मेरा लगाया हुआ पौधा अब बरगद बन गया है : शशिकांत मिश्रा
दीपक पांडेय, फरीदाबाद अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेले को आज भले की विश्व स्तर पर पहचान मिल गई हो,ल
दीपक पांडेय, फरीदाबाद
अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेले को आज भले की विश्व स्तर पर पहचान मिल गई हो,लेकिन कुछ ही लोगों को जानकारी होगी कि मेले का प्रस्ताव कैसे तैयार हुआ। किस सोच को ध्यान में रखकर मेले की शुरुआत की गई। वर्ष 1987 में राजीव गांधी के कैबिनेट सचिव शशिकांत मिश्रा ने मेले की शुरुआत की। शुक्रवार को मेला भ्रमण के दौरान उन्होंने मेले की शुरुआत को लेकर विशेष बातचीत की। शशिकांत मिश्रा को हरियाणा में टूरिज्म का जनक माना जाता है और पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल उन्हें काफी मान देते थे।
शशिकांत मिश्रा कहते हैं कि वर्ष 1987 में एक पौधा लगाया था जो अब बरगद बन चुका है। मेले की शुरुआत को लेकर उन्होंने बताया कि राजा महाराजा के समय में हमारे शिल्पकारों को काफी सम्मान मिलता था। उनकी कला के लिए राजा शिल्पकारों को न केवल धन देते थे, बल्कि उनका सम्मान भी करते थे, लेकिन राजाओं के खत्म होने के बाद एक तरह से अकेले पड़ गए। उनकी कला को बढ़ावा देने के लिए कोई मंच उपलब्ध नहीं था। ऐसे में देश भर के शिल्पकारों को विश्व मंच देने के लिए सूरजकुंड मेले से बेहतर स्थान कोई नहीं हो सकता था।
शुरुआत में हुआ काफी विरोध:
शशिकांत मिश्रा ने बताया कि जब उन्होंने शुरुआत में शिल्पकारों को एक मंच देने के लिए मेले का प्रस्ताव बनाया तो कई लोगों ने इसका विरोध किया, जिसमे कुछ राजनीतिक लोग भी शामिल थे। उनका कहना था कि मेला नहीं चलेगा। लोगों में मेले को लेकर कोई उत्साह नहीं होगा। मेले में लोगों को उत्साह को देखकर सबकी बातें गलत साबित हो गई। मेले के सभी आलोचक धीरे धीरे ठंडे पड़ गए। धीरे धीरे मेले में विदेशी पर्यटक भी आने लगे, जिससे मेला का कारवां बढ़ता गया। शायद ही देश में कोई ऐसी जगह हो, जहां से सूरजकुंड मेले में शिल्पी व कलाकार न आते हों।
इसलिए निश्चित की तारीख
शशिकांत मिश्रा के अनुसार मेले में पहली बार ही विदेशी हस्तशिल्पकारों को भी आमंत्रित किया गया था। यह भी निश्चित हो गया था कि मेला हर वर्ष लगाया जाएगा। इसलिए मेला आयोजन के लिए 1 से 15 तारीख निश्चित की गई। यह भी तय किया गया कि मेला हर वर्ष इन तारीख में आयोजित होगा, जिससे लोग पहले से मेले में आने के लिए योजना बना सके। किसी तरह की हड़बड़ी न हो।