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मिट्टी के बर्तनों को आकार दे खुद की किस्मत खुद लिख रही अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रेणु

प्रवीण सांगवान, तोशाम सुबह के पांच बजे उठकर मिट्टी को गुंथकर उससे घड़े बनाना, इसके बाद कॉलेज जाकर ब

By Edited By: Published: Fri, 24 Apr 2015 01:00 AM (IST)Updated: Fri, 24 Apr 2015 01:00 AM (IST)
मिट्टी के बर्तनों को आकार दे खुद की किस्मत खुद लिख रही अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रेणु

प्रवीण सांगवान, तोशाम

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सुबह के पांच बजे उठकर मिट्टी को गुंथकर उससे घड़े बनाना, इसके बाद कॉलेज जाकर बड़ी तन्मयता से पढ़ाई, दोपहर बाद वेट लि¨फ्टग की प्रेक्टिस और फिर घर आकर एक फिर मिट्टी के घड़े बनाने में जुट जाना। यह दिनचर्या है एक अंतरराष्ट्रीय पॉवर लि¨फ्टग व वेट लि¨फ्टग खिलाड़ी गांव ढाणीमाहु की बेटी रेणु की। ऐसा भी नहीं है कि घड़े बनाना उनका कोई शौक है, बल्कि अपनी आर्थिक हालात को सबल देने के लिए मजबूरी में उन्हें यह सब करना पड़ता है। दो बहनों व एक भाई की पढ़ाई, अपनी डाइट व घर की अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाना उसके परिवार के लिए एक मात्र जीविका का साधन है। अपने खेल में महारथ हासिल करने के साथ-साथ तोशाम स्थित चौ. बंसीलाल महिला महाविद्यालय की बीए अंतिम वर्ष की छात्रा रेणु के बनाए गए घड़े भी आस पास के गांवों में खूब पसंद किए जाते है। संकल्प में सच्चाई, ईमानदारी और जुनून हो तो पत्थरों को भी ¨जदा किया जा सकता है। जुनून और जोश के साथ अपनी मंजिल को पाने के लिए अडिग रेणु ने वो सबकर दिखाया जिसे पाने के लिए सर्व सुविधा संपन्न लोगों के लिए सपना होता था। अभावों को अपने लक्ष्य प्राप्ति का हथियार बनाते हुए रेणु ने अपनी हिम्मत व लगन से एक ऐसे खेल को अपनाया जिसमें सर्वाधिक मेहनत व डाइट की जरूरत होती है। घर की माली हालात को भली भांति जानते हुए रेणु ने अपने पिता के काम में हाथ बंटवाने का फैसला लिया । रेणु के पिता रामनिवास घड़े लाकर बेचते थे। इससे होने वाली कमाई में परिवार की रोजी-रोटी मुश्किल से चल पाती थी। रेणु समेत तीन बेटियों व एक बेटे की पढ़ाई के लिए संसाधन जुटाने के लिए रामनिवास को दिन-रात मेहनत करनी पड़ती थी। रेणु ने अपने पिता का हाथ बंटवाने के लिए घर पर ही घड़े बनाने की ठानी। सुबह कॉलेज में जाने से पहले तथा सायं को कालेज से घर आने के बाद वह घड़े बनाती तथा दिन में उसके पिता उन घड़ों को बेचते थे। धीरे धीरे वह अपने काम में इतनी माहिर हो गई कि उसके बनाए गए घड़े आसपास के गांवों में पसंद किए जाने लगे। रेणु को बचपन से ही खेलने का शौक था। शुरू में उसने कुश्ती में अपने हाथ अजमाए। कॉलेज समय में कुछ समय निकालकर वह कुश्ती के दांव-पेंच सीखने लगी। जल्दी ही उसने इस खेल में महारत हासिल कर ली तथा अपने कालेज की तरफ से खेलते हुए इंटर स्टेट कालेज चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता। लेकिन अपनी घर की माली हालात व हाथ में चोट लग जाने के कारण वह इस खेल को आगे जारी नहीं कर सकी। कुछ समय के ब्रेक के बाद खलने की इच्छा एक बार फिर हिलौरे मारने लगी। अब की बार उसने पावर लि¨फ्टग में हाथ अजमाने की ठानी। भिवानी में इंटर कालेज प्रतियोगिता के एक ट्रायल के दौरान कोच गोपाल की नजर उस पर पड़ी तथा उसे इस खेल में ट्रे¨नग देने को सहमत हो गए। रेणु ने अपने घर के विपरीत हालातों के साथ सामंजस्य बैठाते हुए अपनी माली हालात को कभी अपने खेल में आड़े नहीं आने दिया।

रेणु की उपल्बिधियां

रेणु ने फरवरी 2015 में शिमला में आयोजित नॉर्थ इंडिया चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतते हुए इस चैंपियनशिप में बेस्ट लिफ्टर का खिताब भी जीता। इसके अलावा वर्ष 2014 में शिमला में आयोजित जूनियर चैंपियनशिप में ब्रॉंज मेडल, वर्ष 2014 में चेन्नई में आयोजित ऑल इंडिया यूनिर्विसटी चैंपियनशिप में प्रदेश का प्रतिनिधित्व, वर्ष 2013 में पटियाला में आयोजित नॉर्थ इंडिया चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल, बैंगलोर में आयोजित सिनियर पावर लि¨फ्टग चैंपियनशिप में चोथा स्थान, भिवानी में आयोजित सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड, हांसी में आयोजित स्टेट चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल सहित अनेक उपलब्धियां हासिल की है।

रामनिवास को गर्व है अपनी बेटी पर

रेणु के पिता गांव ढाणीमाहु निवासी रामनिवास वर्मा का कहना है कि उसके पूरे परिवार को रेणु पर गर्व है। रेणु अपने खर्चो को निकालने के साथ-साथ घर के कामकाज में भी पूरी तरह से हाथ बंटवाती है। चौ. बंसीलाल राजकीय महिला महाविद्यालय के सहायक प्रो. डॉ. सुखबीर दूहन का कहना है कि खेलों के साथ रेणु अपनी पढ़ाई भी पूरी तन्मयता के साथ करती है। उन्होंने कहा कि रेणु ने कभी महसूस ही नहीं होने दिया कि उसके घर की माली हालात उसकी पढ़ाई या खेल में अड़चन बनी हुई है।

नहीं मिली कोई सहायता

जब रेणु से इस बारे में बातचीत की गई तो उसने कहा कि क्रिकेट जैसे खेलों में थोड़ा बहुत खेलने पर ही काफी पैसा मिलता है तथा लोगों से भी काफी सहयोग मिलता है, लेकिन पॉवर लि¨फ्टग या रेसलिंग में ऐसा नहीं है। खिलाड़ी को अपने स्तर पर ही सब कुछ करना पड़ता है। सरकार व लोगों से सहयोग नहीं मिलने का उसे दुख जरूर है, लेकिन कोई मलाल नहीं है।


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