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सरसों की आवक तेज, 3550 रुपये तक मिल रहे भाव

जागरण संवाददाता, चरखी दादरी : नगर के चिड़िया मोड़ स्थित नई अनाज मंडी में इन दिनों रबी फसलों की आवक

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Mar 2017 01:00 AM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 01:00 AM (IST)
सरसों की आवक तेज, 3550 रुपये तक मिल रहे भाव
सरसों की आवक तेज, 3550 रुपये तक मिल रहे भाव

जागरण संवाददाता, चरखी दादरी :

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नगर के चिड़िया मोड़ स्थित नई अनाज मंडी में इन दिनों रबी फसलों की आवक शुरू हो गई है। फिलहाल सरसों की आवक अधिक देखी जा रही है। सरकारी एजेंसियां अभी सरसों खरीद से दूरी बनाए हुए हैं। मार्केट कमेटी की ओर से तर्क है कि सरसों की फसलों में नमी निर्धारित पैमान से ज्यादा मिल रही है। कमेटी अधिकारियों का दावा है कि जल्द ही सरकारी खरीद शुरू की जाएगी। फिलहाल मंडी में पहुंचने वाली सरसों की फसल 3500 से 3550 रुपये प्रति ¨क्वटल के भाव से बिक रही है, जबकि सरकार की ओर से समर्थन मूल्य 3700 रुपये निर्धारित किया गया है। लेकिन सरकारी खरीद अभी शुरू नहीं होने से किसान आढ़तियों को अपनी फसल बेचने को विवश हैं। इन दिनों अनाज मंडी में 1000 ¨क्वटल सरसों की औसत आवक हो रही है जो आगामी समय में बढ़ने की संभावना है। अभी अगेती सरसों की कटाई के बाद मंडी में फसल पहुंच रही है, पछेती सरसों की कटाई भी शुरू हो चुकी है। नमी ज्यादा होने के कारण सरसों की फसलों को मंडी परिसर में सुखाया जा रहा है।

किसान ट्रैक्टर-ट्रॉलियों, टाटा गाड़ी व अन्य वाहनों में सरसों की बोरियां लेकर पहुंच रहे हैं।

अवैध करोबार पर लगे अंकुश : रिटोलिया

अनाज मंडी एसोसिएशन के प्रधान रामकुमार रिटोलिया ने कहा कि अभी मंडी में फिलहाल फसली सीजन की रौनक कम है। इसका मुख्य कारण ये है कि सरसों का अवैध कारोबार जोरों पर है। मार्केट कमेटी प्रशासन इस तरफ ध्यान दें और अवैध कारोबार पर अंकुश लगाए ताकि मंडी में व्यापार बढ़े और सरकार के राजस्व में भी इजाफा हो। उन्होंने कहा कि यदि अवैध कारोबार को लेकर जल्द कोई कदम नहीं उठाया गया तो एसोसिएशन मुखरता से विरोध करने से पीछे नहीं हटेगी।

किसान बोले, शुरू हो सरकारी खरीद

भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष मा. शेर ¨सह, जनहित किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुनील पहलवान ने मांग की कि जल्द ही अनाज मंडी में सरसों की सरकारी खरीद शुरू होनी चाहिए। सरकार की बेरुखी किसानों पर भारी पड़ रही है। किसान औने-पौने दामों में अपनी फसलों को बेचने पर मजबूर हैं। सरकारी समर्थन मूल्य से काफी कम दामों में किसानों की सरसों खरीदी जा रही है। किसानों को प्रति ¨क्वटल काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है।


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