा अपने उन लोगों को नहीं देना चाहते जो जरूरतमंद हैं। अन्यथा आधे से अधिक जरूरतमंदों को राहत मिल जाती। सब बिचौलिया अपने बड़े-बड़े घरों में रहकर वापसी केवल बिल्डर से कराना चाहते हैं। बिल्डरों का कहना है कि जमीन खरीद-फरोख्त से लेकर प्रापर्टी बाजार में जो मंदी आई है उसकी वजह से यह सब परेशानी आई है यदि लोग धैर्य रखें तो यह समय निकल सकता है।
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यूपी का माफिया
शहर के कुछ लोग अपने पैसे पटवाने के लिए उत्तर प्रदेश के माफिया का सहारा लेने लगे हैं। एक मामले में तो एक पूर्व पार्षद का भी नाम आ रहा है। पुलिस अपने चहेतों को बिल्डरों से पैसे दिलवा रही है। मगर आम जरूरतमंदों को नहीं।